
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, कैसे तय हुआ यह नाम, RSS नहीं तो क्या होता संघ का नाम? संघ का नामकरण, विचार से संकल्प तक…
संघ की स्थापना से पहले नामकरण की चुनौती
‘जरी पटका मंडल’ और अन्य प्रस्तावों पर हुई वोटिंग
डॉ. हेडगेवार की दृष्टि: क्यों चुना गया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ?
विजय श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार।
जयपुर, dusrikhabar.com। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 साल पूरे होने पर उसकी यात्रा के छुए अनछुए पहलुओं में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का नाम RSS कैसे पड़ा, किसने यह नाम सुझाया और यह नाम नहीं होता क्या संघ का नाम क्या होता, इस नाम के पीछे की पूरी रोचक प्रक्रिया पर बात होगी। दरअसल शुरुआत में जब संघ की स्थापना हुई थी, तब उसके नाम को लेकर बड़ी असमंजस की स्थिति थी। वोटिंग और गहन चर्चा के बाद प्रस्तावित नामों में ‘जरी पटका मंडल’ और ‘भारतोद्धार मंडल’ चर्चा में थे। बावजूद इसके 26 में से 20 वोटों के साथ आखिरकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम चुना गया।
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS की स्थापना को लगभग सात महीने ही हुए थे कि 17 अप्रैल 1926 को डॉ. केशव बलराम हेडगेवार ने अपने घर पर एक अहम बैठक बुलाई। इसमें 26 स्वयंसेवक शामिल हुए और संगठन के नाम पर सुझाव मांगे गए।
बैठक की वजह थी नागपुर की रामटेक तहसील,जो कि वहां की तीर्थ स्थली भी थी, जहां हर साल रामनवमी को त्योहार की मनाते थे और उस दिन वहां पर बड़ी भीड़ जुटती थी, अंग्रेजी राज में उस भीड़ को नियंत्रित करने की कोई व्यवस्था नहीं थी। डॉ. हेडगेवार का मानना था कि अगर अनुशासित स्वयंसेवक वहां व्यवस्था संभालें तो समाज में अच्छा संदेश जाएगा। लेकिन बिना नाम के संगठन को पहचान नहीं मिल सकती थी। बस फिर क्या था समस्या के समाधान के लिए तुरंत एक बैठक रखी गई जिसमें नामकरण का प्रक्रिया पूरी हुई।
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नामकरण की प्रक्रिया
बैठक में तीन नाम फाइनल वोटिंग के लिए आए –
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
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जरी पटका मंडल
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भारतोद्धार मंडल
रिपोर्ट के अनुसार, 20 वोटों से बहुमत के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम चुना गया। ‘जरी पटका मंडल’ को 5 वोट मिले और ‘भारतोद्धार मंडल’ को केवल सुझाव देने वाले सदस्य का समर्थन मिला। संघ से जुड़े सूत्रों के अनुसार बैठक में सुझाए गए नाम “जरी पटका मंडल” ‘पेशवाई” से जुड़ा था और इस भगवा प्रतीक का बड़ा आदर हमेशा से रहा है। इस बैठक में उपस्थित रहे प्रोफेसर पीके सावलापुरकर के अनुसार, “जरी पटका मंडल नाम का सुझाव प्रथम वर्ष के एक कॉलेज छात्र ने दिया था, वो छात्र कुछ समय बाद जज साहब बन गए”। गौरतलब है कि प्रोफेसर का ये भी दावा है कि ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ नाम डॉक्टर हेडगेवार के मन में पहले से था।
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क्यों नहीं रखा गया ‘हिंदू’ या ‘महाराष्ट्र’?
हैडगेवार की बैठक में ‘शिवाजी संघ’, ‘महाराष्ट्र स्वयंसेवक संघ’ और ‘हिंदू स्वयंसेवक संघ’ के नाम का भी सामने आया लेकिन डॉ. हेडगेवार ने साफ कहा कि संगठन का उद्देश्य केवल एक राज्य या एक महापुरुष तक सीमित नहीं होना चाहिए। नाम ऐसा हो जो पूरे भारत को जोड़ सके। इसी वजह से ‘हिंदू स्वयंसेवक संघ’ या ‘महाराष्ट्र स्वयंसेवक संघ’ जैसे नामों को खारिज कर दिया गया। हालांकि वर्तमान “राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ” नाम में ‘हिंदू’ शब्द ना होने पर कई लोगों ने आपत्ति जताई। लेकिन इसमें भी हैडगेवार ने उन्हें समझाया कि ‘हिंदू’ शब्द संकीर्ण नहीं बल्कि व्यापक है और संघ की आत्मा इसी व्यापकता में है। फिर भी लंबे अरसे तक नाम को लेकर चर्चाएं चलती रहीं और एक समय के बाद इस नाम की सार्थकता लोगों को समझ आने लगी।
संघ के शुरुआती दौर की चुनौतियां
संघ के नाम को लेकर लंबी चर्चाएं हुईं। न वेशभूषा तय थी, न प्रमुख का पदनाम और न ही नियम। लेकिन एक बात स्पष्ट थी – संगठन अनुशासन और राष्ट्र सेवा के मार्ग पर ही चलेगा। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से उपयुक्त कोई किसी के जहन में नहीं आया, क्योंकि जब रास्ता तय होगा गया मंजिल तक पहुंचने का तो अब जो भी हो संगठन की दिशा और दशा तय हो गई जो आज भी बरकरार है।
आज जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो यह निर्णय कितना दूरदर्शी था, इसका अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है। “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” नाम में ही वह ऊर्जा, विस्तार और समावेश है जिसने संगठन को एक शताब्दी तक जीवंत और प्रासंगिक बनाए रखा है।
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