
संघ की शताब्दी: भागवत परिवार ने लिखी RSS की गौरवगाथा, दादा ने रखी नींव, पिता ने बढ़ाया विस्तार, बेटे ने पहुंचाया शिखर पर…!
भागवत परिवार का संघ से जुड़ाव 100 साल पुराना
डॉ. हेडगेवार के साथी थे मोहन भागवत के दादा
पिता मधुकर राव ने गुजरात में संघ की जड़ें मजबूत कीं
विजय श्रीवास्तव,
महाराष्ट्र/जयपुर, dusrikhabar.com। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 वर्ष पूरे होने पर देशभर में संगठन की यात्रा और उसके नायकों की चर्चा हो रही है। इन्हीं प्रेरक कहानियों में से एक है संघ प्रमुख मोहन भागवत के परिवार की कहानी, जिसने तीन पीढ़ियों तक संघ को आकार देने में अहम भूमिका निभाई। दादा श्रीनारायण पांडुरंग भागवत (नाना साहेब) ने संघ की नींव रखी, पिता मधुकर राव भागवत ने संघ के विस्तार का कार्य संभाला और आज मोहन भागवत संगठन को उसके स्वर्ण युग की ओर ले जा रहे हैं।
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संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार के साथी थे मोहन भागवत के दादा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास में नाना साहेब भागवत का नाम श्रद्धा से लिया जाता है। 1884 में महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के वीरमाल गांव में जन्मे नाना साहेब ने आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद प्रयागराज से कानून की पढ़ाई की और वरोरा नगरपालिका में वकालत शुरू की। वो समय था जब वरोरा कांग्रेस की गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था, और नाना साहेब भी कांग्रेस से जुड़े हुए थे। लेकिन जब डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने RSS की स्थापना की और चंद्रपुर में शाखा शुरू की, तो नाना साहेब ने तुरंत संघ के विचारों को अपनाया। उन्होंने संघ कार्यकर्ताओं के लिए अपना घर, भोजन और निवास उपलब्ध कराया। उनके सख्त स्वभाव के बावजूद बच्चों के प्रति उनका स्नेहपूर्ण व्यवहार उन्हें विशेष बनाता था।
नाना साहेब का प्रभाव इतना गहरा था कि उनके घर से कई प्रचारक निकले, जिनमें से एक थे उनके पुत्र मधुकर राव भागवत, जिन्होंने आगे चलकर संघ को गुजरात में खड़ा करने का कार्य किया।
मधुकर राव भागवत — गुजरात में संघ का विस्तार करने वाले प्रमुख प्रचारक
मधुकर राव भागवत को 1941 में गुजरात प्रचारक बनाकर भेजा गया। उन्होंने सूरत, अहमदाबाद और पूरे राज्य में संघ की शाखाओं की स्थापना की। 1941 से 1948 के बीच गुजरात के 115 शहरों और कस्बों में संघ संगठन खड़ा किया। उनकी मेहनत, संगठन क्षमता और दूरदर्शिता ने उन्हें गुरु गोलवलकर का विश्वासपात्र बना दिया।
उन्होंने लाल कृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं को संघ के सिद्धांतों से जोड़ा। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पुस्तक ‘ज्योतिपुंज’ में मधुकर राव का विशेष उल्लेख करते हुए लिखा है कि उन्होंने “20 वर्ष की आयु में पहली बार मधुकर राव से मुलाकात की थी और नागपुर में एक महीने उनके साथ रहे थे।” उनके संगठन कौशल के कारण उन्हें उत्तर भारत और सिंध (अब पाकिस्तान) में संघ कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण की जिम्मेदारी सौंपी गई।
यह वही दौर था जब RSS का स्वरूप राष्ट्रीय आंदोलन में नई ऊंचाइयों को छूने लगा।
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तीसरी पीढ़ी — मोहन भागवत का संघ के शीर्ष तक पहुंचना
संघ प्रमुख मोहन भागवत की संघ यात्रा घर से ही शुरू हुई। दादा और पिता दोनों के संघ समर्पण ने उन्हें संघ जीवन के प्रति प्रेरित किया। बचपन से शाखा, अनुशासन और राष्ट्रसेवा के संस्कार उनके जीवन का हिस्सा रहे। आज मोहन भागवत RSS के सरसंघचालक के रूप में संघ की आधुनिक सोच और प्राचीन मूल्यों का संगम बन चुके हैं। वे संगठन को केवल भारत तक सीमित नहीं रख रहे, बल्कि वैश्विक मंच पर भारतीय विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
संघ की शताब्दी यात्रा में भागवत परिवार का योगदान अमिट
संघ के 100 वर्ष पूरे होने पर जब संगठन के योगदान की बात आती है, तो भागवत परिवार की तीन पीढ़ियां इस गौरवगाथा की मजबूत कड़ी बनती हैं।
नाना साहेब की त्याग और समर्पण भावना, मधुकर राव की संगठन कुशलता और मोहन भागवत का नेतृत्व और दृष्टिकोण, इन तीनों ने मिलकर RSS को एक सजीव सांस्कृतिक शक्ति बनाया है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कहानी सिर्फ एक संगठन की नहीं, बल्कि संस्कार, समर्पण और सेवा की निरंतर यात्रा की कहानी है। भागवत परिवार इस यात्रा का जीवंत प्रतीक है — जिन्होंने संघ को नींव से शिखर तक पहुंचाने में तीन पीढ़ियों तक योगदान दिया।
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