अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस आज, पढ़िए, वो सब जो, आप बाघ के बारे में जानना चाहते हैं…

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस आज, पढ़िए, वो सब जो, आप बाघ के बारे में जानना चाहते हैं…

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस आज (International Tiger Day Today)

29 जुलाई 2010 में अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाए जाने की हुई शुरुआत

राजस्थान में फिलहाल 125 से अधिक है बाघों की संख्या

राजस्थान में को मिला छठा टाइगर रिजर्व कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व

विजय श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार।

 

जयपुर, Dusrikhabar.com। आज अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस (International Tiger Day) है, बाघों की आबादी को नियंत्रण करने के लिए आज के दिन यानि 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है और दुनियाभर के बाघों की आबादी की 70फीसदी आबादी भारत में ही पाई जाती है। आज 29 जुलाई का दिन बाघों के प्राकृतिक निवास स्थलों के संरक्षण और अवैध शिकार के खिलाफ संघर्ष को प्रोत्साहित करता है। फिलहाल भारत में बाघों आबादी करीब 3682 है। 

 

Read also: आज कैसा रहेगा आपका दिन, क्या कहता है आज आपका भाग्यांक…?

राजस्थान से आबाद है बाघों का कुनबा

आज का दिन बाघों के लिए विशेष दिन है और अज के दिन टाइगर्स की आबादी या कुनबा बढ़ाने में राजस्थान का जिक्र ना हो तो ये बेमानी होगा। राजस्थान में भी रणथंभौर की बात करना बेहद जरूरी इसलिए है कि आज देश और दुनिया में बाघों के कुनबे में इजाफे के लिए पूरा श्रेय राजस्थान के हर टाइगर रिजर्व से बाघों को भेजा गया और आज देश और दुनिया में राजस्थान से गए टाइगरों के कारण नेशनल पार्क, सेंचुरी और जू बाघ-बाघिनों और शावकों से गुलजार नजर आते हैं।

Read also: लोक गीत-संगीत व वाद्य यंत्रों को सहेजता राजस्थान पर्यटन

 

राजस्थान में बाघों का पुर्नस्थापन और संरक्षण

दरअसल राजस्थान राजाओं का प्रदेश रहा है और जयपुर के राजा महाराजाओं ने रणंथभौर को अपने शिकारगाह के रूप में विकसित किया था। आपको बता दें कि वर्ष 1955 में रणथंभौर को राजस्थान की पहली सेंचुरी बनाया और देश में टाइगर प्रोजेक्ट की स्थापना के समय 1973 में रणथंभौर में राजस्थान का प्रथम टाइगर प्रोजेक्ट केंद्र बनाया गया और कुछ ही वर्षों बाद 1980 में रणथंभौर को नेशनल पार्क का दर्जा प्राप्त हुआ। राजस्थान के सबसे खूबसूरत जंगलों में से एक रणथंभौर को राजस्थान का पहला नेशनल पार्क बनने का गौरव प्राप्त हुआ है।

 

राजस्थान की मशहूर टाइग्रेस T-16 (फिश)

राजस्थान की मशहूर टाइग्रेस जिसके नाम दर्ज हैं कई वर्ल्ड रिकॉर्ड

फिश T-16 ने राजस्थान के नाम को विश्व पटल पर और उछाला जब उसने अपने नाम कई विश्व रिकॉर्ड दर्ज कराए।  इस बाघिन को “द लेडी ऑफ द लेक” और “क्रोकोडाइल किलर” जैसे कई उपनाम भी मिले हैं। 1997 में जन्मी टाइग्रेस फिश T-16 का नाम दुनिया भर में मशहूर है। दरअसल  इस बाघिन के बायीं तरफ एक मछली के आकार का निशान बना है। इस मादा टाइगर ने 2 साल की उम्र में ही शिकार करना शुरु कर दिया था। और तभी इसने अपनी मां के शिकार क्षेत्र पर कब्जा भी कर लिया था। आम तौर पर बाघ औसतन 8 साल तक एक क्षेत्र पर राज कर सकता है लेकिन फिश T-16 ऐसी बाघिन है जिसने रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में करीब 15 साल तक एकछत्र राज किया। इस बाघिन को  लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी मिल चुका है।

Read also: पर्यटन के लिए दो महत्वपूर्ण खबरें, एक सुखद, एक दुखद…!

