‘संत तुकाराम’ का ट्रेलर लॉन्च, हीरो का मराठी पर बयान, पत्रकारों ने घेरा निर्देशक आदित्य ओम को…!

‘संत तुकाराम’ का ट्रेलर लॉन्च, हीरो का मराठी पर बयान, पत्रकारों ने घेरा निर्देशक आदित्य ओम को…!

मराठी पर विवाद के बीच संत तुकाराम फिल्म का ट्रेलर लॉन्च 18 जुलाई को फिल्म होगी रिलीज, निर्देशक आदित्य ओम से पत्रकारों के तीखे सवाल..!

छत्रपति शिवाजी के समकालीन संत तुकाराम की प्रेरणादायक जीवनगाथा अब बड़े पर्दे पर, जयपुर में हुआ ट्रेलर लॉन्च

राजस्थान चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के फिल्म सेल के अंतर्गत ‘संत तुकाराम’ का ट्रेलर लॉन्च

संतों की बात पर सियासत! ‘संत तुकाराम’ फिल्म के ट्रेलर लॉन्च से पहले निर्देशक से पत्रकारों के सवाल

जयपुर में ‘संत तुकाराम’ का ट्रेलर लॉन्च विवादों में! प्रेस कॉन्फ्रेंस में छिड़ी बहस

विजय श्रीवास्तव,

जयपुर (dusrikhabar.com)। राजस्थान चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (RCCI) के फिल्म सेल के तत्वावधान में आज बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘संत तुकाराम’ का भव्य ट्रेलर लॉन्च समारोह आयोजित किया गया। यह ऐतिहासिक और आध्यात्मिक फिल्म 18 जुलाई 2025 को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज होगी। कार्यक्रम में फिल्म के निर्देशक आदित्य ओम विशेष रूप से उपस्थित रहे, जिन्हें फिल्म सेल के अध्यक्ष सोमेंद्र हर्ष और RCCI अध्यक्ष के. के. जैन ने सम्मानित किया।

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फिल्म ‘संत तुकाराम’ छत्रपति शिवाजी महाराज के समकालीन महान संत और कवि तुकाराम महाराज के जीवन पर आधारित है। तुकाराम न केवल भक्ति आंदोलन के महान संत थे, बल्कि एक सामाजिक क्रांतिकारी भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं, अभंगों और जीवन के माध्यम से समाज में व्याप्त छुआछूत, जातिगत भेदभाव, अंधविश्वास और रूढ़ियों के खिलाफ आवाज़ उठाई।

उनका जीवन और संदेश सामाजिक समरसता, भक्ति की सादगी और आत्मा की स्वतंत्रता का प्रतीक है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि ईश्वर केवल मंदिरों, पुरोहितों या ग्रंथों में सीमित नहीं हैं, बल्कि वे हर व्यक्ति के हृदय में वास करते हैं—चाहे वह किसी भी जाति या पृष्ठभूमि का क्यों न हो।

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तुकाराम: केवल संत नहीं, सामाजिक विद्रोही भी

फिल्म ‘संत तुकाराम’ छत्रपति शिवाजी महाराज के समकालीन महान संत, कवि और सामाजिक क्रांतिकारी तुकाराम महाराज के जीवन पर आधारित है। भक्ति आंदोलन के अग्रदूत तुकाराम ने जातिगत भेदभाव, छुआछूत और धार्मिक अंधविश्वासों के विरुद्ध खुलकर आवाज उठाई।
उन्होंने अपने अभंगों और कीर्तनों के माध्यम से समाज के वंचित वर्गों को समानता और आत्मबल का संदेश दिया। फिल्म में तुकाराम का वह प्रसंग भी दर्शाया गया है जब उनकी रचनाएं नदी में बहाने के बाद भी अक्षत अवस्था में लौट आईं—जो सच्चे ज्ञान की अमरता का प्रतीक है।

यही कारण था कि उनके कीर्तन और उपदेशों ने समाज के हाशिये पर खड़े दलित और वंचित समुदाय को आत्मबल प्रदान किया। उन्होंने इन्हें यह विश्वास दिलाया कि वे भी ईश्वर के उतने ही प्रिय हैं जितना कोई ब्राह्मण या धनी व्यक्ति। संत तुकाराम महाराज वैष्णव परंपरा में दलित समुदाय के अग्रदूत माने जाते हैं।

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फिल्म निर्देशक आदित्य ओम की यह प्रस्तुति तुकाराम महाराज की इस ऐतिहासिक और सामाजिक भूमिका को गहराई से चित्रित करती है। फिल्म में यह दिखाया गया है कि किस प्रकार उनके कीर्तन गांव-गांव में लोगों को जोड़ते हैं और भक्ति के माध्यम से समाज में समानता का वातावरण निर्मित करते हैं।

तुकाराम महाराज का व्यक्तित्व विद्रोही था—लेकिन यह विद्रोह प्रेम और करुणा से प्रेरित था। उन्होंने आडंबरपूर्ण धार्मिक अनुष्ठानों का विरोध करते हुए सच्ची भक्ति को जीवन की प्राथमिकता बनाया। उनके जीवन का प्रसिद्ध प्रसंग, जब उनकी रचनाएँ नदी में बहाने के बाद भी अक्षत अवस्था में लौट आईं, इस सत्य का प्रतीक है कि सच्चा ज्ञान और भक्ति अमर होते हैं।

आदित्य ओम की फिल्म केवल आध्यात्मिक पहलू को नहीं दर्शाती, बल्कि तुकाराम को एक ऐसे जननायक के रूप में स्थापित करती है जिन्होंने भक्ति को जन-जन तक पहुँचाया, विशेषकर समाज के उन वर्गों तक जिन्हें लंबे समय तक हाशिये पर रखा गया।

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राजस्थान चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष के. के. जैन ने इस अवसर पर फिल्म के निर्देशक आदित्य ओम का स्वागत किया। फिल्म सेल के अध्यक्ष सोमेंद्र हर्ष एवं अन्य सदस्यों ने भी आदित्य ओम का अभिनंदन किया और फिल्म की सफलता के लिए शुभकामनाएं दीं।

यह फिल्म तुकाराम महाराज के संदेश को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत करती है, जब समाज को फिर से यह समझने की आवश्यकता है कि ईश्वर सबके हैं और भक्ति का मार्ग सबके लिए खुला है।

मैं अंदर से मारवाड़ी ही हूं: आदित्य ओम (आदित्य परमार सिंह)

फिल्म के निर्देशक आदित्य ओम ने मीडिया के सामने खुलासा करते हुए कहा कि मुझे फिर से राजस्थान की तरफ मोड़ने का श्रेय सोमेंद्र शर्मा को जाता है। अगर वो मुझे उत्साहित और प्रेरित नहीं करते तो शायद मैं इस तरह से आपके बीच नहीं होता। उन्होंने राजस्थान को अपनी मातृभूमि बताते हुए ये भी कहा कि मैं भले ही मुम्बई में रह रहा हूं तमिल भाषा में भी फिल्में बना रहा लूं लेकिन अंदर से एक मारवाड़ी ही हूं। उन्होंने अपने जीवन से जुड़ी कुछ यादें साझा करते हुए बताया कि उनके बचपन राजस्थान में ही गुजरा है। आदित्य ओम ने भी हिंदी, मराठी और तमिल में 40 से अधिक फिल्में बनाई हैं।


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