
गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के डॉ ऋषि कुमार शर्मा राज्यस्तरीय सम्मेलन में पेनलिस्ट विशेषज्ञ…
गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल का राज्य स्तरीय मंच पर गौरव
संतोकबा दुर्लभजी मेमोरियल हाॅस्पिटल में 3दिवसीय सम्मेलन “राजपल्मोकॉन 2025″
उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी ने किया सम्मेलन का शुभारंभ
सुश्री सोनिया,
उदयपुर,dusrikhabar.com। जयपुर स्थित संतोकबा दुर्लभजी मेमोरियल हॉस्पिटल के श्वास रोग विभाग, इंडियन चेस्ट सोसायटी व एनसीसीपी के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय राज्य स्तरीय सम्मेलन “राजपल्मोकॉन 2025” का आयोजन किया गया। राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी ने दीप प्रज्ज्वलन कर इस सम्मेलन की शुरुआत की।
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संतोकबा दुर्लभजी मेमोरियल हॉस्पिटल में “राजपल्मोकॉन 2025” सम्मेलन
इस सम्मेलन में श्वास रोगों की बढ़ती चुनौतियों विषय पर चर्चा हुई तथा विषय विशेषज्ञों ने इस पर चिंता जाहिर की। जयपुर में हुए इस सम्मेलन में 400 से अधिक विशेषज्ञ चिकित्सक शामिल हुए। गीताांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के डॉ ऋषि कुमार शर्मा ने सम्मेलन में बतौर विशेषज्ञ पैनलिस्ट शामिल होकर गीताजंली हॉस्पिटल को राज्य स्तरीय मंच गौरव दिलाया।
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डाॅ. ऋषि कुमार शर्मा, वरिष्ठ प्रोफेसर (श्वसन रोग विभाग), गीताांजलि मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, उदयपुर ने राजपल्मोकॉन 2025 (राज्य स्तरीय पल्मोनोलॉजिस्ट सम्मेलन) में सक्रिय रूप से न सिर्फ मौजूद रहे बल्कि विशेषज्ञ के तौर पर अपनी अनुभव और विषय की गंभीरता पर अपने वक्तव्य रखे।

SDMH में “राजपल्मोकॉन 2025” सम्मेलन में गीतांजली हॉस्पिटल,उदयपुर के डॉ ऋषि कुमार शर्मा ।
Dr. Sharma ने “पैराप्न्यूमोनिक इफ्यूज़न के प्रबंधन” विषय पर पैनलिस्ट के रूप में अपने विशेषज्ञ विचार साझा करते हुए कहा कि इस चुनौतीपूर्ण रोग के उपचार हेतु साक्ष्य-आधारित नवीनतम तरीकों को अपनाया जाना चाहिए। इस अवसर पर डाॅ. शर्मा ने राज्यव्यापी पीजी क्विज़ प्रतियोगिता का भी सफल संचालन किया, जिसमें पूरे राजस्थान से युवा पल्मोनोलॉजिस्टों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। इस आयोजन में शामिल होना डॉ ऋषि के न केवल शैक्षणिक नेतृत्व को दर्शाती है बल्कि भावी विशेषज्ञों के मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन में उनकी निरंतर प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करती है।
श्वास रोगों की बढ़ती चुनौतियां क्या क्या हैं:-
1. पर्यावरण प्रदूषण और जीवनशैली
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वायु प्रदूषण (धूल, धुआं, औद्योगिक गैसें, वाहनों का धुआं) आज श्वास रोगों के सबसे बड़े कारणों में से है।
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शहरीकरण और अस्वस्थ जीवनशैली (धूम्रपान, प्रोसेस्ड फूड, व्यायाम की कमी) भी श्वसन स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
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ग्रामीण क्षेत्रों में बायोमास ईंधन (लकड़ी, उपले, कोयला) से निकलने वाला धुआं महिलाओं और बच्चों में क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस और अस्थमा का कारण बनता है।
2. बढ़ते श्वसन रोग
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अस्थमा (Asthma) – बच्चों और युवाओं में तेजी से बढ़ रहा है।
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क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) – तंबाकू और धूम्रपान इसका प्रमुख कारण है।
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फेफड़ों का कैंसर – धूम्रपान, प्रदूषण और अस्वस्थ आदतों से जुड़ा।
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टीबी (क्षय रोग) – भारत जैसे देशों में अभी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती।
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पोस्ट-कोविड जटिलताएं – कोविड-19 के बाद लंबे समय तक सांस फूलना, थकान और फेफड़ों की क्षमता कम होना अब नया खतरा है।
3. जलवायु परिवर्तन का असर
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मौसम के बदलते पैटर्न और बढ़ती गर्मी श्वास संबंधी रोगों को और गंभीर बना रही है।
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परागकण (Pollen) और एलर्जी के केस बढ़ रहे हैं, जिससे एलर्जिक राइनाइटिस और अस्थमा के मरीजों में वृद्धि हो रही है।
4. निदान और उपचार की चुनौतियां
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ग्रामीण व अर्धशहरी क्षेत्रों में अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं।
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फेफड़ों की बीमारियों का देर से निदान होना।
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उच्च लागत वाली दवाएं और इलाज।
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प्रशिक्षित पल्मोनरी विशेषज्ञों की कमी।
5. सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
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लंबे समय तक बीमार रहने वाले मरीजों की कार्य क्षमता घट जाती है।
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परिवार और समाज पर आर्थिक बोझ बढ़ता है।
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स्वास्थ्य बजट पर दबाव बढ़ता है।