भगवान राम और मां लक्ष्मी के पूजन का त्योहार क्यों है दीपावली, जानिए पूरा कहानी….

भगवान राम और मां लक्ष्मी के पूजन का त्योहार क्यों है दीपावली, जानिए पूरा कहानी….

दीपावली पर भगवान राम और माता लक्ष्मी की क्यों होती है पूजा?

सतयुग और त्रेता युग का क्या है दीपावली से कनेक्शन

जयपुर, (dusrikhabar.com)। दीपावली का त्योहार भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भाईचारे, आपसी सौहार्द्र, असत्य पर सत्य की जीत और बुराई के अंत का प्रतीक माना जाता है। न सिर्फ हिंदू धर्म में बल्कि सभी धर्मों के लोग दीपावली का पर्व पूरे परिवार मिल जुलकर मनाते हैं। दीपोत्सव का यह पर्व हमें सामूहिकता, समर्पण और सहयोग का महत्व का पाठ पढ़ाता है। आध्यात्मिक रूप से दीपों को रोशन करने का यह त्योहार हमें आत्मज्ञान, शुद्धि और समृद्धि का संदेश देता है। दीपावली पर भगवान राम और मां लक्ष्मी के माध्यम से  हमें अपने जीवन में सत्य, ज्ञान और प्रकाश को जलाए रखने की प्रेरणा मिलती है।

दीपावली से सतयुग-त्रेता युग का कनेक्शन

दीपावली का उत्सव दो युग, सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी इसलिए लक्ष्मीजी का पूजन होता है। भगवान राम भी त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या लौटे थे तो अयोध्यावासियों ने घर घर दीपमाला जलाकर उनका स्वागत किया था। इसलिए इसका नाम दीपावली है।अत: इस पर्व के दो नाम है लक्ष्मी पूजन जो सतयुग से जुड़ा है दूजा दीपावली जो त्रेता युग प्रभु राम और दीपों से जुड़ा है। लक्ष्मी गणेश का आपस में क्या रिश्ता है और दीवाली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है? लक्ष्मी जी सागरमन्थन में मिलीं, भगवान विष्णु ने उनसे विवाह किया और उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया।

महाबुद्धिमान गणेश जी को किसकी सलाह पर लक्ष्मीजी ने रखा अपने साथ 

लक्ष्मी जी ने धन बाँटने के लिए कुबेर को अपने साथ रखा। कुबेर बड़े ही कंजूस थे, वे धन बाँटते ही नहीं थे। वे खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए। माता लक्ष्मी खिन्न हो गईं, उनकी सन्तानों को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने कहा कि तुम कुबेर के स्थान पर किसी अन्य को धन बाँटने का काम सौंप दो। माँ लक्ष्मी बोली कि यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हें बुरा लगेगा। तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी। माँ लक्ष्मी ने गणेश जी को भी कुबेर के साथ बैठा दिया। गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान। वे बोले, माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊँगा उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं। माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी।

विघ्न विनाशक गणेशजी ने खोले भंडार के द्वार

अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न, रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे। कुबेर भंडारी देखते रह गए गणेश जी कुबेर के भंडार का द्वार खोलने वाले बन गए। गणेश जी की भक्तों के प्रति ममता कृपा देख माँ लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्रीगणेश को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें।

 दीपावली आती है कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं, वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद देव उठनी एकादशी को। माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दीपावली के बीच के पन्द्रह दिनों में, इसलिए वे अपने सँग ले आती हैं अपने मानस पुत्र गणेश जी को और दीपावली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है।

– डा शिल्पा त्रिवेदी

CATEGORIES
TAGS
Share This

COMMENTS

Wordpress (0)
Disqus (0 )

अपने सुझाव हम तक पहुंचाएं और पाएं आकर्षक उपहार

खबरों के साथ सीधे जुड़िए आपकी न्यूज वेबसाइट से हमारे मेल पर भेजिए आपकी सूचनाएं और सुझाव: dusrikhabarnews@gmail.com