राजस्थान की डिजिटल मीडिया पॉलिसी में कई खामियां, बदलाव जरूरी…!

राजस्थान की डिजिटल मीडिया पॉलिसी में कई खामियां, बदलाव जरूरी…!

केंद्र और भजनलाल सरकार की योजनाओं का नहीं हो पा रहा प्रभावी प्रचार-प्रसार

पंजाब-हरियाणा में डिजिटल मीडिया के सपोर्ट से सरकारें पहुंची जन-जन तक

डिजिटल मीडिया पॉलिसी के नियम-शर्तों में हरियाणा-पंजाब से सीख लेकर राजस्थान में होने चाहिए बदलाव

सरकारी कल्याणकारी योजनाएं छोटे डिजिटल मीडिया प्लेटफार्म से दूर

जबकि सोशल मीडिया जितना अधिक होगा सरकार के साथ, उतना ही फायदा तय

 

जयपुर। करीब दो साल पहले राजस्थान सरकार (Rajasthan Government) ने भी हरियाणा-पंजाब और यूपी की तर्ज पर डिजिटल मीडिया पॉलिसी (digital media policy) बनाई। लेकिन पॉलिसी में खामियों के चलते सिर्फ कुछेक बड़े मीडिया संस्थानों की ही पहुंच सीमित सरकार तक हो पाई। ऐसे में राजस्थान की भजनलाल सरकार लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करके भी डिजिटल मीडिया में अपनी योजनाओं का प्रचार-प्रसार सभी जगह नहीं कर पा रही है। जबकि इस मामले में हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ (Haryana, Punjab, Madhya Pradesh and Chhattisgarh) सहित कई प्रदेश इस मामले में राजस्थान से काफी आगे हैं।

इसका कारण है कि राजस्थान की डिजिटल मीडिया पॉलिसी ही डिफेक्टिव है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राजस्थान की सत्ता संभालने के बाद भजनलाल सरकार डिजिटल मीडिया में एक भी योजना के विज्ञापन जारी नहीं कर पाई है। आमंत्रण के बावजूद राजस्थान के न्यूज पोर्टल सरकारी विज्ञापन लगाने को तैयार नहीं हैं।

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राजस्थान के सूचना एवं जन संपर्क विभाग ने डीएवीपी की डिजिटल मीडिया पॉलिसी को हू-ब-हू एडॉप्ट किया है। चूंकि डीएवीपी की पॉलिसी में विज्ञापन की दरें बहुत ही कम हैं। इसके अलावा उसमें जितने इम्प्रेशन मांगे जाते हैं, उतने इम्प्रेशन देना राजस्थान की किसी भी नॉन डीएवीपी न्यूज पोर्टल के लिए देना संभव नहीं है। इसलिए राजस्थान के एक भी न्यूज पोर्टल को सूचना एवं जन संपर्क विभाग विज्ञापन नहीं दे पा रहा है। वह भी तब जबकि संचार क्रांति के युग में डिजिटल मीडिया प्रचार-प्रसार के लिए सबसे तेज औऱ सस्ता माध्यम है। समाचार पत्रों की सामग्री जहां एक भी पठनीय नहीं रह पाती और क्षेत्र विशेष तक सीमित रहती है। वहीं इंटरनेट के कारण न्यूज पोर्टल के समाचार और अन्य प्रचार सामग्री को दुनियाभर में कहीं भी देखा जा सकता है।

 

कैसे होगा पीएम मोदी का रोजगार सृजन का सपना साकार?

युवाओं को रोजगार और रोजगार (employment) देने वाला बनाने का सपना दिखाने वाली केंद्र की मोदी सरकार अपने प्रयासों में कैसे सफल हो पाएगी। क्योंकि प्रधानमंत्री (PM) नरेंद्र मोदी ( Narendra Modi) कहते हैं युवाओं को रोजगार देने वाला बनना चाहिए लेकिन जब सरकार से युवा पत्रकारों को ही संबल नहीं मिल पाएगा तो ऐसे में डिजिटल मीडिया से जुड़े संस्थान कैसे सर्वाइव कर पाएंगे। ऐसे में न तो वे खुद ही रोजगार युक्त कहलाएंगे और न ही अन्य युवाओं को अपने साथ जोड़कर उन्हें रोजगार देने में सक्षम हो सकेंगे।

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राजस्थान की पॉलिसी से प्रदेश के 25% कंटेंट की शर्त हटाई

कांग्रेस शासन में बनाई गई डिजिटल मीडिया पॉलिसी में पहले एक शर्त थी कि प्रत्येक न्यूज पोर्टल को राजस्थान के सूचना एवं जन संपर्क विभाग में रजिस्ट्रेशन कराना है। इसके लिए ए, बी, और सी कैटेगरी बनाई गई थी। शर्त थी कि पोर्टल का डोमेन न्यूनतम 3 साल पुराना हो और उसमें जो न्यूज कंटेंट है, इसमें 25 प्रतिशत राजस्थान का होना चाहिए। इसका उद्देश्य राजस्थान के पत्रकारों को संरक्षण देने के साथ ही राजस्थान की योजनाओं का अच्छे से प्रचार-प्रसार करना था।

