
मैं राजस्थान हूं, सदा स्वाभिमानी, खम्मा घणी सा, पधारो म्हारे देश…
खम्मा घणी, पधारो म्हारे देश…
यह सिर्फ शब्द नहीं हैं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपरा की आत्मा
लोगों का मुझ पर भरोसा ही मेरी विरासत… क्योंकि मैं राजस्थान हूं
विजय श्रीवास्तव,
मैं राजस्थान हूं, आज मैं 76वर्ष का हो गया हूं, मेरा जन्म चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 30 मार्च 1949 को हुआ था, हालांकि मैं थोड़ा सा बुजुर्ग हो गया हूं लेकिन मेरी आन-बान और शान अपनी शाही विरासत को लिए आज भी उसी रौबिले अंदाज में बरकरार है। आज भी मेरी विरासत को मेरे लोगों ने संजोए रखा है। मेरे यहां अतिथियों का स्वागत “पधारो म्हारे देश” और “खम्मा घणी” से किया जाता है। यह सिर्फ शब्द नहीं हैं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपरा की आत्मा हैं। मेरे प्रदेशवासी आज भी अपने मेहमानों को “अतिथि देवो भव:” की भावना से सम्मानित करते हैं। मेरी धरती पर आने वाले हर व्यक्ति को प्रेम और अपनापन मिलता है, जिससे वह जीवनभर मेरे रंग में रंगा रहता है।
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मैंने राजपूतों, मराठों, मुगलों और अंग्रेजों का दौर देखा है। मेरे किलों, महलों और हवेलियों की दीवारों में इतिहास की गूंज आज भी महसूस की जा सकती है। मेरे गर्व से सीना ताने खड़े किले, इमारतें और ऐतिहासिक स्मारक दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। जयपुर का हवा महल, उदयपुर का सिटी पैलेस, जोधपुर का मेहरानगढ़ किला, जैसलमेर का सोनार किला और चित्तौड़गढ़ का किला मेरी शौर्यगाथाओं के जीवंत प्रतीक हैं।
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मुझसे मिलने आने वाले हर मेहमान का अतिथि देवो भव: के संस्कार के साथ स्वागत और सत्कार आज भी उसी परंपरा और प्रेमभाव से करने का रिवाज मेरे प्रदेशवासी निभा रहे हैं। मेरी रंगीली संस्कृति और सादगी भरी विरासत से हर कोई सराबोर है। एक बार जो मुझ से मिल लेता है फिर वो मेरे ही रंग में रंग जाता है। फिर उसे कोई दूसरी संस्कृति, परंपराएं, रिवाज, खान-पान और मेरे प्रदेश के गर्व से सीना ताने खड़े किले, इमारतें, महल और शहरों के बाजार के अलावा कुछ याद नहीं रहता।
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मेरे घर के लोगों का सादगी और मेहनतभरा जीवन उनकी सौम्य और सरल भाषा, एक-दूसरे के साथ घुल मिल जाने वाला स्वभाव उन्हें मुझसे कभी जुदा नहीं होने देता। मेरी जुबां, लहजा और बोली के लोग कायल हो जाते हैं। मेरी भाषा राजस्थानी है, जिसमें मिठास और अपनापन है। यहां के लोग एक-दूसरे से सहजता से घुल-मिल जाते हैं।
मेरी जुबान की सौम्यता, बड़ों के लिए सम्मान, छोटों के लिए स्नेह और मेहमानों के लिए आदर मेरी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। जो भी मुझसे मिलता है, वह मेरे बोली-व्यवहार का कायल हो जाता है। ये आदर-सत्कार मेरे ऐसे रिवाज और संस्कृति की धरोहर हैं जो कभी मुझे आपसे और मेरे मेहमानों से जुदा नहीं होने देंगे।
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मेरे घर का खान-पान जिसमें दाल-बाटी चूरमा, कैर सांगरी, मक्का की रोटी और सरसों का साग, बेसन के गट्टे और बाजरे की रोटी की खुशबू , मिर्ची बड़ा और घेवर का स्वाद जिसने एक बार चखा लिया उनकी अंगुलियों और जुबां से ये स्वाद कभी नहीं जाता। यहां के मसाले और पारंपरिक व्यंजन हर किसी की जुबान पर अपनी छाप छोड़ जाते हैं। मेरे प्रदेश के चटकिले रंगों से निर्मित कपड़े उनकी काया का रंग ही बदल देते हैं। फिर ये पावणे अपने देस पहुंकर भी मेरे ही रंग में रंगे नजर आते हैं।
मेरे प्रदेश की संस्कृति विविधताओं से भरी हुई है। यहां के पारंपरिक नृत्य जैसे घूमर, कालबेलिया और गेर नृत्य किसी को भी मंत्रमुग्ध कर सकते हैं। लोकगीतों में मीरा के भजन, पाबूजी की फड़, मांड़ और पनिहारी गीतों की मिठास सुनने वालों के दिल को छू जाती है। मेरे उत्सव भी भव्य होते हैं – चाहे वह पुष्कर मेला हो, डेजर्ट फेस्टिवल हो, तीज या गणगौर का पर्व हो, हर त्योहार यहां की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है।
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मेरी भूमि पर रहने वाले लोग मेहनतकश और जुझारू हैं। कड़ी धूप और रेगिस्तान की तपिश के बावजूद, यहां के लोग जीवन को उत्सव की तरह जीते हैं। किसान, दस्तकार, लोक कलाकार और कारीगर अपनी मेहनत से मेरी संस्कृति को संवारते हैं। राजस्थान की महिलाओं की सादगी, उनकी पारंपरिक पोशाकें – घाघरा-चोली और ओढ़नी, उनकी मेहनत और धैर्य मेरे समाज की रीढ़ हैं।
मैं भारत का प्रमुख पर्यटन स्थल हूं। हर साल लाखों पर्यटक मेरी भूमि पर आते हैं और मेरी खूबसूरती का आनंद लेते हैं। मेरी धरोहर, मेरे रेगिस्तान के सफारी, ऊंट की सवारी, और लोककला की झलक हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। आज मैं डिजिटल और औद्योगिक विकास की ओर भी बढ़ रहा हूं। स्मार्ट सिटीज़, एक्सप्रेसवे और नई योजनाएं मुझे आधुनिक बना रही हैं, लेकिन मैं अपनी परंपरा को नहीं भूला हूं।
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मेरी भाषा की मिठास और लोगों का मुझ पर भरोसा ही मेरी सबसे बड़ी विरासत है जो मैं अपने अपनों में बांटता हूं। क्योंकि मैं राजस्थान हूं इसलिए मेरे चाहने वाले साल दर साल मुझसे मिलने चले आते हैं और मैं भी हक से इन्हें कहता हूं खम्मा घणी सा, पधारो म्हारे देश।