 

29 जुलाई को ही अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस क्यों?

20वीं सदी में बाघों की घटती संख्या चिंता का विषय बन गई , इसी चिंता को दूर कर बाघों का संरक्षण करने के लिए 2010 में ग्लोबल टाइगर फोरम नामक संस्था की स्थापना की गई। इसके लिए रूस में एक शिखर सम्मेलन का भी आयोजन हुआ। जिसमें बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए 13 बाघ रेंज देशों इस आयोजन में भाग लिया।  बाघों को लेकर हुए एक सर्वे के अनुसार, तब बाघों की संख्या 3200 थी,  जिसे बढ़ाकर 6000 तक लाने का उद्देश्य तय किया गया। और इन सभी देशों ने मिलकर 29 जुलाई को एक संकल्प लिया और इसी कारण आज दुनिया के लगभग सभी देशों में अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है।

Read also: “नाथ के द्वारे शिव” मिराज ग्रुप द्वारा स्थापित मूर्ति का मोरारी बापू ने ही क्यों…?

 

बाघ बिल्लियों की सबसे बड़ी जीवित प्रजाति

बाघ का जिक्र आते ही हमारे दिमाग में एक खूंखार शिकारी जो जंगलों में रहता है जिसके शरीर पर लंबी-लंबी भूरे और काले रंग की धारियां होती हैं की इमेज बन जाती है। बाघों में भी बंगाल टाइगर एशियाई में सबसे सुंदर और आकर्षक प्रजाति मानी जाती है। टाइगर वर्तमान में जीवित सबसे बड़ी जंगली बिल्लियों में शामिल शुमार प्रजाति है।

बाघों के प्रकार और विलुप्त प्रजातियां

भारत में बाघों की करीब 70फीसदी आबादी है। बाघ कई रंगों के होते हैं जैसे सफेद बाघ, काली धारियों वाले सफेद बाघ, काली धारियों वाला भूरा बाघ और गोल्डन टाइगर। जंगलों में उन्हें घूमते देखना पर्यटकों के लिए काफी सुखद-अद्भुत होता है। एशिया ही नहीं बल्कि ऐसा माना जाता है कि दुनिया से भी बाली टाइगर, कैस्पियन टाइगर, जावन टाइगर और टाइगर हाइब्रिड जैसी प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं।

विलुप्त होती टाइगर की प्रजाति

 

Read also: भूरे भालू से राजस्थान वन विभाग-पर्यटकों में उत्साह, लेकिन ये ब्राउन स्लोथ बियर है या…!

शिकार करना बाघ की प्रकृति जो उसे आकर्षक बनाती है

क्या आप जानते हैं बाघ शिकारी जीव जरूर है लेकिन वो सिर्फ भूख लगने पर शिकार करता है। क्योंकि यह उसकी प्रकृति है और न केवल जीव जंतु बल्कि मनुष्य भी भूख लगने पर पेट भरने की जुगत करता ही है। टाइगर के बारे में हम ये समझते हैं कि ये शिकारी जीव है तो किसी पर भी हमला कर सकता है लेकिन वन्यजीव विशेषज्ञों की मानें तो टाइगर जब भूख लगने पर जंगली जानवरों का ही शिकार करता है, अगर उसे शिकार न मिले और यदि वो आदमखोर हो चुका है तभी वह शहरी आबादी की तरफ बढ़ता है। वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार बाघ तभी किसी मनुष्य पर हमला करता है जब उसे मनुष्य से खतरा महसूस होता है। या फिर आबादी में आकर बाघ तभी शिकार करता है जब मनुष्य द्वारा उसके घर यानि जंगल में उस पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की जाती है।

एशिया में बाघों का कहां-कहां है प्रवास

धरती के सबसे ताकतवर और अपनी प्रजाति में सबसे बड़े जीव या पशु के तौर पर टाइगर की पहचान है।