लेकिन, पिछली सरकार में ऐसे न्यूज पोर्टलों को भी बिना किसी औपचरिकता के विज्ञापन दे दिए गए जिनका राजस्थान से कोई संबंध नहीं था। बाद में कहीं ये घोटाला उजागर ना हो जाए, इसलिए अफसरों ने न्यूज पोर्टल पर राजस्थान के 25 प्रतिशत न्यूज कंटेंट की शर्त ही कैबिनेट से हटवा दी। इसका असर यह हुआ कि राजस्थान के न्यूज पोर्टल जो सरकार के ककामकाज और योजनाओं का प्रचार-प्रसार करते हैं उन्हें सरकार कोई मदद नहीं करेगी। जबकि बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली और दूसरे प्रदेशों के पोर्टलों को करोड़ों रुपए के विज्ञापन दिए जा सकते हैं।

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डि़जिटल मीडिया पॉलिसी में हैं कई अव्यवहारिक शर्तें

राजस्थान की डिजिटल मीडिया पॉलिसी में कई तरह की अव्यवहारिक शर्तें हैं। जैसे सी- कैटेगरी में एप्रूव्ड न्यूज पोर्टल के पास प्रतिमाह न्यूनतम 2.50 लाख विजिटर्स होने चाहिए। इनके पेज व्यूज 3 से 3.50 लाख प्रति माह हो सकते हैं। मीडिया पॉलिसी का हवाला देकर सूचना एवं जन संपर्क विभाग 48,000 रुपए के विज्ञापन पर 95 लाख से ज्यादा इम्प्रेशन मांगता है जो किसी के लिए भी संभव नहीं है।

इसी तरह न्यूज पोर्टल से विज्ञापन के लिए हर बार आवेदन देने को कहा जाता है, जबकि समाचार पत्र और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से साल में एक ही बार आवेदन लिया जाता है। आवेदन में लगभग एक ही तरह की सूचनाएं होती हैं। संभवतः इसीलिए राजस्थान के न्यूज पोर्टल सरकार से दूरी बनाए हुए हैं।

 

डिजिटल मीडिया को लेकर हरियाणा पॉलिसी सबसे शानदार

पहले हरियाणा को भी यही दिक्कतें आ रही थीं क्योंकि हरियाणा के न्यूज पोर्टल जो DAVP एप्रूव्ड नहीं है, उन्हें कोई मदद नहीं मिल पा रही थी। इसलिए हरियाणा सरकार ने अपने प्रदेश के न्यूज पोर्टल को राहत देने के लिए पॉलिसी में संशोधन किया। इसके लिए 4 कैटेगरी ए, बी, सी और डी बनाकर उन्हें इसमें शामिल किया गया। साथ ही न्यूज पोर्टल पर विज्ञापन के लिए प्रतिदिन के हिसाब से फिक्स बैनर पर दरें तय की गई हैं। इससे हरियाणा के न्यूज पोर्टल को प्रतिमाह 1 से 1.50 लाख रुपए तक की सरकार से मदद मिल जाती है।

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बहरहाल लोकसभा चुनाव की घोषणा कभी भी हो सकती है। ऐसे में क्या मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के हस्तक्षेप से राजस्थान में भी डिजटल मीडिया प्लेटफार्म के लिए सरकार पॉलिसी में कई जरूरी संशोधन करेगी। ताकि राजस्थान में चल रहे डिजिटल मीडिया संस्थान जो कि न्यूनतम तीन वर्ष पुराने और एक साल में 10लाख से अधिक विजिटर्स एवं व्यूज रखते हों को सरकार से जनहितकारी योजनाओं का विज्ञापन जारी हो सकेगा।

 

देखना ये भी होगा कि अब राजस्थान सरकार अन्य राज्यों की तर्ज पर मोदी सरकार के युवाओं को रोजगार देने वाला बनने में क्या पत्रकारों को इसमें सक्रिय भूमिका निभाने में मददगार साबित होगी। क्योंकि हरियाणा, एमपी, पंजाब और छत्तीसगढ़ में तो सरकारें डिजिटल मीडिया का सदुपयोग कर सरकार के प्रचार प्रसार में जुटी हैं। तो क्या राजस्थान सरकार इन राज्यों से भी पिछड़ी रहेगी, जबकि शिक्षा, स्वास्थ्य, आईटी, ऊर्जा और पर्यटन जैसे कई क्षेत्रों में प्रदेश सरकार पूरे देश में अव्वल स्थान रखती है।   

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