
पुतिन के भारत दौरे पर टिकी दुनिया की निगाहें, रूसी राष्ट्रपति पुतिन की सीक्रेट स्ट्रेजी…
पुतिन का भारत दौरा 2025: क्या है मोदी–पुतिन की सीक्रेट स्ट्रेटेजी?
अमेरिका से तनातनी के बीच भारत की रूस से सबसे बड़ी उम्मीदें क्या हैं?
दोनों देशों की क्या-क्या हैं जरूरतें
तेल और अमेरिकी दबाव के बीच टेक्नोलॉजी ट्रांसफर
दिल्ली ब्यूरो। जयपुर, dusrikhabar.com। यूक्रेन युद्ध के बाद व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा सिर्फ़ औपचारिक यात्रा नहीं, बल्कि भारत–रूस संबंधों की असली अग्निपरीक्षा बनकर सामने आया है। एक तरफ़ भारत की उम्मीदें—सस्ता तेल, रक्षा सौदे, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, तो दूसरी तरफ़ वैश्विक दबाव—अमेरिका की नाराजगी, पश्चिमी प्रतिबंधों का दौर, और बदलता वैश्विक शक्ति संतुलन। सवाल बड़ा है—क्या मोदी–पुतिन की सीक्रेट स्ट्रेटेजी इस संबंध को नए दौर में मजबूत बनाए रख पाएगी?
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भारत को पुतिन की इस यात्रा से क्या सबसे बड़ी उम्मीद है?
भारत सरकार का फोकस इस समय आर्थिक संतुलन और द्विपक्षीय व्यापार को मजबूत करने पर है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में साफ कहा था कि भारत रूस से भारी मात्रा में खरीद करता है, लेकिन निर्यात बेहद कम है। भारत इस असंतुलन को सुधारना चाहता है। दिलचस्प बात यह है कि क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव भी खुले तौर पर मान चुके हैं कि रूस भारत से अधिक सामान खरीदना चाहता है। यह महज संयोग नहीं—यह संकेत है कि दोनों देश दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि वे आर्थिक मोर्चे पर एकमत और विश्वसनीय साझेदार हैं।
रूस रक्षा पर, भारत आर्थिक एजेंडा पर—दोनों अपनी-अपनी रणनीति क्यों अलग दिखा रहे?
जहां भारतीय अधिकारी रक्षा मुद्दों पर संयमित बयानों का सहारा ले रहे हैं, वहीं पेस्कोव स्पष्ट कह चुके हैं कि SU-57 फाइटर जेट, S-400 सिस्टम, और उच्चस्तरीय रक्षा सहयोग एजेंडे में हैं।
इससे दो बातें साफ होती हैं:
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रूस रक्षा को प्राथमिकता दे रहा है।
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भारत आर्थिक संतुलन को आगे बढ़ाना चाहता है।
दरअसल, दोनों देश मिलकर दुनिया के सामने एक संतुलित कूटनीतिक तस्वीर पेश कर रहे हैं।
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भारत के लिए क्या दांव पर है? सस्ता तेल–S400–स्टेल्थ जेट–परमाणु पनडुब्बी तक लंबी सूची
भारत की जरूरतें कम नहीं:
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सस्ता रूसी तेल
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S-400 एयर डिफेंस सिस्टम
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परमाणु पनडुब्बी परियोजना
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फाइटर जेट टेक्नोलॉजी ट्रांसफर
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SU-30MKI अपग्रेड्स
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स्टेल्थ फाइटर (SU-57) पर साझेदारी
वहीं रूस चाहता है:
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भारत जैसा भरोसेमंद बड़ा बाजार
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पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच आर्थिक रास्ता
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टेक्नोलॉजी और संयुक्त उत्पादन के लिए दीर्घकालिक साझेदारी
यानी इस यात्रा का मूल है—Give and Take Diplomacy, ज्यादा शोर नहीं, ज्यादा परिणाम।
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क्रेन युद्ध के बाद व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा कई मायनों में ऐतिहासिक है। यह कोई सामान्य राजनयिक यात्रा नहीं, बल्कि भारत–रूस संबंधों की सबसे बड़ी परीक्षा है। भारत जहां रक्षा सौदों, सस्ते तेल, उर्वरक, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए रूस पर निर्भर है, वहीं वह अमेरिका को नाराज़ भी नहीं करना चाहता। दूसरी ओर रूस पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच भारत जैसे भरोसेमंद बाजार को मजबूत करना चाहता है।
भारत और रूस—क्या अब भी उतने ही करीब?
