
कॉन्सर्ट टूरिज्म के सुरों का पहला ताना-बाना राजस्थान से
कॉन्सर्ट टूरिज्म के सुरों का पहला ताना-बाना राजस्थान से
देश के 16 शहरों, गांवों और ढाणियों से चुनकर आए 28 कलाकारों ने दी प्रस्तुति
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यह आयोजन सिर्फ एक सांस्कृतिक प्रस्तुति नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक घोषणा थी कि राजस्थान केवल इतिहास की बात नहीं, आज का जीवंत उत्सव है और जब बात हो पर्यन व संस्कृति की, तो राजस्थान सिर्फ एक राज्य नहीं, भारत की धड़कन है।
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GITB की सांस्कृतिक संध्या में संगीत, परंपरा और आधुनिकता का अनूठा संगम
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राजस्थान बना देश में कॉन्सर्ट टूरिज्म की शुरुआत करने वाला पहला राज्य
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उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी का विज़न: “पर्यटन अब सिर्फ स्थल नहीं, अनुभव भी है”
जयपुर,(dusrikhabar.com)। ग्रेट इंडियन ट्रेवल बाजार (GITB) 2025 के पहले दिन होटल अनन्तारा के प्रांगण में संगीत गूंजा, तो राजस्थान की धरती से कॉन्सर्ट टूरिज्म का नया सफर शुरू हुआ। यह सिर्फ एक सांस्कृतिक संध्या नहीं, बल्कि एक नई सोच, नए आंदोलन और सांस्कृतिक नवाचार की शुरुआत थी। राजस्थान ने इस आयोजन के माध्यम से भारत को वैश्विक मंच पर कॉन्सर्ट टूरिज्म हब बनाने की दिशा में पहला ठोस कदम बढ़ाया है।
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पर्यटन अब अनुभव है, केवल भ्रमण नहीं — उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी
इस अवसर पर राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी ने कहा,”आज का पर्यटक सिर्फ किले, महल और स्मारकों को देखने के साथ ही अविस्मरणीय अनुभव चाहता है जिसमें संगीत, संस्कृति और जीवंतता शामिल हो। कॉन्सर्ट टूरिज्म उसी दिशा में हमारा रचनात्मक प्रयास है। उन्होंने कहा कि राजस्थान वह धरती है जहां लोकगीतों में जीवन धड़कता है और नृत्य में आत्मा बसती है। आज हमने इन्हीं भावनाओं को वैश्विक स्तर पर पहुंचाने की शुरुआत की है। आने वाले समय में हम देश-विदेश के कलाकारों को आमंत्रित कर कॉन्सर्ट टूरिज्म की श्रृंखलाएं शुरू करेंगे।
संगीत में बुनी गई परंपरा और आधुनिकता की कथा
पर्यटन विभाग के अतिरिक्त निदेशक आनंद त्रिपाठी ने बताया कि यह आयोजन सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं था, बल्कि एक संगीतमय कथा की तरह रचा गया, जिसमें परंपरागत लोकसंगीत और आधुनिक संगीत साधनों के बीच संवाद स्थापित किया गया। इस कार्यक्रम का निर्देशन किया कला मर्मज्ञ विनोद जोशी द्वारा किया गया।
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राजस्थान की लोक परंपराएं वैश्विक सुरों से बोलीं
कार्यक्रम की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि यह किसी एक शैली तक सीमित नहीं रहा। मांगणियार, लंगा, मेघवाल, दमामी, जोगी जैसे छह प्रमुख लोकसंगीत समुदायों के कलाकार एक साथ मंच पर प्रस्तुत हुए। देश के 16 शहरों, गांवों और ढाणियों से चुनकर लाए गए 28 कलाकारों ने खड़ताल, कमायचा, भपंग जैसे पारंपरिक वाद्यों के साथ-साथ सैक्सोफोन, कीबोर्ड, गिटार और क्लैपबॉक्स जैसे आधुनिक वाद्ययंत्रों पर भी बेहतरीन प्रस्तुति दी।
संगीत का अनुभव, भावनाओं की अभिव्यक्ति
संध्या की शुरुआत “केसरिया बालम” की मधुरता से हुई और फिर “बलम जी म्हारा…”, “वारी जाऊं रे…” जैसे लोकगीतों ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया। यह स्पष्ट हुआ कि लोकगीत सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन की सजीव अनुभूतियों का माध्यम हैं।
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लोक नृत्य की मोहक प्रस्तुति ने बांधा समां
विश्वविख्यात कालबेलिया नृत्यांगनाएं जब मंच पर आईं, उनके नृत्य की भाषा ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पारंपरिक और समकालीनता का ऐसा सुंदर समावेश मंच पर कम ही देखने को मिलता है। गौरतलब है कि यूनेस्को द्वारा कालबेलिया नृत्य को अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में सूचीबद्ध किया गया।
राजस्थानः-संस्कृति का उत्सव, परंपरा का नवाचार
यह आयोजन सिर्फ एक सांस्कृतिक प्रस्तुति नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक घोषणा थी कि राजस्थान केवल इतिहास की बात नहीं, आज का जीवंत उत्सव है और जब बात हो पर्यन व संस्कृति की, तो राजस्थान सिर्फ एक राज्य नहीं, भारत की धड़कन है।
राजस्थानी लोक संगीत वादक एवं गायक
भगूरा ख़ान- खड़ताल, चगनाराम – मटका, भुट्टा ख़ान – गायन, लतीब ख़ान – गायन,नेहरू ख़ान – हारमोनियम, चंनण ख़ान – ढोल, मंजूर ख़ान – ढोलक,देवू ख़ान – खड़ताल, लतीफ़ ख़ान – मोरचंग, रहीश ख़ान – खड़ताल, निहाल ख़ान – ढोलक, शंकरा राम – मटका, कोड़े ख़ान – कमायचा. फ्यूज़ लैंगा – सारंगी, भगाड़े ख़ान – कमायचा, मनीष कुमार – नगाड़ा, सवाई ख़ान – ढोलक, जाकिर ख़ान – भपंग, सद्दाम लैंगा – सारंगी, अमन – भपंग, जोगा ख़ान – ढोल, रोशन ख़ान – मोरचंग, दादा ख़ान – तंदूरा, शाकूर ख़ान – अल्गोज़ा।
वेस्टर्न म्यूज़िक ग्रुप
- तौसीफ़ ख़ान – क्लैपबॉक्स, राजा हुसैन – कीबोर्ड, फिरोज़ अली – सैक्सोफोन, योगेश मीणा – गिटार।
- कालबेलिया डांस ग्रुपः- खातू सापेरा, भूरकी, राधा, धापू, संगीता।