“मानस से जनमानस तक”: तुलसीदास की चौपाइयों से मिलती है आध्यात्मिक ऊर्जा: डॉ. राजेश्वर सिंह

“मानस से जनमानस तक”: तुलसीदास की चौपाइयों से मिलती है आध्यात्मिक ऊर्जा: डॉ. राजेश्वर सिंह

साहित्य से मन का उपचार, रामचरितमानस से जीवन की दिशा — संवाद में बोले डॉ. राजेश्वर सिंह

योग से समाधि तक की यात्रा का सहज मार्ग बताया फोर्टिस हॉस्पिटल के सर्जन डॉ. हेमेंद्र ने

दहलीज का दीपक रोशन करता है मन के भीतर-बाहर: संयोजक सुधीर सोनी का प्रेरक वक्तव्य

 

विजय श्रीवास्तव,

जयपुर,(dusrikhabar.com)। “मानस से जनमानस “तक विषय पर एक वैचारिक गोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन रविवार को जयपुर स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल के सभागार में फॉर्टिस हॉस्पिटल, जयपुर और थार संस्था के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य तुलसीदास रचित रामचरितमानस के आध्यात्मिक और व्यावहारिक पक्ष को आमजन तक पहुंचाना था।

आयोजन में सेवा निवृत IAS डॉ राजेश्वर सिंह, वरिष्ठ आईएएस डॉ समित शर्मा, केके पाठक, डॉ टीकम चंद बोहरा, फोर्टिस के सर्जन डॉ हेमेंद्र, डॉ केके रत्नू और संयाेजक सुधीर सोनी सहित अन्य वक्ताओं ने अपनी बात रखी।

वरिष्ठ IAS डॉ समित शर्मा मानस से जनमानस तक विषय पर अपने विचार रखे।

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ब्राह्मण अपना ब्राह्मणत्व कभी नहीं छोड़ता: डॉ राजेश्वर सिंह

“मानस से जनमानस” तक विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में रिटायर्ड IAS डॉ. राजेश्वर सिंह ने अपनी बात की शुरुआत ब्राह्मणों से करते हुए कहा कि ब्राह्मण चाहे शिक्षक, प्रशासक, अधिकारी या व्यापारी जो भी बन जाए अपना ब्राह्मणत्व नहीं छोड़ता। 

उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों डॉ. समित शर्मा और केके पाठक का उदाहरण देते हुए ब्राह्मणत्व की अवधारणा पर भी चर्चा की। उन्होंने यह भी कहा कि तुलसीदास ने कवित्व और साहित्य की ऊंचाइयों को छूने के बाद भी अपने बचपन के अनुभवों को नहीं भुलाया और रामचरितमानस में उन्हें सजीव रखा।

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हॉस्पिटल शरीर तो साहित्य हमारे मन का उपचार करता है: डॉ सिंह

उन्होंने “रामचरितमानस आम और खास दोनों वर्गों के जीवन में गहराई से जुड़ी हुई है। जैसे हॉस्पिटल शरीर का उपचार करता है, वैसे ही तुलसीदास का साहित्य मन की व्यथा हरता है।” डॉ सिंह ने तुलसीदास जी की चौपाइयों के साथ अपनी पूरी बात संवाद के माध्यम से लोगों तक पहुंचाई। भारत का आम और खास आदमी आज भी मानस की चौपाइयों में अपनी परेशानियों का हल तलाशते हैं। भारतीय संस्कृति को जन-जन तक पहुंचाने के लिए श्रीमद् भागवत गीता और रामचरित मानस सर्वाधिक उपयुक्त ग्रंथ हैं। उन्होंने तुलसीदास जी के कई संस्मरणों और बचपन के प्रसंगों के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि कवित्व और साहित्य के उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बाद भी उन्होंने अपने बचपन के वास्तविक संस्मरण को नहीं भुलाया और अपने लेखन में उसका जहां मौका मिला जिक्र किया।

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संयोजक सुधीर सोनी और मार्गदर्शक सेवानिवृत्त IAS डॉ. राजेश्वर सिंह ने कार्यक्रम की संकल्पना प्रस्तुत की। संवाद में वक्ताओं ने साहित्य, संस्कृति, योग और आत्मिक उन्नयन पर विचार रखे।

मानस से जनमानस तक विषय पर रविवार को जयपुर के फोर्टिस अस्पताल के सभागार में संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस आयोजन के संयोजक सुधीर सोनी ने बताया कि जुलाई में प्रेमचंद और तुलसी जयंती का आयोजन हुआ इसी उपलक्ष्य में सेवानिवृत्त IAS डॉ राजेश्वर सिंह ने इस आयोजन की रूपरेखा तैयार की और मानस से जनमानस तक पहुंचने का प्रयास किया।

दहलीज का दीपक मन के अंदर और बाहर दोनों तरफ राेशन कर देता है: सुधीर सोनी

सुधीर सोनी ने कहा कि जनमानस तक पहुंचने के लिए अपने मन की दहलीज पर दीपक प्रज्जवलित करना होगा ताकि हमारे मन के अंदर और बाहर दोनों तरफ उसकी रोशनी से हमारे जीवन का अंधकार दूर हो सके। उन्होंने कहा कि आज का विषय तुलसीदास का मानस इसलिए रखा गया है क्योंकि धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष रामचरित मानस में सम्मिलित हैं।

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उन्होंने कहा कि तुलसीदास जी का नाम भारत के हर कोने में साकार है। भारत का हर आदमी आज तुलसीदास जी के किसी न किसी दोहे, चौपाई को खुद से रिलेट करता है।  सोनी ने भगवान के राम के वनवास जाने के संस्मरण को सुनाते हुए कहा कि राम को वन की ओर आते देख रास्ते में उगे कांटों, पत्थरों ने अपने स्वभाव चुभने की आदत को छोड़ दिया, सीता मां के माथे पर पसीने को देखकर सूरज ने अपने तपन को चंद्रमा की शीतलता में बदल दिया। 

योग से समाधि तक 

फोर्टिस अस्पताल के जनरल सर्जन डॉ हेमेंद्र ने अपने वक्तव्य की शुरुआत सर्जरी के अनुभवों से करते हुए बताया कि योग केवल व्यायाम नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के पुनर्मिलन का माध्यम है। उन्होंने योग और प्राणायम से आधात्म तक को बड़े ही सरल रूप में समझाया।

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उन्होंने बताया कि योग आत्मा का परमात्मा के साथ पुर्नमिलन है। योग, राजयोग यानि मेडिटेशन, प्राणायाम, प्रत्याहारा से धारणा, ध्यान और समाधि तक पहुंचा जा सकता है। उन्होंने राजयोग, प्राणायाम, ध्यान और समाधि की व्याख्या करते हुए कहा कियोग मन को एकाग्र करके उसे ब्रह्म से जोड़ने की प्रक्रिया है, जो हमें अपने भीतर झांकने का अवसर देता है।”

 

 

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वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी IAS डॉ समित शर्मा और केके पाठक ने भी “मानस से जनमानस तक” विषय पर अपने विचार लोगों के सामने रखे। इस विचार संगोष्ठी में बड़ी संख्या में विद्यार्थी, शोधार्थी और साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।

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