
मोहन भागवत के बड़े बयान ने बदले भविष्य की राजनीति के मायने… न 75 साल पर रिटायर होऊंगा…!
मोहन भागवत के बयान से भारत की राजनीति में कई सारे सवालों का मिला जवाब
न 75 साल पर रिटायर होऊंगा, न किसी को होने के लिए कहूंगा”- मोहन भागवत
राजनीति में सत्ता की लालसा से ऊपर है कर्तव्य और देश सेवा- संघ प्रमुख
पीएम मोदी की रिटायरमेंट की अटकलें हुईं समाप्त, भाजपा की पीएम की अंदरखाने चल रही तलाश भी समाप्त
भागवत बोले संघ और सरकार में मतभेद हो सकते हैं मनभेद नहीं
हम सिर्फ सलाह देते हैं सरकार के फैसले नहीं लेते- संघ प्रमुख
विजय श्रीवास्तव,
दिल्ली(dusrikhabar.com)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) का रिश्ता भारतीय राजनीति में सिर्फ संगठनात्मक सहयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक वैचारिक और सांस्कृतिक धारा का संगम है। हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत का यह बयान— “न 75 साल पर रिटायर होऊंगा, न किसी को होने के लिए कहूंगा”— न केवल संघ की परंपरा को स्पष्ट करता है बल्कि भारतीय राजनीति की बदलती परिभाषाओं को भी गहराई से प्रभावित करता है। संघ प्रमुख मोहन भागवत गुरुवार को दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिवसीय संवाद कार्यक्रम में बोल रहे थे।
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एक समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
भारत की राजनीतिक भविष्य के 15 साल तय
आज भारत की राजनीति में संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान से भारत की राजनीति में आने वाले 15साल का भविष्य एकदम साफ हो गया है। आने वाले समय में भारत अब भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दावेदारी और उनका रोल तय हो गया है। हालांकि राजनीति में अटकलें काफी चलती हैं लेकिन आज संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान से ये तो स्पष्ट हो गया है कि आगामी 15 साल अगर सब कुछ ठीक ठाक चला तो देश में भाजपा का ही शासन चलने वाला है। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कुछ फैसले राजनीति से ऊपर उठकर देश की सेवार्थ होने ही चाहिए ताकि वो देश सलामत रहे जिसने आपको आपका नाम और औहदा दिया है।
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संघ में “पद” व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं बल्कि संगठन की आज्ञा पालन…
संघ प्रमुख के बयान से संघ की परंपरा और नेतृत्व का संदेश एकदम साफ समझ आता है। संघ प्रमुख मोहन भागवत का यह कहना कि “हम वही करते हैं, जो संघ कहेगा” संघ के कार्यपद्धति की सच्ची झलक है। यह पद या उम्र की सीमा से अधिक जिम्मेदारी और संगठन की आवश्यकता पर केंद्रित दृष्टिकोण है। संघ में नेतृत्व का मतलब व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं, बल्कि संगठन की आज्ञा का पालन करना है। इसी कारण संघ प्रमुख का यह बयान भारतीय राजनीति के लिए भी एक गहरी सीख है— जहाँ राजनीति अक्सर उम्र और पद की सीमाओं से बंधी रहती है, वहीं संघ सेवा और समर्पण की परंपरा को आगे रखता है।
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भाजपा और संघ का बेजोड़ तालमेल
भारतीय राजनीति में यह सर्वविदित है कि भाजपा और संघ का संबंध केवल औपचारिक नहीं, बल्कि वैचारिक है। भाजपा को संगठनात्मक शक्ति और विचारधारा संघ से ही मिलती है। भाजपा के कई शीर्ष नेता— प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह तक— संघ की कार्यशैली और अनुशासन में ही पले-बढ़े हैं। यही कारण है कि भाजपा और संघ का तालमेल भारतीय राजनीति में एक अद्वितीय प्रयोग बन गया है। भागवत का बयान इस बात को भी मजबूत करता है कि संघ और भाजपा की प्राथमिकता व्यक्ति नहीं, बल्कि विचार और संगठन है।

पीएम मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत
भारतीय राजनीति के लिए संदेश
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आज एक बात तो साफ कर दी कि राष्ट्र से ऊपर कुछ नहीं है। शायद यही कारण है कि भागवत ने भारतीय राजनीति के लिए संदेश दिया है कि देश सेवा में उम्र बंधन नहीं है। आज जब भारतीय राजनीति में उम्रदराज नेताओं की रिटायरमेंट नीति पर बहस होती है, तब संघ प्रमुख का यह वक्तव्य एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। भागवत का कहना कि “हम स्वयंसेवक हैं, वही करेंगे जो संघ कहेगा” राजनीति में सत्ता की लालसा से ऊपर उठकर कर्तव्य और सेवा का संदेश देता है। यह भाजपा के लिए भी प्रेरणास्रोत है, जिसने संघ के मार्गदर्शन में न केवल संगठन मजबूत किया बल्कि भारतीय राजनीति की धारा भी बदल दी।
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बहरहाल संघ प्रमुख मोहन भागवत का यह बयान संघ की कार्यशैली और भाजपा-संघ संबंधों की गहराई को और स्पष्ट करता है। यह केवल एक बयान नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति में विचारधारा बनाम व्यक्तिवाद की बहस में एक निर्णायक हस्तक्षेप है। संघ और भाजपा का तालमेल आज भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी ताकत है और आने वाले समय में इसका असर और भी गहरा होगा।
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