
नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की कैसे करें पूजा…
शारदीय नवरात्रि का महत्व, मां दुर्गा और राम की विजय पर उत्सव
शारदीय नवरात्रि को लेकर हैं कई मान्यताएं
इन नौ दिनों में मां दुर्गा ने महिषासुर और भगवान राम ने रावण का वध किया
और दसवें दिन को विजय का प्रतीक मानते हुए मनाई जाती है विजयादशमी
जयपुर, (dusrikhabar.com)। शारदीय नवरात्रि हिंदू धर्म में धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का समय है, नवरात्रि के नौ दिन हमारे मन को शुद्ध करने आत्मबल बढ़ाने में काफी मददगार होते हैं। मां दुर्गा को शक्ति, साहस, ज्ञान और समृद्धि की देवी माना जाता है और यही समय है जब हम अपने अंदर नकारात्मक शक्तियों को समाप्त कर सकारात्मकता को संचित करते हैं। इन दिनों में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना कर हम अपने अंदर की शक्तियों को जागृत कर सकते हैं।
आश्विन मास (सितंबर-अक्टूबर) के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिनों तक नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। शरद ऋतु में होने के कारण इन नौ दिनों की नवरात्रि को “शारदीय नवरात्रि” कहा जाता है। इन 9 दिनों मां दुर्गा के नौ स्वरूप -माता शैलपुत्री, माता ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री देवी की पूजा अर्चना होगी।
पहले दिनः मां शैलपुत्री की पूजा
नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जातीं है। देवी का यह स्वरूप इच्छाशक्ति और आत्मबल को दर्शाता है। उन्हें स्नेह, करुणा, धैर्य और इच्छाशक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस दिन मां की उपासना लाल फूलों से करनी चाहिए। साथ ही उन्हें गाय के दूध का शुद्ध घी अर्पित करना चाहिए।
दूसरे दिन: माता ब्रह्मचारिणी
नवरात्र के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा होगी। ब्रह्मा की इच्छाशक्ति और तपस्विनी का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। मां की उपासना सफेद फूलों से करनी चाहिए। साथ ही उन्हें शक्कर का भोग लगाना चाहिए।
तीसरे दिन: माता चंद्रघंटा
नवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की उपासना की जाएगी। माता चंद्रघंटा का स्वरूप साहस, वीरता और निर्भयता का प्रतीक है। वे बाघ की सवारी करती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार दैत्यों और असुरों के साथ युद्ध में देवी ने घंटों की टंकार से ही असुरों का नाश कर दिया था। इनकी पूजा लाल फूल से करनी चाहिए। साथ ही उन्हें दूध या दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाना चाहिए।
चौथे दिन: मां कूष्मांडा
नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा की जाएगी। मां के इस स्वरूप की पूजा करने से बुद्धि वाणी और प्रखरता की शक्ति मिलती है। इनकी पूजा हरी वस्तुओं से करनी चाहिए साथ ही, मालपुए का भोग लगाना चाहिए। माना जाता है कि मां कूष्मांडा ने ही पिंड से लेकर ब्रह्मांड तक का सृजन किया था। शास्त्रों में मां कूष्मांडा को अष्टभुजा देवी के नाम से भी संबोधित किया गया है।
पांचवें दिनः मां स्कंदमाता
नवरात्र के पांचवें दिन मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा होती है। माता के इस स्वरूप की पूजा करने से संतान संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। माता की उपासना पीले फूलों से करने के साथ ही उन्हें केले का भोग अर्पित करना चाहिए।
छठे दिनः मां कात्यायनी
छठे दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा की जाती है। यह ऋषि कात्यायन की पुत्री थीं। इनकी पूजा करने से शीघ्र विवाह का वरदान मिलता है। यह स्त्री की ऊर्जा का स्वरूपं भी हैं।
सातवें दिनः मां कालरात्रि
शारदीय नवरात्र के सातवें दिन देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। माता रानी के इस स्वरूप की पूजा करने से रोग, शोक और बाधाओं का नाश होता है। इसके अलावा नकारात्मक ऊर्जा और तंत्र मंत्र से छुटकारा मिलता है। इस दिन माता की उपासना सुगंध और धूपबत्ती से करें। साथ ही, माता को गुड़ का भोग अर्पित
करें।
आठवें दिनः माता महागौरी
नवरात्र के आठवें दिन मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा होती है।’ माता महागौरी के भी आभूषण और वस्त्र सफेद रंग के हैं. इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है। माता के इस स्वरूप की पूजा करने से मनचाहे विवाह और सुखद वैवाहिक जीवन का वरदान मिलता है। इस दिन माता की पूजा सफेद फूलों से करें। साथ ही, माता को नारियल का भोग अर्पित करें।
नौवें दिनः मां सिद्धिदात्री
नवरात्र के नौवें दिन माँ दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा की जाएगी। मां सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली देवी हैं। माता के इस स्वरूप की पूजा से मुक्ति, मोक्ष और समस्त सिद्धियां मिलती हैं। इस दिन माता की पूजा विभिन्न रंग के फूलों से करें। साथ ही उन्हें काले तिल का भोग लगाना चाहिए।
शारदीय नवरात्रि को लेकर क्या है पौराणिक कथा
महिषासुर का वध कर विजय पाई थी मां दुर्गा ने
शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के पीछे की मुख्य कथा महिषासुर नामक राक्षस के वध की है। ऐसा कहा जाता है कि महिषासुर, एक असुर (राक्षस) ने अपनी कठिन तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न कर उनके अपने लिए अमर होने का वरदान ले लिया था। ब्रह्माजी द्वारा दिए गए वरदान के अनुसार, महिषासुर को कोई देवता या पुरुष नहीं मार सकता था, लेकिन एक स्त्री द्वारा उसका वध किया जाना संभव था। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर ने अपनी शक्ति के घमंड में देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया, अति होने के बाद सभी देवताओं ने अपनी शक्ति को मिलाकर शक्ति स्वरूपा देवी दुर्गा को प्रकट किया और मां दुर्गा ने नौ दिनों तक युद्ध कर दसवें दिन महिषासुर का वध कर दिया।
राम ने रावण पर पाई थी विजय
इसके साथ ही ऐसा भी कहा जाता है कि रावण से लंबे संघर्ष के बाद इसी दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। असत्य और बुराई पर सत्य और अच्छाई की जीत हुई थी इसलिए विजयदशमी के दिन को विजय का प्रतीक माना जाता है। हमारे शास्त्रों में लिखित धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शारदीय नवरात्रि में पूरे नौ दिनों के लिए माता दुर्गा धरती पर आती हैं। ऐसा कहा जाता है कि धरती को देवी मां का मायका कहा जाता है। माता रानी के आने की खुशी में नौ दिनों तक धूमधाम से दुर्गा उत्सव मनाया जाता है।