म्हारी घूमर छै नखराळी ऐ मां…, नृत्यों का सिरमौर “घूमर”

म्हारी घूमर छै नखराळी ऐ मां…, नृत्यों का सिरमौर “घूमर”

घूमर से राजस्थान की पहचान…!

रंग बिरंगा घाघरा-चोली, लंबा घूंघट और सिर से पैर तक सुंदर आभूषणों की चमक

राजस्थान का राज्य नृत्य “घूमर” को लेकर दो राय, आदिवासी या रजवाड़ी ?

 

विजय श्रीवास्तव,

जयपुर। राजस्थान अपनी अतुलनीय धरोहर, संस्कृति और परंपरा के साथ साथ अपने रीति रिवाजों के लिए जाना जाता है। राजस्थान के लोक नृत्य भी इन्हीं रीति रिवाजों की माला का एक मोती हैं। ऐसा कहा जाता है कि राजस्थान का कोई भी समारोह इन लोकनृत्यों के बिना अधूरा है। ये राजस्थान के लोकनृत्य ही हैं जिन्होंने राजस्थान की देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पहचान बनाई है। इसी परंपरा से  रूबरू होने विदेशों से राजस्थान की धरा जिसका ध्येय वाक्य “पधारो म्हारे देश” है पर, आते हैं। राजस्थान के लोक नृत्यों की कड़ी में आज हम आपको बताएंगे राजस्थान के प्रसिद्ध नृत्य घूमर और उसके इतिहास के बारे में।

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ऐसा कहा जाता है कि राजस्थान का घूमर नृत्य सबसे पहले भील जनजाति समूह के लोग मां सरस्वती की पूजा के लिए करते थे, जिसे राजस्थान के अन्य लोगों ने अपना लिया और वर्तमान में घूमर नृत्य राजस्थान ही नहीं देश विदेश में होने वाले सांस्कृतिक समारोह और शादी ब्याह में किया जाता है। अपनी आन-बान-शान के प्रतीक राजस्थान प्रदेश के नृत्य आज भी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। जिसमें कालबेलिया, घूमर और गैर, चंग नृत्य जैसे कई अन्य नृत्य शामिल हैं।  

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राजस्थान के घूमर नृत्य के बारे में जानिए dusrikhabar.com  की नृत्य सीरीज में।

राजस्थान पर्यटन विभाग के उप निदेशक दलीप सिंह राठौड़ ने दूसरी खबर के एडिटर विजय श्रीवास्तव से राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि घूमर नृत्य क्या है, कैसे इस नृत्य की शुरूआत हुई और इसका इतिहास क्या है….

 

“घूमर” राजस्थानी नृत्यों का सिरमौर

दलीप सिंह राठौड़, उप निदेशक पर्यटन विभाग, राजस्थान

दलीप सिंह राठौड़ के अनुसार राजस्थान अपने लोक नृत्यों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। चरी, चकरी, कालबेलिया हो या गैर, भीलों का तलवार ढाल हो या गरासियों का वालर, सभी लोक नृत्यों में राजस्थान की आत्मा बसी है। वहीं लोक नृत्यों में “घूमर” को सभी नृत्यों का सिरमौर कहा जाता है।

रजवाड़ों की शान घूमर नृत्य राजस्थान का राजकीय नृत्य भी है। इस नृत्य में स्त्रियां एक बड़ा गोल घेरा बनाते हुए हाथों के कुशल संचालन के साथ आकर्षक, लावण्यपूर्ण नृत्य प्रस्तुत करती हैं। ढोल-नगाड़ों की ताल पर गोल-गोल घूमने के साथ थोड़ा झुक कर फिरकी ली जाती है। घूमर के साथ अष्टताल कहरवा लगाया जाता है जिसे सवाई कहा जाता है।

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किन अवसरों पर होता है घूमर नृत्य

घूमर नृत्य राजस्थान के विख्यात गाने ‘ घूमर रमवा म्हें जास्यां,’ के साथ किया जाता है।  घूमर नृत्य पारंपरिक पर्वों जैसे गणगौर, तीज, होली, दीपावली नवरात्रा तथा शादियों, समारोह के अवसर पर किया जाता है। घूमर नृत्य मुख्यतः मारवाड़, मेवाड़, शेखावाटी के राज घरानों में विशेष आयोजनों पर किया जाता है। इस नृत्य की दिव्यता और ठसक से राजस्थान ही नहीं पूरा राष्ट्र अभिभूत है।

 

घूमर नृत्य की पोशाक

यूं तो घूमर को राजस्थान के नृत्यों की आत्मा माना जाता है। वहीं प्राचीन काल से ही राजस्थान में महिलाएं लहंगा-ओढ़नी, कांचली-कुर्ती पहनती आई हैं और घूमर नृत्य में महिलाएं रंग बिरंगा गोल घाघरा-चोली पहनकर और लंबा घूंघट रखकर नृत्य करती हैं। इस नृत्य को करते वक्त महिला के पोशाक का गैर घूमता हुआ दिखाई देता है जो की बहुत ही सुंदर लगता है। नृत्य के दौरान महिलाएं अपनी ओढ़नी से लंबा घूंघट निकाले रहती हैं।

