उपराष्ट्रपति धनखड़ की शिक्षण संस्थाओं को दो टूक, बोले-“शिक्षा का व्यापार गलत”

उपराष्ट्रपति धनखड़ की शिक्षण संस्थाओं को दो टूक, बोले-“शिक्षा का व्यापार गलत”

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ बतौर मुख्य अतिथि हुए समारोह में शामिल

शोभासरिया ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट का सिल्वर जुबली समारोह

समारोह में बोले उपराष्ट्रपति-बच्चों में विदेश जाने की नई बीमारी आई है, सोचते हैं वहां स्वर्ग मिलेगा

धनखड़ ने कही बड़ी बात: पेरेंट्स की काउंसिलिंग नहीं होती; शिक्षा का व्यापार अच्छा नहीं

सीकर,(dusrikhabar.com)। शोभासरिया ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट के सिल्वर जुबली समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा शिक्षा को व्यापार बनाना अच्छा नहीं। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आजकल के बच्चों में विदेश जाकर पढ़ाई की नई बीमारी चल पड़ी हैं। बच्चे को सपना दिखता है कि वहां जाते ही तो स्वर्ग जैसा एहसास होगा मानो स्वर्ग में आ गए हैं। उसे कोई आंकलन नहीं कि किस देश या किस संस्थान में जाकर पढ़ाई करनी है। बस एक अंधाधुंध रास्ता है कि विदेश जाना और वहां पढ़ना है। यहां तक कि स्टूडेंट्स के परिजनों की काउंसलिंग भी नहीं होती। शिक्षा का व्यापार बनाना अच्छा नहीं है। 

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देश का भविष्य खतरे में

शिक्षा के व्यापार से देश का भविष्य सुरक्षित नहीं है। शिक्षा समाज को वापस देने और सेवा का काम है जो आजकल एक व्यापार बनकर रह गया है। मुझे ऐसा लगता है कि कि शिक्षण संस्थाओं को आर्थिक रूप से संबल होना चाहिए। समारोह में उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा, राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी और यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा भी मौजूद रहे। 

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भारत को शिक्षा का केंद्र बनाने के लिए देनी होगी आहुति

उपराष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि कोई जमाना था हमारे देश में नालंदा और तक्षशिला जैसे बड़े बड़े संस्थान थे, लेकिन तुर्क अफगान ने इन्हें बर्बाद कर दिया। जब अंग्रेज आए तो हमारी संस्थाओं की ताकत को और कमजोर कर दिया। धनखड़ ने कहा कि “जो भारत पूरी दुनिया में ज्ञान का केंद्र था, वहां की संस्थाओं की जड़ काट दी गई। 19वीं शताब्दी में स्वामी विवेकानंद ने इन्हें वापस उजागर करने का प्रयास किया। अब समय आ गया है कि इस महायज्ञ में भारत को शिक्षा का केंद्र बनाने के लिए हर कोई आहुति दे।”

13.50 लाख छात्र इस साल गए विदेश पढ़ने

उन्होंने कहा कि शिक्षा अब कमोडिटी बन चुकी है, चिंतन और मंथन की जरूरत है। शिक्षा एक माध्यम था कि जिस समाज में हम रहते हैं, उसका ऋण कैसे वापस करें। अब एजुकेशन कमोडिटी बन गया है, जिसे कुछ लोग अपने फायदे के लिए बेच रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस साल भारत से करीब 13.50लाख स्टूडेंट्स विदेश पढ़ने गए हैं।

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इसमें और भी आश्चर्य की बात ये है कि इनकी औसत आयु 18-25 साल के बीच है। इसका देश पर कितना भार पड़ रहा है। 6 बिलियन यूएस डॉलर फॉरेन एक्सचेंज में जा रहा है। अंदाजा लगाइए कि यदि यह पैसा हमारे देश की शिक्षण संस्थाओं के इंफ्रास्ट्रक्चर में लगाया जाता तो हमारे ऐसे हालात नहीं होते। 

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