भारत में पहली बार “लंबर डिस्क हर्नियेशन” का गीतांजली हॉस्पिटल ने सफल उपचार कर बनाया रिकॉर्ड…

भारत में पहली बार “लंबर डिस्क हर्नियेशन” का गीतांजली हॉस्पिटल ने सफल उपचार कर बनाया रिकॉर्ड…

जयपुर के गीतांजली हॉस्पिटल में 11 वर्षीय बच्चे की रीढ़ की दुर्लभ बीमारी का सफल इलाज

राजस्थान ही नहीं भारत का पहला डॉक्यूमेंटेंड मामला माना जा रहा लंबर डिस्क हर्नियेशन का ऑपरेशन 

न्यूरो एवं स्पाइन सर्जन डॉ. धीरज विश्वकर्मा, एनेस्थेसियोलॉजिस्ट डॉ. कुमार असनानी एवं अन्य विशेषज्ञों ने की सर्जरी 

जयपुर,(dusrikhabar.com)। गीतांजली हॉस्पिटल, जयपुर ने चिकित्सा के क्षेत्र में एक और कीर्तिमान स्थापित किया है। अलवर निवासी 11 वर्ष 11 महीने के एक बालक की रीढ़ में दुर्लभ लंबर डिस्क हर्नियेशन (Lumbar Disc Herniation) की पहचान कर उसका अत्याधुनिक तकनीक से इलाज करने में सफलता पाई हैं। यह न केवल राजस्थान बल्कि भारत का पहला डॉक्यूमेंटेड मामला है, कि इतनी कम उम्र के बच्चे में मोनोपोर्टल एंडोस्कोपिक इंटरलामिनार डिस्केक्टॉमी (Monoportal Endoscopic Interlaminar Discectomy) तकनीक का सफल प्रयोग किया गया है।

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लंबर डिस्क हर्नियेशन बीमारी के बारे में 

बच्चे की माँ ने बताया, “बच्चा घर पर बैठा था तभी अचानक से उसकी पीठ में तेज दर्द शुरू हुआ। पहले हम पास ही मालिश के लिए ले गए, लेकिन कोई राहत नहीं मिली, बल्कि परेशानी और बढ़ गई । फिर स्थानीय डॉक्टर को दिखाया, जांच करवाई और एमआरआई में पता चला कि समस्या गंभीर है। डॉक्टर ने जयपुर के गीतांजली हॉस्पिटल जाने की सलाह दी।” यह केस इसलिए भी अनोखा है क्योंकि बच्चे को कोई स्पष्ट चोट नहीं लगी थी, फिर भी रीढ़ की गंभीर बीमारी विकसित हो गई। जांच में सामने आया कि यह स्थिति धीरे-धीरे कॉडा इक्विना सिंड्रोम (Cauda Equina Syndrome) की ओर बढ़ रही थी—एक अत्यंत गंभीर न्यूरोलॉजिकल अवस्था, जिसमें पेशाब रुकने लगता है और पैरों में कमजोरी आ जाती है।

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न्यूरो एवं स्पाइन सर्जन डॉ. धीरज विश्वकर्मा, एनेस्थेसियोलॉजिस्ट डॉ. कुमार असनानी एवं अन्य विशेषज्ञ 11 साल के बच्चे की रीढ़ की हड्डी की सर्जरी के बाद बच्चे के साथ।

गीतांजली के विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम ने रच दिया इतिहास

गीतांजली हॉस्पिटल पहुंचने पर न्यूरो एवं स्पाइन सर्जन डॉ. धीरज विश्वकर्मा, एनेस्थेसियोलॉजिस्ट डॉ. कुमार असनानी एवं अन्य विशेषज्ञों ने बच्चे का गहन परीक्षण करने के बाद तत्काल सर्जरी का निर्णय लिया । सर्जरी के लिए चुनी गई नवीनतम तकनीक “मोनोपोर्टल एंडोस्कोपिक डिस्केक्टॉमी” जिसमें केवल 6–8 मि.मी. का छोटा चीरा लगाया गया, हड्डी को काटने की आवश्यकता नहीं पड़ी, रक्तस्राव नगण्य रहा और मांसपेशियों को भी कोई नुकसान नहीं हुआ। ऑपरेशन के अगले ही दिन बच्चा चलने लगा और पेशाब से जुड़ी परेशानियाँ भी समाप्त हो गईं। अब बच्चा पूरी तरह स्वस्थ है और उसे हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई है।

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कैसे होता है लंबर डिस्क हर्नियेशन वीडियो से समझें पूरी प्रक्रिया 

क्यों हैं यह विशिष्ट उपलब्धि ?

यह भारत में किसी भी 11 वर्षीय बच्चे में की गई पहली एंडोस्कोपिक डिस्केक्टॉमी है। विश्व स्तर पर भी यह केवल दूसरा डॉक्यूमेंटेड मामला है, जिसमें मोनोपोर्टल एंडोस्कोपिक इंटरलामिनार डिस्केक्टॉमी तकनीक का उपयोग इतने कम उम्र के मरीज पर सफलता से किया गया। न्यूनतम इनवेसिव तकनीक द्वारा अब बच्चों की रीढ़ से जुड़ी गंभीर बीमारियों का इलाज भी  सुरक्षित रूप से संभव है। यह पारंपरिक ओपन स्पाइन सर्जरी की तुलना में एक एविडेंस-बेस्ड, लो-ट्रॉमा विकल्प है — जो बच्चों की नाज़ुक रीढ़ के लिए अत्यधिक अनुकूल है।

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गीतांजली हॉस्पिटल जयपुर में सहायक प्रोफेसर, न्यूरोसर्जरी, डॉ. धीरज विश्वकर्मा ने बताया, “बच्चों की रीढ़ बहुत नाजुक, संवेदनशील और विकासशील होती है, इसलिए किसी भी पीठ दर्द या चलने-फिरने में तकलीफ को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। आज स्पाइन सर्जरी सुरक्षित है और समय पर की गई सर्जरी से बच्चों को पूरी तरह सामान्य जीवन मिल सकता है।” 

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गीतांजली हॉस्पिटल, जयपुर के बाल व शिशु रोग विभाग एवं दुर्लभ रोग कार्यक्रम के प्रमुख, प्रोफेसर डॉ. अशोक गुप्ता ने बताया कि गीतांजली हॉस्पिटल दुर्लभ रोगों के समग्र और अत्याधुनिक उपचार हेतु सक्षम हैं। नवीनतम तकनीकों और उन्नत चिकित्सकीय सुविधाओं के साथ हम न केवल वयस्कों, बल्कि बच्चों को भी गुणवत्तापूर्ण इलाज प्रदान कर रहे हैं । गीतांजली हॉस्पिटल, जयपुर तेज़ी से एक ऐसा केंद्र बनता जा रहा है जहाँ हर आयु वर्ग के मरीजों को विशिष्ट और विश्वसनीय चिकित्सा सेवा प्राप्त हो रही है।

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यह उपलब्धि न केवल गीतांजली हॉस्पिटल के लिए एक गौरव की बात है, बल्कि यह भारत की चिकित्सा प्रणाली की प्रगति का भी प्रमाण है। यह केस आने वाले समय में बाल रोग के क्षेत्र में न्यूरो एवं स्पाइन सर्जरी में एक नया मानक (clinical benchmark) स्थापित करेगा।

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