
महाकुंभ से आत्मिक शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति…
सनातन संस्कृति की आध्यात्मिक परंपरा का सबसे बड़ा उदाहरण महाकुंभ
हर 12 वर्ष में गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम स्थलों पर महाकुंभ का आयोजन
विजय श्रीवास्तव।
वैदिक काल से चले आ रहे हिंदुस्तान के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक महाकुंभ भारत की सनातन संस्कृति और आध्यात्मिक परंपरा का सबसे बड़ा उदाहरण है। हालांकि वैदिक काल में वैदिक धर्म ही सबसे प्रमुख धर्म होता था और इसमें चार प्रमुख रूप से चार वैद ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद हुआ करते थे। तब वर्णाश्रम व्यवस्था हुआ करती थी और वैदिक धर्म में समाज को वर्णों में विभाजित किया गया था जिसमें कार्यों के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र हुआ करते थे। (Attainment of spiritual purification and salvation through Mahakumbh…)

महाकुंभ में स्नान करते लोग
ऐसी मान्यता है कि हिंदू धर्म में श्रद्धा भक्ति और आत्मिक शुद्धिकरण के लिए कुंभ के आयोजन की शुरुआत हुई। हर तीन वर्ष में कुंभ का आयोजन प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है वहीं प्रत्येक 12 वर्ष में भारत में किसी एक स्थान पर महाकुंभ का आयोजन किया जरूरी होता है। मान्यता के अनुसार गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम स्थल प्रयागराज और गंगा नदी हरिद्वार, क्षिप्रा नदी (उज्जैन) और गोदावरी नदी (नासिक) के पवित्र तटों पर महाकुंभ का आयोजन होता है। इन्हीं कुंभ मेलों में महाकुंभ की मान्यता सबसे अधिक मानी जाती है। (Mahakumbh 2025 self purification attain salvation Prayagraj Samudra Manthan shiv Parvati Yogi Adityanath Uttar Pradesh Mahakumbh great bath saint saint saint once in 144 years At the confluence of Ganga, Yamuna and Godavari Kumbh Mela Nashik Haridwar Ujjain Prayagraj)
स्थल ऐसा कहा जाता है कि महाकुंभ का इतिहास पौराणिक कथा से जुड़ा है चूंकि कुंभ का मतलब होता है घड़ा और घड़े को अमृत के कुंभ का प्रतीक माना जात है इसलिए कथानुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत की प्राप्ति के लिए लगातार देवताओं और असुरों में 12 दिन और रात (देवलोक के अनुसार 12वर्ष) तक संघर्ष किया।
असुरों और देवताओं के संघर्ष में पृथ्वी पर प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में अमृत की बूंदें गिरी। इस कारण इन्हीं स्थानों को महाकुंभ का स्थल बनाया गया। क्योंकि महाकुंभ मेले का उल्लेख हमारे पुराणों, प्राचीन ग्रंथों और इतिहास के दस्तावेजों में भी दर्ज है इसलिए हमारी आस्था इसे लेकर और प्रगाढ़ हो जाती है।

प्रयागराज महाकुंभ में स्नान करते साधु संन्यासी।
हमारे देश में आस्था और परंपरा को हजारों वर्षों से निभाया जा रहा है। इस देश को ऋषि-मुनियों की धरा भी कहा जाता है और ऋषि मुनी के आशीर्वाद से धरती पर मन में छिपे पाप का अंत, क्रोध का नाश और आत्मा की शुद्धि होती है इसलिए महाकुंभ में स्नान को ऋषि-मुनियों के आशीष का एक मार्ग भी कहा जाता है। महाकुंभ से मोक्ष की प्राप्ति के लिए हर 12 वर्षो में इस मेले का आयोजन कुंभ के दौरान इन पवित्र नदियों के संगम पर होता है। जिसमें लाखों साधु-संत और करोड़ों की संख्या में देश विदेश से श्रद्धालु डूबकी लगाने पहुंचते हैं। महाकुंभ भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक एकता का प्रतीक ही नहीं बल्कि अध्यात्म, दर्शन और संस्कृति के आदान-प्रदान का स्थल भी है जहां विभिन्न मठों और अखाड़ों के संत अपने उपदेशों से लोगों का मार्गदर्शन भी करते हैं। महाकुंभ के मेले को धर्म और विज्ञान के संगम से जोड़कर भी देखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि महाकुंभ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अद्भुत है। इस समय ग्रह-नक्षत्रों की विशेष स्थिति के कारण स्नान-ध्यान को अत्यंत शुभ-लाभकारी और स्वास्थ्यवर्धक माना गया है।

महाकुंभ में स्नान करते साधु संत।
प्रयागराज यानी इलाहाबाद में 2025 में महाकुंभ का आयोजन का अंदाज ही निराला है। महाकुंभ में अद्भुत साधु संन्यासी पहुंचे हैं कोई वर्षों से बैठा नहीं तो किसी ने माथे पर 45 किलो रुद्राक्ष धारण कर रखे हैं किसी ने एक हाथ ऊपर रखने का प्रण लिया है। करोड़ों की संख्या में यहां श्रद्धालु अपनी आस्था और परंपरा को निभाएंगे।
सनातन धर्म से जुड़ी पौराणिक मान्यता के अनुसार धरती पर महाकुंभ में देवलोक के द्वार खुल जाते हैं ऐसे में देवता भी पृथ्वी पर आकर पवित्र संगम में स्नान का आनंद लेते हैं। शिव महापुराण के अनुसार माघ पूर्णिमा पर भगवान शिव अपने परिवार और कैलाशवासियों के साथ वेश बदलकर कुंभ में घूमने आते हैं और अपने भक्तों को दर्शन देते हैं।
इस बार बन रहे संयोग के बारे में ज्योतिषियों का भी मानना है कि जब धरती पर समुद्र मंथन हुआ था वैसे ही ग्रहों की स्थिति इस बार भी बन रही है यानि सूर्य, शनि, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह ठीक उसी स्थिति में हैं इससे धरती का चुंबकीय क्षेत्र बढ़ता है और मनुष्य के शरीर पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए इस वर्ष प्रयागराज का महाकुंभ आध्यात्मिक के साथ-साथ भौतिक दृष्टि से भी मनुष्य और पृथ्वी के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।
अपनी अपनी धार्मिक आस्था और मान्यता लिए यहां करोड़ों लोग शाही स्नान कर मोक्ष की प्राप्ति का रास्ता बनाएंगे। चूंकि सनातनियों के लिए महाकुंभ का पर्व केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि संस्कृति,परंपरा और आस्था का भी सबसे बड़ा उत्सव है। यहां स्नान ध्यान से आत्मिक शुद्धि तो तय है साथ ही शरीर के लाखों कष्टों और बीमारियों के दुष्प्रभावों का भी अंत इस संगम पर होगा ऐसी मान्यता से श्रद्धालु यहां आस्था की डुबकी लगाएंगे।