मेवाड़ से शुरू हुआ यह शास्त्रार्थ निरंतर प्रवाहित रहना चाहिए – हनुमान सिंह

मेवाड़ से शुरू हुआ यह शास्त्रार्थ निरंतर प्रवाहित रहना चाहिए – हनुमान सिंह

भारतीय कालगणना और ज्योतिष विषयक संगोष्ठी में अखिल भारतीय विद्वत समिति बनाकर प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करने का संकल्प

उदयपुर, dusrikhabar.com। मेवाड़ की धरती पर भारतीय कालगणना, पंचांग और ज्योतिष पर इस मंथन को शास्त्रार्थ कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि जिस तरह भारतीय परम्परा में किसी भी सिद्धांत को शास्त्रार्थ से स्थापित करने की परम्परा रही है, उसी प्रकार दो दिन की इस संगोष्ठी में विद्वतजनों ने भारतीय कालगणना की प्राचीनता और वैज्ञानिकता को प्रतिपादित करने में महत्वपूर्ण संदर्भ शोधपत्रों के माध्यम से प्रस्तुत किए हैं। आवश्यकता है कि इस क्रम की निरंतरता को प्रवाहमान बनाए रखने की और मेवाड़ से शुरू हुई इस पहल को अखिल भारतीय स्तर पर विद्वत समिति बनाकर विश्व के समक्ष भारत की प्राचीन ज्ञान परम्परा को पुनर्स्थापित करने का प्रयास करने की।

यह बात रविवार को प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ में भारतीय कालगणना, पंचांग और ज्योतिष विषय पर चल रही अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन पर मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय कार्यकारिणी सदस्य हनुमान सिंह ने कही। प्रताप गौरव केन्द्र और देवस्थान विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस संगोष्ठी में उन्होंने विद्वानों का आह्वान करते हुए कहा कि यह मंथन का पुनः आरंभ है, इति नहीं।

ग्रेगोरियन कैलेंडर से कई गुना सटीक और प्राचीन भारतीय कालगणना है जिसे हमें आज की भाषा में भारतीय जनमानस को समझाना होगा। भारतीय जनमानस इस पर गर्व करेगा और स्वीकार करेगा, तब हम विश्व में दुंदुभी बजा पाएंगे। इसकी शुरुआत इस तथ्य से की जा सकती है कि जब यह कैलेंडर शुरू हुए तब भारतीय पंचांग किस ऊंचाई पर थे। जब दूसरी शताब्दी में टोलेवी धरती को चपटी कह रहे थे तब हमारे आर्यभट्ट बिहार के तारेगना गांव में रहकर ब्रह्माण्ड पर शोध कर रहे थे। तारेगना गांव को नासा ने 2009 में सूर्य ग्रहण पर शोध के लिए बेस्ट प्लेस कहा था।

हनुमान सिंह ने कहा कि हमें अपने ही ज्ञान से दूर करने का षड्यंत्र अंग्रेजों के शासन में लॉर्ड मैकाले के समय में शुरू हुआ और मैकाले ने स्पष्ट कहा था कि भारत की संस्कृति को कमजोर करना है तो भारत को संस्कृत से दूर करना होगा। हनुमान सिंह ने कहा कि जापान में ऐसा साफ्टवेयर बन चुका है जो मानव शरीर के चक्र सिद्धांत पर आधारित है। उसके जरिये वे आपके शरीर की व्याधियों, बदलावों का आंकलन बता देते हैं। भारतीय कालगणना और ज्योतिष के विद्वानों को तकनीकी तज्ञों के सहयोग से इस क्षेत्र में भी कदम बढ़ाना होगा।

मुख्य वक्ता की बात को ही आगे बढ़ाते हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के अध्यक्ष प्रो. बीपी शर्मा ने कहा कि हमें अब आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) को जोड़ने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। इससे गणनाएं सटीक होने के साथ प्राचीनतम गणनाओं तक पहुंचने में भी सरलता बन सकेगी। प्रो. शर्मा ने प्राचीन शास्त्रों में वर्णित दृष्टांतों पर चर्चा करते हुए कहा कि गहराई से विचार करेंगे तो यह दृष्टांत हमारी कालगणना और ग्रंथों में वर्णित घटनाओं को आपस में जोड़ते हैं। रामायण में चार दांत वाले हाथी का वर्णन आता है। आज के पुराविदों द्वारा कहा गया है कि ऐसे प्राणी 10 लाख साल पहले विलुप्त हो गए। ऐसे में हम रामायण काल से इसे सम्बद्ध क्यों नहीं कर सकते। प्रो. शर्मा ने कहा कि हमारी कालगणना अनादि है, कहीं समाप्त नहीं होती और ज्योतिष कालचक्र का नेत्र है। उन्होंने देवस्थान विभाग से ऐसे विषयों पर प्रति सप्ताह मंथन करने की श्रृंखला आरंभ करने का आग्रह किया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि देवस्थान उपायुक्त सुनील मत्तड़ ने विद्वानों का अभिनंदन करते हुए कहा कि यह संगोष्ठी विषय के अनुरूप सार्थकता की ओर अग्रसर होने का माध्यम बनी है। देवस्थान विभाग आगे भी भारतीय प्राचीन ज्ञान परम्पराओं को लेकर ऐसे आयोजनों में सहयोग के लिए प्रस्तुत रहेगा।

संगोष्ठी के सहसंयोजक हिमांशु पालीवाल ने बताया कि अतिथियों का स्वागत संगोष्ठी के संयोजक धीरज बोड़ा, वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के उपाध्यक्ष एमएम टांक, कोषाध्यक्ष अशोक पुरोहित, प्रताप गौरव केन्द्र के निदेशक अनुराग सक्सेना, जयदीप आमेटा, प्रो. मदन सिंह राठौड़ ने किया। प्रतिवेदन का वाचन प्रताप गौरव शोध केन्द्र के निदेशक डॉ. विवेक भटनागर ने तथा संचालन प्रो. सुदर्शन सिंह राठौड़ ने किया। दो दिन के सत्रों में रवि शंकर (नई दिल्ली), डॉ. अलकनंदा शर्मा (उदयपुर), चंद्रशेखर पंचोली (उदयपुर), कमलेश पंचोली (उदयपुर), डॉ. ओमप्रकाश पाण्डे (दिल्ली), डॉ. सूरज राव (अजमेर), डॉ. सुमत कुमार जैन (उदयपुर), डॉ. धर्मवीर शर्मा (दिल्ली), आचार्य दार्शनेय लोकेश (नोएडा), आचार्य प्रमोद (नेपाल), आलोक शर्मा (गाजियाबाद), विभु विश्वामित्र (देहरादून), अनुपम जॉली (जयपुर), शंकर साहू (उदयपुर), अरुण उपाध्याय (न्यूयॉर्क), डॉ. अखण्ड प्रताप सिंह (उदयपुर), पीयूष दशोरा (उदयपुर), डॉ. अरुण प्रकाश (दिल्ली), प्रताप सिंह झाला (उदयपुर), विष्णुकांत (अजमेर), अंकित गहलोत (जोधपुर) आदि ने शोधपत्र पढ़े। कार्यक्रम में देवस्थान विभाग के सहायक आयुक्त जतिन कुमार गांधी, निरीक्षक शिवराज सिंह राठौड़, प्रबंधक सुमित्रा सिंह, नितिन नागर, भगवान सिंह, तिलकेश जोशी भी उपस्थित थे।

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