जंगल में रहने वाला यह जीव मांसाहारी स्तनधारी है जो, श्रीलंका, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, तिब्बत को छोड़कर पूरे एशिया में राज करता है। इनमें भी टाइगर भारत, नेपाल, भूटान, कोरिया और इंडोनेशिया में काफी अधिक संख्या में निवास करते हैं। यूं देखा जाए तो बाघों की संख्या देशभर में पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है। इनमें सबसे ज्यादा राजस्थान में बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। राजस्थान में बाघों की संख्या 32 से बढ़कर 125 से भी अधिक हो गई है। वहीं एमपी में देश में बाघों की संख्या करीब 785 है। कर्नाटक में 563, उत्तराखंड में 560 और महाराष्ट्र में 444 के आसपास है।

 

Read also: जिम कार्बेट में बाघ सफारी पर सुप्रीम कोर्ट की रो

 

बाघ जंगल का आकर्षण

बाघ को जंगल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, और जंगल में बाघ की मौजूदगी अन्य वन्य प्राणियों और पशुओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करती है। वहीं जंगल पर्यटन के लिए बाघ प्रमुख आकर्षण भी है, जंगलों में बाघों को देखने के लिए ही पर्यटकों का हुजूम आता है। बाघ के हर मूवमेंट को अपने कैमरे में कैद करने के लिए पर्यटक जंगल सफारी करते है जिसका सीधा फायदा स्थानीय अर्थव्यवस्था को होता है।

International Tiger Day today

क्यों जरूरी है बाघों का संरक्षण ?

भारत में बाघों की संख्या कम होने के पीछे प्रमुख कारण बाघों की खाल और हड्डियों की तस्करी है। जंगलों में तस्कर गैरकानूनी तरीके से बाघों का शिकार कर उनके अंगों की तस्करी करते हैं। शर्मनाक है लेकिन सत्य है कि बाघों की अंगों की तस्करी में मोटा पैसा मिलता है इसलिए कुछ तथाकथित बाघ संरक्षण से जुड़े लोग भी तस्करी से जुड़ जाते हैं, जिनके कारण बाघों का अवैध शिकार होता है। इस गैरकानूनी गतिविधि पर रोक के लिए सख्त कानून की जरूरत है।

Read also: दर्रा से मांउट आबू तक राजस्थान में ये 10  स्थान पर्यटकों के लिए 

 

बाघों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां

  • 2023 के सर्वे के अनुसार भारत में बाघों की संख्या 3682 थी।
  • 1973 में बाघों को बचाने के लिए भारत में प्रोजेक्ट टाइगर की हुई शुरुआत
  • वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF), इंटरनेशनल फंड फॉर एनिमल वेलफेयर (IFAW) और स्मिथसोनियन कंजर्वेशन बायोलॉजी इंस्टीट्यूट (SCBI) जुटे हैं जंगली बाघों के संरक्षण में।
  • बाघों की संख्या घटने के पीछे तस्करी और अवैध शिकार के साथ-साथ प्राकृतिक आवासों की कटाई, जलवायु परिवर्तन, मानव-वन्यजीव संघर्ष भी प्रमुख कारण हैं।
  • राज:स्थान में टाइगर रिजर्व सवाई माधोपुर में रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान, अलवर में सरिस्का टाइगर रिजर्व, कोटा में मुकुंदरा हिल टाइगर रिजर्व, रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य, धौलपुर-करौली टाइगर रिजर्व और कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व (Kumbhalgarh Tiger Reserve) राजस्थान में छठा टाइगर रिजर्व है।
  • थाईलैंड और अफ्रीका ऐसे देश हैं जहां बाघ को पालतू जानवर की तरह पाल सकते हैं। इन देशों में लोग बाघों में स्टेटस सिबंल के तौर पर पालते हैं। वहीं थाईलैंड में तो पर्यटक इन बाघों के साथ फोटो भी खिंचवा सकते हैं। वहां यह टूरिज्म का बड़ा हिस्सा है।

थाईलैंड, अफ्रिका में पालतू की तरह पाले जाते हैं टाइगर

CATEGORIES
TAGS
Share This

COMMENTS

Wordpress (0)
Disqus (0 )

अपने सुझाव हम तक पहुंचाएं और पाएं आकर्षक उपहार

खबरों के साथ सीधे जुड़िए आपकी न्यूज वेबसाइट से हमारे मेल पर भेजिए आपकी सूचनाएं और सुझाव: dusrikhabarnews@gmail.com