अरावली पर सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश, पुराने पर स्टे,100 मीटर से छोटे पर्वत..

अरावली पर सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश, पुराने पर स्टे,100 मीटर से छोटे पर्वत..

अरावली केस में सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश

100 मीटर से छोटी पहाड़ियों पर खनन पर लगाई रोक

अपने ही आदेश पर SC ने लगाया स्टे, 21 जनवरी 2026 तक खनन गतिविधियां ठप

एक्सपर्ट कमेटी बनाएगा सुप्रीम कोर्ट, चार राज्यों और केंद्र को नोटिस

विजय श्रीवास्तव,

दिल्ली/जयपुर,dusrikhabar.com। अरावली पर्वतमाला को लेकर जारी सियासी और पर्यावरणीय बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट ने अहम कदम उठाते हुए अपने ही आदेश पर रोक लगा दी है। अदालत ने 20 नवंबर को दिए गए उस आदेश को फिलहाल स्थगित कर दिया है, जिसमें 100 मीटर से छोटी पहाड़ियों पर खनन की अनुमति दी गई थी। अब 21 जनवरी 2026 तक अरावली क्षेत्र में किसी भी तरह का नया खनन नहीं हो सकेगा।

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CJI सूर्यकांत की वैकेशन बेंच का फैसला, सिफारिशें फिलहाल लागू नहीं

सोमवार को मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और एजी मसीह की वैकेशन बेंच ने अरावली केस की सुनवाई की। CJI ने स्पष्ट निर्देश दिए कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट और उस पर आधारित सुप्रीम कोर्ट की पूर्व टिप्पणियां फिलहाल अस्थगित (abeyance) रहेंगी।
अदालत ने साफ किया कि अगली सुनवाई तक इन सिफारिशों को लागू नहीं किया जाएगा, जिनमें 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली मानने का सुझाव शामिल था।

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गलतफहमियों को दूर करने के लिए बनेगी हाई पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि इस मामले में अदालत के आदेशों और सरकार की भूमिका को लेकर कई भ्रम और गलत व्याख्याएं फैलाई जा रही हैं। उन्होंने कहा कि इन्हीं भ्रमों को दूर करने के लिए विशेषज्ञ समिति गठित की गई थी, जिसकी रिपोर्ट को अदालत ने पहले स्वीकार किया था।
इस पर CJI सूर्यकांत ने कहा कि अदालत की टिप्पणियों का भी गलत अर्थ निकाला जा रहा है, जिससे स्थिति और जटिल हो गई है। ऐसे में निष्पक्ष और स्वतंत्र मूल्यांकन आवश्यक है।

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चार राज्यों को नोटिस, नई परिभाषा पर उठे सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार और अरावली से जुड़े चार राज्यों—राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और हरियाणा को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। अदालत ने संकेत दिया कि 100 मीटर ऊंचाई के आधार पर अरावली की नई परिभाषा पर व्यापक और गहन विचार जरूरी है।
इसी कारण अदालत ने प्रस्ताव रखा है कि एक हाई पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी गठित की जाए, जो मौजूदा रिपोर्ट का विश्लेषण कर कोर्ट को स्पष्ट सुझाव दे।

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