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इस नृत्य की खास बात ये है कि महिलाएं लंबा घूंघट निकालकर गोल गोल घूमती हैं और नृत्य करती हैं। ये दृश्य घूमर करने और देखने वाले दोनों को ही अलग ही अहसास कराता है।  सुंदर वस्त्रों तथा स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित महिलाएं घूमर को और भी अधिक सुंदर बना देती हैं। इस नृत्य में महिलाओं के गोल घाघरे या लहंगे बने आकार को कुंभ कहते हैं। यह नृत्य भंवर ढोल, नगाड़े और शहनाई की मधुर ताल के साथ हाथ पैरों के कुशल संचालन से किया जाता है।

 

घूमर के प्रकार

घूमर नृत्य के कई प्रकार हैं। यह नृत्य राजस्थान में आदिवासी हाडोती क्षेत्र और अन्य कई क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार से किया जाता है। इस नृत्य को किसी खास अवसर पर किए जाने के भी अलग-अलग प्रकार होते हैं। जैसे – घूमर नृत्य साधारण स्त्रियां करती हैं वहीं रजवाड़ी घूमर राजपूत महिलाएं विशेष भाव-भंगिमाओं के साथ करती हैं। वहीं लूर जो कि घूमर का ही एक प्रकार है गरासिया महिलाओं द्वारा किया जाता है। तो झूमरियो घूमर बालिकाओं द्वारा किया जाता है।

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जरूरी है घूमर का सरंक्षण

समय बदल रहा है और समय के अनुसार बॉलीवुड फिल्मों में इस घूमर नृत्य का प्रदर्शन भी किया जाने लगा है। अब तक फिल्मों में किए गए घूमर नृत्यों में से श्याम बेनेगल निर्देशित फिल्म “जुबैदा” में जोधपुर के उम्मेद भवन पैलेस में किए गए घूमर नृत्य के प्रदर्शन को उत्कृष्ट माना जा सकता है। अन्य फिल्मों में भी कई लोकनृत्यों को एक साथ मिलाकर घूमर नृत्य बताया गया है परंतु वो एक प्रकार से विभिन्न नृत्यों का मिश्रण है जो मूल घूमर नृत्य के स्वरूप से विपरीत है।

घूमर नृत्य विशेषज्ञों की मानें तो घूमर नृत्य को अब संरक्षण की जरूरत है क्योंकि राजस्थान में इस नृत्य को करने वाले बहुत ही कम लोग रह गए हैं हालांकि अभी भी कुछ संस्थानों द्वारा घूमर नृत्य का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

 

राजस्थान का “राज्य नृत्य घूमर”

Ghoomar डांस को 1986 में राज्य नृत्य घोषित किया गया। कुछ विशेषज्ञ रजवाड़ी घूमर नृत्य को भील जनजाति का नृत्य मानते हैं और इस नृत्य को सभ्य समाज को आदिवासी समाज द्वारा दिया एक अनूठा उपहार भी माना जाता है। लेकिन इसका दूसरा पहलू ये भी है कि विशेषज्ञ समूह वस्त्रों के पहने के तरीके, घूंघट, ओढ़नी घाघरा, स्वर्ण आभूषण से भरपूर सलीका लावण्यता की बात करता है। वहीं आदिवासियों के पहनावे, सलीके और रंगत से यह कोसों दूर है।

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पर्यटन उप निदेशक दलीप सिंह राठौड़ की मानें तो हरियाणा का घूमर या गुजरात का गरबा, राजस्थान का चकरी सभी नृत्य घेरा बनाकर ही किए जाते हैं। परंतु रजवाड़ी घूमर नृत्य इनसे भिन्न है और यह बहुत ही शानदार होता है तभी घूमर नृत्य को राजकीय नृत्य घोषित किया गया है। सुप्रसिद्ध कथक, भवाई नृतक एवं नृत्य गुरु डॉक्टर रूप सिंह शेखावत वर्षों से घूमर नृत्य की प्रस्तुति तथा प्रशिक्षण दे रहे हैं। शेखावत का भी मानना है कि रजवाड़ी घूमर नृत्य का भीलों के नृत्य से कोई वास्ता नहीं है।

 

आदिवासीय या रजवाड़ी?

घूमर नृत्य को लेकर समाज के लोगों में संशय बना हुआ है। घूमर को लेकर अलग-अलग जगहों पर लोगों की राय भिन्न-भिन्न है। संस्कृति और परंपराओं के जानकार विशेषज्ञों के अनुसार घूमर नृत्य भील आदिवासी करते हैं तो जंगल में उन्हें नृत्य करते किसने देखा? क्योंकि प्राचीन समय में आदिवासी और नगरीय आवाम में कोई संपर्क नहीं था तो कैसे अन्य लोगों तक यह नृत्य पहुंचा और लोगों ने इसे अपनाया? वहीं इस बात के कोई साक्ष्य भी उपलब्ध नहीं है।

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