
आधी आबादी पर नाता प्रथा का दंश…
नाता प्रथा का सर्वाधिक असर बच्चों पर पड़ रहा है, क्योंकि उनके पास कहीं भी जाने का कोई विकल्प नहीं है
असल में नाता अब बेटियों और महिलाओं को बेचने की प्रथा बन गई है
नाता प्रथा एक जानलेवा रिवाज, जिसमें महिला बिना तलाक, बिना शादी रहती है किसी और आदमी के साथ।

अमित बैजनाथ गर्ग, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक
जयपुर, (dusrikhabar.com)। हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच में पाया गया कि राजस्थान के कुछ जिलों में नाता प्रथा के तहत महिलाओं-लड़कियों को बेचा जा रहा है और उनसे आधुनिक वेश्यावृत्ति कराई जा रही है। पिछले कुछ सालों से नाता प्रथा के केस लगातार आ रहे थे, जिसकी शिकायत केंद्रीय संस्थानों तक पहुंच गई थी। नाता प्रथा में बिना शादी के युवती को युवक के साथ रहने के लिए मजबूर किया जाता है। इसके अनुसार विवाहित महिला अपने पति को छोड़कर किसी अन्य पुरुष के साथ रह सकती है। इतना ही नहीं, पुरुष भी किसी विवाहित महिला को उसकी सहमति से लाकर पत्नी के रूप में रख सकता है। असल में नाता में महिला या पुरुष को शादी करने की जरूरत नहीं होती है और न ही किसी किस्म के रीति-रिवाज करने पड़ते हैं।
प्रदेश में नाता प्रथा रुकने का नाम नहीं ले रही है। हालात इतने भयावह हैं कि नाता अब बेटियों और महिलाओं को बेचने की प्रथा बन गई है। बेटी का बाप और पति को छोड़कर चली जाने वाले पत्नी, दोनों की कीमत वसूली जा रही है। कई मामलों में महिला के माता-पिता भी ग्राम पंचायत द्वारा तय की गई नाता राशि लेते हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार ने भी अभी तक इसे रोकने के लिए कोई कानून नहीं बनाया है। इस प्रथा में कोई भी विवाहित पुरुष या महिला अगर किसी दूसरे पुरुष या महिला के साथ अपनी मर्जी से रहना चाहती है, तो वह एक-दूसरे से तलाक लेकर निश्चित राशि अदा कर साथ रह सकते हैं।
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कहते हैं कि नाता प्रथा विधवाओं व परित्यक्ता स्त्रियों के लिए शुरू हुई थी। उन्हें सामाजिक जीवन जीने के लिए मान्यता देने के लिए इसकी शुरुआत हुई थी। इस प्रथा में पांच गांव के पंचों द्वारा कुछ फैसले लिए जाते हैं। इस दौरान पहली शादी के दौरान जन्मे बच्चों को लेकर बात की जाती है। इसके साथ ही अन्य मुद्दों पर चर्चा कर निपटारा किया जाता है। इसमें केवल महिला, पुरुष व उनसे जुड़े पक्षों जैसे माता-पिता, महिला का पति और पुरुष की पत्नी के बीच आपसी सहमति बनानी होती है। पंचायत के जरिए पत्नी को ले जाने वाले पुरुष से निश्चित राशि की मांग की जाती है। विवाहित पुरुष विवाहित महिला से जुड़े पक्ष को एक निश्चित राशि अदा कर अपने साथ रख सकता है। सौदा तय होने पर पत्नी दूसरे व्यक्ति के साथ रहने लगती है। इस लेनदेन की जाने वाली राशि को झगड़ा छूटना कहते हैं।
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वैसे तो प्रदेश में इस प्रथा का चलन कई जगहों पर है, लेकिन आदिवासी समुदायों, जनजातीय क्षेत्रों और कुछ जातियों में यह परंपरा काफी लोकप्रिय है। पंचों का तर्क है कि इसकी वजह से महिलाओं और पुरुषों को तलाक के कानूनी झंझटों से मुक्ति मिल जाती है, लेकिन असल में ऐसा होता नहीं है। वक्त गुजरने के साथ इस प्रथा में भी कई परिवर्तन होते चले गए। इसके कारण लड़कियों और महिलाओं के खरीदने तथा बेचने के चलन को बढ़ावा मिल रहा है। वहीं दूसरी ओर यह पुरुषवादी समाज में महिलाओं के नियंत्रण का भी हथियार बन रही है। इस प्रथा से हो रहे सामाजिक नुकसान को रोकने के लिए वर्तमान में पंचायतों के पास कोई भी आधिकारिक नियंत्रण नहीं है, जिससे यह महिलाओं के शोषण का हथियार बन रही है।
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एक अध्ययन में पाया गया कि अगर बच्चों की मां नाता प्रथा के तहत किसी अन्य व्यक्ति के पास चली गई है, तो बच्चों को स्कूल में अपमान का सामना करना पड़ता है। उनमें से अधिकांश के पास अपनी भावनाओं को साझा करने के लिए दोस्त नहीं होते हैं। 13 प्रतिशत बच्चों को अपने परिवार में नाता के कारण स्कूलों में अपमान का सामना करना पड़ता है। 22 प्रतिशत बच्चों ने बताया कि नाता संबंध के बाद वे दैनिक जीवन में परिवारों में हिंसा देखते हैं। अध्ययन में कहा गया कि दो प्रकार की नाता प्रथा विद्यमान हैं। पहली, जब पति की मृत्यु हो जाती है और महिला अपनी इच्छा या समाज की सहमति से किसी अन्य पुरुष के साथ चली जाती है। वहीं दूसरी में महिला पति के जीवित होते हुए भी अन्य पुरुष के साथ चली जाती है।
इन दोनों ही मामलों में महिलाएं अपने बच्चों को पीछे छोड़ देती हैं, क्योंकि उनका नया पति अपने पहले पति से बच्चों को स्वीकार करने को तैयार नहीं होता है। यह उन बच्चों के लिए कई कमजोरियां पैदा करता है, जिन्हें अपने दादा-दादी या अन्य रिश्तेदारों के साथ रहने के लिए मजबूर किया जाता है। पति या पत्नी की शीघ्र मृत्यु, महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, तलाक, पति की खराब आर्थिक स्थिति या जब वह अपनी पत्नी की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं होना भी नाता प्रथा के बढ़ने की वजह माना गया है। इसके अलावा समाज का आधुनिकीकरण भी नाता के अन्य कारण हैं। इस प्रथा को रोकने के लिए ठोस कानून के साथ सभी को प्रयास करने होंगे।