क्या 3 संभाग-9 जिलों के निरस्तीकरण से बदलेगा भजन सरकार का परसेप्शन…?

क्या 3 संभाग-9 जिलों के निरस्तीकरण से बदलेगा भजन सरकार का परसेप्शन…?

राजस्थान की भजनलाल सरकार का सबसे बड़ा फैसला

सरकार के लिए साबित होगा फायदे का सौदा या बनेगा चुनौती…?

विजय श्रीवास्तव। 

जयपुर,(dusrikhabar.com)। भजनलाल सरकार ने हाल ही में अपनी सरकार का एक वर्ष पूरा किया है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जयपुर आए और भजनलाल की पीठ थपथपाकर गए। ये कोई छोटी बात नहीं इस पर मुख्यमंत्री भजनलाल को भी गर्व है और उनकी पूरी टीम को इस पर नाज है। हालांकि इसके मायने जनता और राजनेता अपने अपने हिसाब से लगा ही लेंगे लेकिन प्रदेश सरकार ने पिछले एक साल में कई अहम फैसले लिए और बहुप्रतिक्षित माने जाने वाले अपने कमिटमेंट को सरकार ने शनिवार शाम कैबिनेट में पूरा कर अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि उसे आगे क्या करना है? ( The perception of Bhajan government will change due to the cancellation of 3 division-9 districts… PM Modi patted CM Bhajan Lal’s back…!)

कड़ाके की ठंड में भी राजस्थान का राजनीति पारा चढ़ा

दिसम्बर महीने में कड़ाके की ठंड में भजनलाल सरकार के एक फैसले से राजनीति का पारा तो बढ़ ही गया है साथ ही यह फैसला कई मायनों में अहम इसलिए हो गया है कि जिलों के रेखांकन को लेकर राजस्थान का नक्शा एक बार फिर अपने बदले रूप में दिखेगा, वहीं सरकारी तंत्र में भी बड़ा बदलाव हो जाएगा। हालांकि सरकार के लिए यह फैसला इतना आसान नहीं है इसलिए सरकार अब चाहकर भी इस फैसले को बदल नहीं पाएगी।
पिछले साल विधानसभा चुनावों में जहां गहलोत सरकार ने 17 जिले और तीन नए संभाग बनाकर लोगों की मांगों को पूरा किया था और इस पर भाजपा के आरोपों के मुताबिक चुनावों में राजनीतिक फायदा लेने के लिए गहलोत सरकार ने आनन-फानन में ये घोषणाएं की थीं, तब भाजपा की ओर से सत्ता में आते ही नए जिलों और संभाग को लेकर जांच की बात कर कमेटी का गठन किया गया था। जिसका उद्देश्य था कि इन नए जिलों और संभागों से क्या फायदा, क्या नुकसान? को लेकर एक रिपोर्ट तैयार हो। हाल ही में सरकार द्वारा गठित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट जब सरकार को सौंपी तो रिपोर्ट के अनुसार नए जिलों और संभागों में कुछ को छोड़ कर बाकी से जनता को कोई सीधा लाभ नहीं मिलने वाला। 

बढ़ रहा था सरकार पर अतिरिक्त भार

कांग्रेस की गहलोत सरकार के निर्णयों पर भाजपा की सरकार बनते ही मंत्रिमंडल ने आरोप पर प्रतिक्रिया देना शुरु किया, इस दौरान भाजपा सरकार की ओर से विशेषज्ञों की राय ली गई और सरकार ने पूर्ववर्ती गहलोत सरकार के अंतिम छह माह में लिए गए कई बड़े निर्णयों की निष्पक्ष जांच और पुनर्विचार के लिए गठित कमेटी ने जांच शुरु कर दी, कमेटी ने गहलोत सरकार ने जो नए जिले और संभाग बनाए थे वो वाकई जरूरी थे या नहीं इस पर अपनी रिपोर्ट दी तो यह खुलासा हुआ कि प्रदेश में एक साल पहले बने तीन संभाग और 17 में से 9 जिलों को निरस्त किया जा सकता है क्योंकि नए संभाग और जिलों से राज्य की सरकार पर अतिरिक्त करोड़ों रुपए का भार पड़ने लगा। साथ ही सरकार को इसके लिए अतिरिक्त मैन पावर की जरूरत भी पड़ने लगी। अब इन सब अतिरिक्त खर्चों को खत्म करने के लिए सरकार को कोई बड़ा निर्णय तो लेना ही था। बस फिर क्या एक साल पूरा होने पर भजन सरकार ने ये साहसिक निर्णय ले लिया। लेकिन क्या यह निर्णय सरकार के पक्ष में होगा या फिर इस निर्णय पर सरकार को पुनर्विचार करना होगा। हालांकि सरकार को इसको लेकर बड़ी चुनौतियों के साथ विरोध का सामना भी करना पड़ सकता है लेकिन अब ऐसा लगता है कि यू टर्न सरकार के पक्ष में नहीं होगा।

