
गोवंश संरक्षण बना राष्ट्रीय अभियान: सरकार और समाज से ठोस कदम उठाने की अपील
गोवंश संरक्षण के लिए अभियान के तहत सरकार और समाज से अपील भी मांग भी
भारतीय संस्कृति की आत्मा है ‘गोमाता’, अब संरक्षण बन गया राष्ट्रीय कर्तव्य
गोहत्या पर कठोर कानून और गोचर भूमि मुक्त कराने की मांग
पर्यावरण, स्वास्थ्य और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रक्षा से जुड़ा है गोवंश
जयपुर,dusrikhabar.com। विश्व हिंदू परिषद गौरक्षा विभाग की ओर से बुधवार को जयपुर में एक प्रेसवार्ता का आयोजन किया गया। प्रेसवार्ता में विहिप के पदाधिकारी डॉ विवेक शर्मा, जसराज श्री श्रीमाल और शंशाक शेखर ने सरकार और समाज से अपील करते हुए कहा कि गोमाता के लिए सरकार और समाज को साथ आने की जरूरत है।
उन्होंने बताया कि हिंदूओं की धार्मिक आस्था के अनुसार भारत में गोमाता केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि संस्कृति, स्वास्थ्य, पर्यावरण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की आधारशिला है। अखिल भारतीय संत समाज, कृषक, गोभक्त और गोरक्षकों ने एक राष्ट्रीय बैठक में संकल्प लिया कि गोवंश संरक्षण को राष्ट्रीय आंदोलन बनाया जाएगा। बैठक में सरकार और समाज दोनों से ठोस कदम उठाने की अपील की गई ताकि भारत की संस्कृति, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था की रक्षा की जा सके।
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गोवंश संरक्षण: आस्था नहीं, राष्ट्रीय नीति की ज़रूरत
बैठक में यह स्पष्ट कहा गया कि गोवंश की रक्षा केवल धार्मिक दायित्व नहीं, बल्कि यह राष्ट्रीय कर्तव्य है। पॉलिथीन, रासायनिक प्रदूषण और गोचर भूमि के अतिक्रमण से गोमाता की स्थिति चिंताजनक हो गई है। नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं, भूमिगत जल का स्तर घट रहा है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है।
संत समाज ने कहा कि गाय को “राष्ट्रीय धरोहर” घोषित किया जाए और गोपाष्टमी को “राष्ट्रीय पर्व” के रूप में मान्यता दी जाए।
सरकार से अपेक्षाएँ: ठोस नीतियाँ और सख्त कानून की माँग
बैठक में प्रस्ताव रखा गया कि केंद्र सरकार को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए —
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गोवंश संरक्षण-संवर्धन मंत्रालय की स्थापना की जाए।
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गोहत्या रोकने हेतु कठोर केंद्रीय कानून बने और कड़ाई से लागू हों।
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गोचर भूमि का अतिक्रमण मुक्त कर गोचर प्राधिकरण गठित किया जाए।
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मांस निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए और बीफ निर्यात की आड़ में होने वाली अवैध तस्करी पर रोक लगे।
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राष्ट्रीय राजमार्गों पर हीट सेंसर कैमरे लगाकर गोवंश परिवहन की निगरानी की जाए।
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गोवंश आधारित अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीय नीति में शामिल किया जाए ताकि पंचगव्य, जैविक कृषि, औषधि, और स्वदेशी उद्योग को बढ़ावा मिले।
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समाज से अपेक्षाएँ: गोसेवा को जीवन का हिस्सा बनाएं
समाज के हर वर्ग से यह आह्वान किया गया कि —
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दैनिक जीवन में पंचगव्य और गो-उत्पादों का प्रयोग बढ़ाया जाए।
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धार्मिक अनुष्ठानों में केवल गोघृत का उपयोग हो।
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देशी नस्लों के नंदियों से गर्भाधान कर विदेशी सीमेन का बहिष्कार करें।
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गौशालाओं की रक्षा और गोवंश सेवा कार्यों में सक्रिय भागीदारी दें।
पंच-परिवर्तन: गोवंश केंद्रित सामाजिक नवजागरण
बैठक में ‘पंच परिवर्तन’ का सूत्र प्रस्तुत किया गया —
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गोसेवा से समाज में सामाजिक समरसता और प्रेम का विस्तार।
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परिवारों में गोवंश आधारित जीवनशैली को अपनाना।
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पर्यावरण संरक्षण हेतु गोमूत्र और गोबर आधारित उत्पादों का प्रयोग।
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स्वदेशी उद्योग और रोजगार सृजन के लिए पंचगव्य उत्पादों का उपयोग।
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प्रत्येक नागरिक का दायित्व कि गोवंश हत्या रोकने में सक्रिय भूमिका निभाए।
संत समाज और गोभक्तों ने गोमाता को साक्षी मानकर यह संकल्प लिया कि वे गोवंश संरक्षण के लिए समाज और सरकार के बीच एक सशक्त सेतु बनेंगे। यह आंदोलन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि भारत की संस्कृति, स्वास्थ्य, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था की स्थिरता का मार्ग है।
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