भारत और रूस दशकों से करीबी रणनीतिक साझेदार रहे हैं, लेकिन वैश्विक समीकरण बदल चुके हैं। सवाल उठता है—क्या दोनों देश अब भी उतने नजदीक हैं जितने पहले हुआ करते थे, या फिर दोनों अपनी-अपनी रणनीति से आगे बढ़ रहे हैं?
आर्थिक संतुलन की कोशिश
भारत रूस से तेल और रक्षा उपकरण भारी मात्रा में खरीदता है, लेकिन निर्यात नगण्य है। इसी को सुधारने की दिशा में भारत इस यात्रा को बड़ा अवसर मान रहा है। रूस भी इस दिशा में सकारात्मक संकेत दे चुका है।
रक्षा–कूटनीति की दो अलग धारणाएं
जहां भारत खुलकर रक्षा को मुख्य एजेंडा नहीं बताता, वहीं रूस इसे प्राथमिकता दे रहा है। SU-57, S-400, परमाणु पनडुब्बी—ये सभी मुद्दे शीर्ष नेतृत्व की बातचीत में शामिल हैं। भारत इन समझौतों को कम प्रोफ़ाइल रखना चाहता है ताकि अमेरिका नाराज़ न हो—यही Silent Diplomacy है।
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रक्षा क्षेत्र की हकीकत
भारत को 42 स्क्वॉड्रन की क्षमता चाहिए। S-400 की बाकी डिलीवरी लंबित है। SU-30MKI अपग्रेड जरूरी है। परमाणु पनडुब्बी परियोजना की टाइमलाइन फाइनल नहीं।
उधर चीन-पाकिस्तान समीकरण तेजी से बदल रहा है—पाकिस्तान J-35 स्टेल्थ फाइटर ले रहा है, जबकि भारत के पास स्टेल्थ जेट नहीं है। इसलिए SU-57 साझेदारी भारत की सुरक्षा रणनीति के लिए निर्णायक हो सकती है। युद्ध के कारण रूस की उत्पादन क्षमता प्रभावित हुई है। इसलिए कई परियोजनाएं धीमी हैं—यही भारत की सबसे बड़ी चिंता है।
तेल और अमेरिकी दबाव
भारत ने रूस से तेल आयात 23 अरब डॉलर से बढ़ाकर 52.7 अरब डॉलर कर दिया है। अमेरिका के 50% टैरिफ़ के बाद भारत पर दबाव बढ़ा, लेकिन भारत ने स्पष्ट कहा—निर्णय व्यावसायिक आधार पर होगा। तेल आयात में 31.8% की हिस्सेदारी के बावजूद रूस भरोसा दिला रहा है कि सप्लाई कम नहीं होगी।
उर्वरक सुरक्षा: रूस पर गहरी निर्भरता
भारत ने 2024 में रूस से 4.7 मिलियन टन उर्वरक खरीदा — यह 2021 से 4 गुना ज्यादा है। यानी भारत की Fertilizer Security रूस पर निर्भर है। भारत लंबे समय का सप्लाई समझौता चाहता है।
टेक्नोलॉजी ट्रांसफर — साझेदारी का भविष्य
संयुक्त रिसर्च, R&D, पार्ट्स का संयुक्त निर्माण—यह भारत को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाएगा और रूस को पश्चिम के बाहर एक मजबूत बाजार देगा। यही आधुनिक भारत–रूस साझेदारी का भविष्य है।
कुल मिलाकर तस्वीर साफ है…
भारत–रूस संबंध आज सरल नहीं, पर कमजोर भी नहीं। दोनों देश दबावों से घिरे हैं, लेकिन एक-दूसरे के बिना विकल्प भी नहीं है। यही कारण है कि पुतिन का यह दौरा बड़े दिखावटी ऐलान नहीं, बल्कि रिश्तों को स्थिर, संतुलित और व्यवहारिक बनाने की रणनीति है।
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