
सच में बढ़ रहा सचिन पायलट का कद?, ताे क्या गहलोत मार्गदर्शक की भूमिका में…!
राजस्थान में पहली पंक्ति के नेता बदलने की संभावना…
सबका समय बदलता है और राजनीति में बदलाव बहुत जरूरी …!
सचिन पायलट के एक पत्र और एक फोटो की चर्चा दिल्ली से जयपुर तक
राजस्थान में कांग्रेस की बागडौर मिल सकती एक्टिव और युवा नेताओं को
पूर्व सीएम अशोक गहलोत, शांति धावीवाल सहित कई वरिष्ठ नेताओं के अनुभव का लाभ मार्गदर्शक के रूप में मिलेगा कांग्रेस को
विजय श्रीवास्तव,
dusrikhabar.com। राजस्थान में इन दिनों कांग्रेस पार्टी में पारा कुछ ऊपर चढ़ गया है। सचिन पायलट के दिल्ली विधानसभा चुनावों में स्टार प्रचारकों में शामिल होने से राजस्थान कांग्रेस में उनके कद बढ़ने को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है। यूं तो राजनीति में कुछ भी कभी भी हो सकता है लेकिन पिछले काफी समय से प्रदेश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे सचिन पायलट के लिए अब वाकई समय आ गया है जब उनके सितारे बदलने वाले हैं। विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव या फिर उप चुनाव सचिन पायलट ने राजस्थान में जी तोड़ मेहनत कर ये जता दिया है कि अब राजस्थान में सीएम कुर्सी के उत्तराधिकारी वे ही हैं। ऐसे में राजस्थान से लेकर दिल्ली तक उनके नाम के चर्चे और राहुल गांधी के बगल की कुर्सी पर बेठे उनके फोटो ने कई संभावनाओं को जन्म दिया है।
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हालांकि राजनीति में उम्र की कोई सीमा नहीं है। लेकिन फिर भी दौड़ धूप और लोगों से लगातार जुड़े रहने के लिए मन के साथ साथ तन का भी साथ देना जरूरी है। पूर्व सीएम और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने अपनी युवावस्था में बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं उनके राजनीतिक जीवन का अनुभव इतना अधिक है कि अब उन्हें किंग की जगह किंगमेकर की भूमिका में आना चाहिए। उनका स्वास्थ्य और शरीर अब थोड़ा नासाज रहने लगा है, ऐसे में प्रदेश की दौड़-धूप के साथ ही देश की राजनीति में अब वे हर जगह प्रकट नहीं हो सकते। तो उन्हें चाहिए कि अब प्रदेश के अन्य नेताओं को अपनी राजनीतिक समझ का लाभ देते हुए उन्हें आगे बढ़ाएं।
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हालांकि सचिन से भी कुछ गलतियां तो हुई हैं ऐसा राजनीतिक जगत के लोग मानते हैं, लेकिन फिर भी हर गलती की सजा होती है जो शायद वे भोग भी चुके हैं। अब कांग्रेस को राजस्थान में कुछ परिवर्तन कर ऐसे नेता को प्रदेश की कमान में मुख्य भूमिका में लाना चाहिए जो प्रदेश के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी अपना दखल रखता हो। राजनीति की समझ और वाकपटुता के साथ-साथ राजनीति को मैनेज करने का गुर भी हो।
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राजस्थान के राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो प्रदेश में अब ऐसे गिने चुने नेता ही हैं जो कांग्रेस की राजनीति में सुलगती चिंगारी का काम करें। वैसे तो राजस्थान की जनता का पिछले 25 वर्षों के राजनीति का इतिहास उठाकर देखें तो मानस समझ आता है कि प्रदेश की जनता हर पांच साल में एक नई और बदली हुई पार्टी की सरकार चाहती है। जिसमें प्रदेश के लिए कुछ नई प्लानिंग और ऊर्जा के साथ-साथ खुद को फिर से प्रदेश की जनता के सामने सिद्ध करने का माद्दा हो।
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ऐसे में राजस्थान में सरकार के बदलने का क्रम अब आगे भी जारी रहेगा या नहीं ये कहना अभी थोड़ा जल्द होगा क्योंकि फिलहाल भाजपा सरकार को प्रदेश में एक वर्ष ही पूरा हुआ है और अभी तक सरकार ने किए अपने वादों में कई को काफी हद तक पूरा करने का हर संभव प्रयास किया भी है। ऐसे में आने वाले साढ़े तीन साल राजस्थान में भाजपा या कांग्रेस किसकी सरकार बनेगी इसकी रूपरेखा तय करेंगे। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि प्रदेश में वसुंधरा और गहलोत के बाद अब नई पीढ़ी को मौका मिल सकता है और ऐसा हुआ तो कांग्रेस में युवा और गर्म जोश के नेता माने जाने वाले सचिन पायलट को कांग्रेस आलाकमान अशोक गहलोत का उत्तराधिकारी बना सकता है।
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अब देखना यह होगा कि राजस्थान में अगले साढ़े तीन साल सचिन कितना सक्रिय रह पाते हैं। क्योंकि राजस्थान की राजनीति में यही सबसे सही समय है जब किसी नए नेता को अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत कर अपनी परिपक्वता से लोगों को रूबरू करवाना होगा क्योंकि राजनीति में कब, कौन, कहां, किसकी जगह ले लेगा ये पता नहीं होता? शायद यही कारण है कि सचिन पायलट इन दिनों स्वयं को राजस्थान का उत्तराधिकारी सिद्ध करने में जुटे हैं। दिल्ली विधानसभा चुनावों में उनकी सक्रियता के साथ-साथ राजस्थान में भी उनकी एक्टिवनेस उनके इरादों को स्पष्ट कर रही है।
वैसे भी ये कहा जाता है कि राजनीति में संभावना और महत्वाकांक्षा हमेशा बनी रहनी चाहिए तभी किसी के जाने और किसी के आने के रास्ते बन पाते हैं।
बहरहाल राजस्थान की राजनीति में किसकी संभावना घट रही है और किसकी महत्वाकांक्षा बढ़ रही है ये पूरी तरह से कहने में थोड़ा वक्त बाकी है लेकिन अगर दौर कुछ ऐसा ही चला तो प्रदेश की राजनीति के हालात पर इस खबर को पुख्ता होने में वक्त ज्यादा नहीं लगेगा।