
पूर्व मंत्री सुरेंद्र व्यास का सनसनीखेज दावा, ‘पायलट गहलोत और राहुल व इंदिरा गांधी को लेकर बड़े खुलासे’
पूर्व मंत्री सुरेंद्र व्यास की किताब “एक विफल राजनीतिक यात्रा” से प्रदेश की राजनीति में फैली सनसनी
राजस्थान की राजनीति के अनकहे किस्सों का पूर्व मंत्री सुरेंद्र व्यास की नई किताब में खुलासा
राहुल गांधी, अशोक गहलोत, सचिन पायलट और कई पूर्व मुख्यमंत्रियों को लेकर किए गए बड़े खुलासे
विजय श्रीवास्तव,
जयपुर(dusrikhabar.com)। राजस्थान की राजनीति के एक अनुभवी चेहरे और 5 बार विधायक रह चुके पूर्व मंत्री सुरेंद्र व्यास की हाल ही में प्रकाशित किताब “एक विफल राजनीतिक यात्रा” ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। इस किताब में व्यास ने न सिर्फ कांग्रेस नेतृत्व बल्कि राहुल गांधी, अशोक गहलोत, सचिन पायलट, इंदिरा गांधी और अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों के व्यवहार, निर्णयों और राजनीतिक रणनीतियों पर तीखे सवाल खड़े किए हैं।
राहुल गांधी की आलोचना: “संवैधानिक संस्थाओं पर विदेशी धरती से हमला गैर जिम्मेदाराना”
सुरेंद्र व्यास ने किताब में राहुल गांधी की उस प्रवृत्ति की आलोचना की है, जिसमें वह विदेशों में जाकर भारत की संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर और पक्षपाती बताने का आरोप लगाते हैं। व्यास ने इसे गैर-जिम्मेदार और लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने वाला बताया। उन्होंने लिखा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर मोदी सरकार के फैसलों पर रोक लगाकर लोकतांत्रिक संतुलन बनाए रखा है।
इंदिरा गांधी की आपातकाल पर खुलकर आलोचना
इमरजेंसी के फैसले को सुरेंद्र व्यास ने पूरी तरह असंवैधानिक बताया। उन्होंने लिखा कि इंदिरा गांधी ने आपातकाल बिना कैबिनेट की सहमति के लगाया और बाद में उसका अनुमोदन करवाया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर भी सवाल उठाए कि मौलिक अधिकारों के निलंबन पर कोई सुनवाई नहीं की गई। जस्टिस एचआर खन्ना की असहमति को लोकतंत्र के लिए मिसाल बताया और उन्हें चीफ जस्टिस नहीं बनाए जाने को न्यायपालिका का सबसे कमजोर अध्याय करार दिया।
2028 में पायलट टोंक से हारे तो आश्चर्य नहीं होगा
व्यास ने सचिन पायलट के टोंक से चुनाव लड़ने की रणनीति पर सवाल उठाए और लिखा कि यदि 2028 में वह सीएम फेस होकर भी टोंक से चुनाव लड़ते हैं, तो हार सकते हैं। उनका कहना है कि पायलट टोंक में मुस्लिम उम्मीदवार को आगे नहीं आने देना चाहते ताकि अपने गूर्जर वोट बैंक की सीटों को सुरक्षित रख सकें।
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गहलोत-पायलट विवाद: संयम बनाम कटाक्ष
पायलट और गहलोत के लंबे चले विवाद पर व्यास ने लिखा कि सरकार को अस्थिर करने का पायलट का प्रयास गलत था लेकिन उन्होंने भाषा में काफी संयम बरता। जबकि गहलोत ने एक परिपक्व नेता होते हुए भी ‘निकम्मा-नकारा’ जैसी भाषा का प्रयोग किया, जो दुर्भाग्यपूर्ण था।
गहलोत की प्रतिशोध की राजनीति का खुलासा
व्यास ने 1998 में अपने निर्दलीय विधायक बनने के बाद गहलोत द्वारा उन्हें कांग्रेस में दोबारा शामिल होने से रोकने की कोशिशों का भी जिक्र किया है। उन्होंने बताया कि कैसे एआईसीसी की सहमति के बावजूद गहलोत ने पार्टी में वापसी रोकने के लिए कांग्रेस विधायक दल और जिला कांग्रेस अध्यक्ष से मंजूरी की शर्त डलवा दी।
मानसिंह देवड़ा प्रकरण: केस खत्म कराकर सीट दिलवाई
सुरेंद्र व्यास ने खुलासा किया कि अशोक गहलोत जब पहली बार सीएम बने तो उन्होंने सरदारपुरा से विधायक मानसिंह देवड़ा के खिलाफ चल रहे एसीबी के केस को खत्म करवाया ताकि देवड़ा सीट खाली करें और गहलोत चुनाव लड़ सकें।
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जुगल काबरा को सिंडिकेट में घुसाने का किस्सा
गहलोत के करीबी जुगल काबरा को जोधपुर यूनिवर्सिटी की सिंडिकेट में मेंबर बनवाने के लिए गहलोत ने व्यास से सिफारिश की थी, जिसे उन्होंने नियमों की आड़ में पूरा किया। लेकिन बाद में गहलोत ने उन्हें राजनीतिक रूप से महत्व नहीं दिया।
अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों से जुड़े किस्से:
बरकतुल्लाह खान
उन्होंने प्रशासन को पूरी तरह मुख्य सचिव के भरोसे छोड़ दिया, जिससे राजनीतिक हस्तक्षेप कम हुआ लेकिन विधायकों में असंतोष बढ़ा।
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हरिदेव जोशी
जोशी के खिलाफ इंदिरा गांधी से मिले प्रतिनिधिमंडल को डांट पड़ी। उन्होंने कहा- एक व्यक्ति से पार्टी कमजोर नहीं होती।
जगन्नाथ पहाड़िया
उनकी नियुक्ति स्क्रीनिंग कमेटी के जरिए हुई, न कि संजय गांधी की सिफारिश पर लेकिन पहाड़िया को हटाने में इंदिरा गांधी की निर्णायक भूमिका रही, राजस्थान में प्रशासन के ठप पड़ने के चलते इंदिरा गांधी ने पहाड़िया को मुख्यमंत्री पद से हटाया।
इस्तीफे और बर्खास्तगी के दिलचस्प किस्से:
व्यास ने लिखा कि शिवचरण माथुर सरकार में मंत्री रहते हुए एक विधायक पुत्र की वर्षगांठ पार्टी में शामिल होने पर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। वहीं, नरेंद्र सिंह भाटी ने इस्तीफा नहीं दिया तो उन्हें राज्यपाल से बर्खास्त करवाया गया और सरकारी आवास से सामान तक फेंक दिया गया।
सुरेंद्र व्यास की किताब ‘एक विफल राजनीतिक यात्रा’ राजस्थान की राजनीति के उन पहलुओं को सामने लाती है जिन्हें अब तक सार्वजनिक रूप से नहीं बताया गया। यह किताब न केवल राजनीतिक समीक्षकों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि आम पाठकों के लिए भी राजनीति की बारीकियों को समझने का एक सशक्त माध्यम है।
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