सरकार के पास है कोई दूर की कौड़ी

राजनीतिक विश्लेषकों और सरकारी नौकरी से रिटायर हुए वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों का भी ऐसा मानना है कि राजस्थान में अभी इतने सारे नए जिलों और संभाग की जरूरत नहीं थी। पूर्ववर्ती सरकार के इस फैसले से न सिर्फ सरकार पर वित्तीय भार बढ़ गया था बल्कि जिम्मेदारियां भी बढ़ गई थीं। वर्तमान सरकार के नए 17 जिलों में से 9 जिले दूदू, केकड़ी, गंगापुर सिटी, नीम का थाना, सांचौर, शाहपुरा, अनूपगढ़, जोधपुर ग्रामीण और जयपुर ग्रामीण और 3 संभाग सीकर, पाली और बांसवाड़ा को निरस्त करने के फैसले से सरकार को शासन करने और जनता के हितों का ध्यान रखने में बड़ा सहयोग मिलेगा। संभाग और जिले कम करने के पीछे सरकार के पास शायद कोई दूर की कौड़ी है। गहलोत सरकार ने जब जिलों की घोषणा की थी तब कई जिलों को लेकर जनता का एक तबका इसके पक्ष में नहीं था और गैर जरूरी जिलों को कम करने का फैसला भाजपा पहले ही कर चुकी थी, लेकिन लोकसभा और राज्यसभा चुनावों के कारण सरकार इस पर कोई एक्शन नहीं ले पाई। परन्तु अब इस फैसले के बाद सरकार का ये परसेप्शन बन जाएगा कि भाजपा के लोग जो कहते हैं वो करते भी हैं।

बदल जाएगा राजस्थान का भौगोलिक नक्शा, चुनौतियों भरी होगी सरकार की डगर

दूसरी तरफ इस मामले से मतभेद रखने वाले कुछ राजनीतिक विश्लेषकों को ऐसा लगता है कि सरकारें कोई भी हों जनता का भला कम और अपना भला ज्यादा देखती हैं। सरकारें अपने दलों की राजनीतिक पकड़ के हिसाब से कार्यों को लेकर फैसले लेती हैं। शेखावाटी और बांसवाड़ा में कांग्रेस की पकड़ अधिक मजबूत है। अब विपक्ष विधानसभा में इसको लेकर मुद्दा बनाए रखेगी और सरकार के सामने इसे लेकर कई चुनौतियां सामने आएंगी भी। वहीं जिन जिलों और संभाग को निरस्त किया गया है वहां की जनता सरकार को घेरने का प्रयास करेगी। संभाग और जिलों को निरस्त करने के लिए सरकार के फैसले के बाद अब सिर्फ नोटिफिकेशन जारी होना बाकी है और इसके बाद पुराने जिले खत्म हो जाएंगे और नए जिलों की सीमाओं का सीमांकन हो जाएगा। यानि एक बार फिर राजस्थान के भौगोलिक और राजनीतिक नक्शे में परिवर्तन होगा। हालांकि सरकार के ही एक मंत्री का ये बयान भी सामने आया है कि अगर जनता का विरोध हुआ तो सरकार इस पर पुनर्विचार करेगी लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि सरकार अब अपने फैसले को बदलने के बारे में सोचेगी भी। 
बहरहाल भाजपा सरकार के लिए ये फैसला कांटों भरा ताज बना रहे क्योंकि कांग्रेस के दिग्गजों ने सरकार के इस फैसले का विरोध करना शुरू कर दिया है और आगे भी कांग्रेस इसका विरोध जारी रखेगी। लेकिन अब चाहे जो भी हो भजनलाल सरकार के इस फैसले से एक बात तो तय हो गई है कि नई सरकार आने वाले समय में कई और बड़े फैसले लेगी जो सकता है जो हो सकता है अन्य दलों की गले की फांस बन सकते हैं जैसे पेपरलीक प्रकरण की जांच अभी बाकी है…
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