
”कठपुतलियां” नाटक के मंचन ने खोल दी अंर्तमन की परतें…!
दर्पण सभागार में नाटक ”कठपुतलियां” का मंचन
जवाहर कला केन्द्र, जयपुर (जेकेके) और पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में उदयपुर में युवा नाट्य समारोह का समापन
भीलवाड़ा के कलाकारों ने खेला नाटक ‘कठपुतलियां’
जवाहर कला केन्द्र, जयपुर और पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर की ओर से हुआ आयोजन
उदयपुर,(dusrikhabar.com) जवाहर कला केन्द्र, जयपुर (जेकेके) और पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में दर्पण सभागार, शिल्पग्राम में आयोजित युवा नाट्य समारोह का रविवार को समापन हुआ। जेकेके के आउटरीच प्रोग्राम के तहत हुए समारोह ने युवाओं की ऊर्जा, रचनात्मकता और रंगमंच में प्रयोग से तैयार नाटकों से रूबरू करवाया। अंतिम दिन वरिष्ठ साहित्यकार मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी से प्रेरित नाटक ‘कठपुतलियां’ का मंचन हुआ। भीलवाड़ा के अनुराग सिंह राठौड़ ने नाट्य रूपांतरण व निर्देशन किया और उनके साथी कलाकारों ने मंच पर अपना अभिनय कौशल दिखाया।
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कलाकारों ने मुखौटा पहन बखूबी निभाया कठपुतलियों का किरदार,बजती रहीं तालियां..
नाटक मनुष्य के अंतर्मन की परतों को खोलते हुए दर्शाता है कि कामनाओं के मोह पाश में बंधा इंसान दृष्टिहीन होकर उनकी पूर्ति की ओर बढ़ता है तो कठपुतलियों की तरह ही हो जाता है। मन उसे इधर—उधर दौड़ाता रहता है। वहीं संयम के साथ जब वह विचार करता है तो प्रेम और मोह के अंतर को समझ पाता है। नाटक की नायिका अपने ही कथित प्रेम के लावण्य में जिस तरह उलझी रहती है और अंततः वो चेतन होकर यह समझ पाती है की स्त्री केवल मोहपाश में बंधी हुई कोई भौतिक वस्तु ना होकर के एक सृजनकर्ता, ममत्व से भरी हुई, प्रकृति, मां है। नाटक लोक कलाकारों की कमजोर सामाजिक और आर्थिक स्थिति को भी सामने लाकर रखता है।
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दुधमुंहे बच्चे को छोड़ रामकिशन की पत्नी कह गई अलविदा, सुगना को था जग्गू से प्यार फिर रामकिशन से…
कहानी का नायक है प्रसिद्ध कठपुतली कलाकार रामकिशन जिसका जीवन दुर्भाग्य की भेंट चढ़ गया है। दुधमुंहे बच्चे को छोड़कर उसकी पत्नी दुनिया को अलविदा कह चुकी है। रामकिशन पर बच्चे और घर दोनों की जिम्मेदारी आ जाती है। रामकिशन जहां भी कठपुतली का खेल दिखाने जाता है बच्चे को साथ ले जाता है।
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इधर नाटक की नायिका दूसरे गांव में रहने वाली सुगना है जो जग्गू गाइड से प्यार करती है। जग्गू उसे सब्जबाग दिखाता है और जीप खरीदने के बाद शादी करने की बात कहता है। सुगना के परिजन उसका विवाह रामकिशन से कर देते है। सुगना जग्गू को भुला नहीं पाती है और उसका मन बार-बार उसे बीते दिनों में ले जाता है।
वहीं सरल स्वभाव और उदारमना रामकिशन सुगना की हर भावना की कदर करता है। अंतत: सुगना को रामकिशन की नेकदिली का एहसास होता है और वह खुशी-खुशी अपनी गृहस्थी बसाती है। नाटक में पात्रों को कठपुतली की तरह दिखाने के लिए मुखौटों का बखूबी प्रयोग किया गया है जो दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींचता है।
कठपुतलियां में कलाकारों जीवंत अभिनय
नाटक में कुलदीप सिंह, नारायण सिंह चौहान, शिवांगी बैरवा, हितेश नलवाया, प्रभु प्रजापत, विभूति चौधरी, अंकित शाह, दुष्यंत हरित व्यास, आराधना शर्मा, गरिमा पंचोली, पूजा गुर्जर, दिव्या ओबेरॉय, नवीन चौबिसा, दिनेश चौधरी आदि कलाकरों ने अभिनय किया। प्रकाश व्यवस्था रवि ओझा, सेट व प्रॉपर्टी हर्षित वैष्णव, के जी कदम की रही। दुर्गेश चांदवानी ने कुशल मंच संचालन किया।