
चीन दौरे से भारत को क्या हासिल होगा? भारत को मिलेगा…!
पीएम मोदी 31 अगस्त को जा रहे चीन यात्रा पर
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से होगी मुलाकात
2020 गलवान घाटी झड़प के बाद दोनों के बीच यह दूसरी औपचारिक मुलाकात
पीएम मोदी की चीन यात्रा से भारत की नई विदेश नीति हो सकती तय
विजय श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार।
मोदी का चीन दौरा भारत की विदेश नीति की नई दिशा तय कर सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त को चीन के तियानजिन शहर में होने जा रहे शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट में हिस्सा लेंगे। इस दौरान उनकी मुलाकात चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी होगी। 2020 की गलवान घाटी झड़प के बाद दोनों नेताओं की यह दूसरी औपचारिक भेंट होगी। ऐसे समय में जब वैश्विक राजनीति की धुरी तेजी से बदल रही है और रूस तथा अमेरिका अप्रत्याशित नजदीकी का संकेत दे रहे हैं, सवाल यह उठता है कि मोदी का चीन दौरा भारत के लिए क्या मायने रखता है?
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गलवान में हुई झड़प ने भारत और चीन संबंधों को कड़वा कर दिया था। सीमा पर तैनाती, व्यापारिक अवरोध और आपसी अविश्वास ने दोनों देशों के बीच दूरियां बढ़ा दी। हालांकि पिछले वर्ष रूस के कजान में ब्रिक्स समिट के दौरान मोदी और जिनपिंग की बातचीत ने कुछ हद तक जमी बर्फ को पिघलाने का काम किया, परंतु वास्तविक भरोसा अब भी अधूरा है। प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संबंधों में जमी धूल को झाड़ने और सीमा विवाद पर ठोस समाधान की संभावना तलाशने का अवसर है।
पीएम मोदी की चीन यात्रा ऐसे दौर में हो रही है जब अमेरिका और रूस, दोनों अपने हितों के आधार पर नई कूटनीतिक चालें चल रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर रूसी तेल और हथियार खरीद को लेकर अतिरिक्त 25% टैरिफ लागू कर दिया है। (अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर रूसी तेल और रक्षा सामग्री खरीदने के लिए 25% “प्रतिकूल (reciprocal)” टैरिफ की घोषणा की थी, और बाद में उस पर अतिरिक्त 25% पेनल्टी जोड़ी गई—जिससे कुल टैरिफ 50% हो गया था)।
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भारत इस समय रूस से रोज़ाना 17.8 लाख बैरल क्रूड ऑयल खरीद रहा है, जिससे वह चीन के बाद रूसी ऊर्जा का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है। ऐसे में वाशिंगटन और मॉस्को के बीच बदलती समीकरणें नई जटिलताओं को जन्म दे रही हैं। भारत के सामने चुनौती यह है कि वह एक ओर अमेरिका से अपने व्यापारिक रिश्तों को सुरक्षित रखे, वहीं दूसरी ओर रूस और चीन के साथ भी सामरिक सहयोग को बनाए रखे। मोदी-जिनपिंग की मुलाकात इसी चुनौतीपूर्ण पृष्ठभूमि में हो रही है।
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पीएम मोदी की चीन यात्रा इसलिए भी अहम हो जाती है कि भारत चाहता है कि चीन के साथ सीमा पर शांति और स्थिरता बहाल करने के लिए एक ठोस रोडमैप पर सहमति बने। विदेश मंत्री एस. जयशंकर का हालिया चीन दौरा इसी मकसद का हिस्सा था, जिसमें जल संसाधन डेटा, व्यापार प्रतिबंध और LAC पर तनाव कम करने जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई थी। वहीं भारत की दूसरी अहम जरूरत है व्यापार असंतुलन को दूर करना। चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, लेकिन यह संबंध असमानता से भरा है। यदि मोदी-जिनपिंग वार्ता में व्यापारिक अवरोध कम करने और निवेश सहयोग पर सहमति बनती है, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा राहतकारी कदम होगा। SCO महज एक मंच नहीं बल्कि एशियाई सामरिक समीकरणों का प्रयोगशाला है। इसकी स्थापना 2001 में चीन और रूस ने की थी और आज इसमें भारत, पाकिस्तान और ईरान जैसे देश भी शामिल हैं।
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प्रधानमंत्री मोदी का यह चीन दौरा भारत की विदेश नीति की एक अहम परीक्षा है। अगर इस मुलाकात से सीमा विवाद पर कोई ठोस प्रगति होती है, तो यह दक्षिण एशिया में शांति की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। परंतु यदि बातचीत केवल औपचारिकता तक सीमित रह गई, तो यह भारत-चीन रिश्तों की लंबी ठहराव भरी यात्रा को और आगे खींच देगी।
अंततः, भारत को इस कूटनीतिक दौर में अपनी रणनीति “संतुलन” की बनानी होगी – अमेरिका, रूस और चीन तीनों ध्रुवों के बीच ऐसा संतुलन जो उसके आर्थिक हितों को भी साधे और सामरिक मजबूती को भी बनाए रखे। तियानजिन की यह भेंट शायद इस संतुलन की दिशा में पहला बड़ा कदम साबित हो।
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