वैदिक पंचांग-द्वितीय नवरात्र “माँ ब्रह्मचारिणी”

वैदिक पंचांग-द्वितीय नवरात्र “माँ ब्रह्मचारिणी”

*~ वैदिक पंचांग ~*

पंचांग (द्वितीय नवरात्र) ज्योतिषी पूनम गौड़ के अनुसार कैसे शुभ होगा?

जानिए वैदिक पंचांग से (द्वितीय नवरात्र)

दिनांक – 16 अक्टूबर 2023
दिन – सोमवार
विक्रम संवत – 2080 (गुजरात – 2079)
शक संवत – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद ॠतु
मास – आश्विन

पक्ष – शुक्ल
तिथि – द्वितीया 01:13 (17 अक्टूबर) तक तत्पश्चात तृतीया
नक्षत्र – स्वाति 19:35 तक त्तपश्चात विशाखा
योग – विष्कुम्भ 10:04 तक तत्पश्चात प्रीति

दिन की शुरुआत

राहुकाल – 07:30 – 09:00 बजे तक
सूर्योदय – 06:22
सूर्यास्त – 17:51
दिशाशूल – पूर्व दिशा में
व्रत पर्व – दूसरा नवरात्र, ब्रह्मचारिणी माँ का स्वरूप, चीनी का भोग, सेब का भोग

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💥 विशेष:- द्वितीया को बैंगन व कटहल खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

👉सम्पूर्ण प्राणियों के लिए शरद और बसन्त ये दोनों ऋतुएं ‘यमदंष्ट्र’ नाम से कही गई हैं। ये दोनों ऋतुएं जगत के प्राणियों के लिए रोगकारक तथा महान् कष्टप्रद मानी गई हैं। इन ऋतुओं में प्रकृति का संहारक रूप प्रकट होता है और भगवती प्रकृतिरूपा हैं, अतः इन ऋतुओं के आगमन पर सभी को भगवती चण्डी की उपासना अवश्य करनी चाहिए।

👉नवरात्र नियम (व्रत-पूजन) आरम्भ करने का प्रशस्त समय नवरात्र के आरम्भ में अमावस्या युक्त प्रतिपदा वर्जित है तथा द्वितीयायुक्त प्रतिपदा शुभ है। इसी प्रकार आरम्भ में कलश स्थापना के समय चित्रा नक्षत्र तथा वैधृति योग का होना भी हानिकारक है।

👉नवरात्रीय दुर्गा – पूजन में प्रतिदिन समर्पणीय विशेष द्रव्य नवरात्रीय दुर्गा पूजन में प्रतिपदा के दिन भगवती को केश संस्कार के द्रव्य-शैम्पू, सुगन्धित तेल, आंवला इत्यादि विशेष रूप से समर्पित करने चाहिए। इसी प्रकार द्वितीया के दिन जूड़ा बांधने के लिए उत्तम रेशमी फीता आदि, तृतीया को सिन्दूर व दर्पण, चतुर्थी को मधुपर्क और नेत्रांजन, पंचमी को अंगराग व अलंकार तथा षष्ठी तिथि को विशेष पुष्प पूजा करनी चाहिए।

👉सप्तमी को गृहमध्य पूजा, अष्टमी को उपवासपूर्वक पूजन, नवमी को महापूजा व कुमारी पूजा तथा दशमी को नीराजन व विसर्जन करना चाहिए। दुर्गासप्तशती पाठ कहा गया है कि मनुष्य से देवता पर्यन्त सभी स्तुति से प्रसन्न होते हैं।

👉यदि ब्राह्मणों से पाठ करवाना हो तो उनकी संख्या भी विषम होनी चाहिए। अलग-अलग कामनाओं की सिद्धि के लिए अलग-अलग संख्या के पाठ के विधान मिलते हैं।

फलसिद्धि के लिए

1. उपद्रव शान्ति के लिए 3, सभी प्रकार की शान्ति के लिए 5, भय के छूटने के लिए 7, यज्ञ फल की प्राप्ति के लिए 9, राज्य के लिए 11, कार्य सिद्धि के लिए 12, वशीकरण के लिए 14, सुखसम्पत्ति के लिए 15, धनसम्पत्ति के लिए 16, शत्रु, रोग और राज्यभय से छूटने के लिए 17, प्रिय की प्राप्ति के लिए 18, बुरे ग्रहों की शान्ति के लिए 20, बन्धन से मुक्त होने के लिए 25।

👉मृत्युभय, व्यापक उपद्रव, राष्ट्रविप्लव आदि से रक्षा, असाध्य वस्तु की सिद्धि तथा लोकोत्तर लाभ के लिए उद्देश्य की गुरुता के अनुसार शतचण्डी से लेकर कोटिचण्डी तक का विधान शास्त्रों में पाया जाता है।

👉विभिन्न तंत्र ग्रन्थों में सप्तशती के अनेक प्रकार के सम्पुटित पाठ के प्रयोग विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए उपलब्ध होते हैं जो सविधि सन्ध्या वन्दन निष्ठ, सदाचार सम्पन्न, सच्चरित्र, पवित्र, दुर्गाभक्त वैदिक विद्वान के द्वारा सम्पादित कराये जाने पर चमत्कारिक फलदायी होते हैं।

👉अनुष्ठानकर्ता ब्राह्मण को दक्षिणा से सन्तुष्ट करने पर ही पूरा फल प्राप्त होता है। हवनीय द्रव्यों में पायस, त्रिमधु (घृत, मधु, शर्करा), द्राक्षा (मुनक्का), रम्भा (केला), मातुलंग (विजौरा), इक्षु (गन्ना), नारियल, जातीफल तथा आम इत्यादि मधुर वस्तुएं प्रमुख हैं।

👉वनवास के समय सीता के विरह में अत्यन्त व्याकुल भगवान राम को देवर्षि नारदजी ने रावण का वध करने तथा सीता को पुनः प्राप्त करने के लिए नवरात्र व्रत का उपदेश किया था। भगवान राम तथा लक्ष्मण ने किष्किन्धा पर्वत पर आश्विन (शारदीय) नवरात्र में उपवासपूर्वत विधि विधानपूर्वक पूजन किया।

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👉मां दुर्गा ध्यान मंत्र है

ॐ जटा जूट समायुक्तमर्धेंन्दु कृत लक्षणाम| लोचनत्रय संयुक्तां पद्मेन्दुसद्यशाननाम॥

अर्थ- मैं सर्वोच्च शक्ति को नमन करता हूं और आपसे आग्रह करता हूं कि लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने में और उन्हें प्राप्त करने में मेरी मदद करें।

👉दुर्गा मंत्र है:

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके, शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥

अर्थ- मैं नारायणी को नमन करता हूं, जो सब कुछ शुभ बनाती हैं क्योंकि वह सबसे शुभ हैं। जो भी त्रिनेत्र गौरी की शरण में आता है, मां उसकी सभी इच्छाओं को पूरा करती हैं।

👉देवी स्तुति मंत्र है:

या देवी सर्वभुतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता । या देवी सर्वभुतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता । या देवी सर्वभुतेषु मातृरूपेण संस्थिता । या देवी सर्वभुतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥

👉शक्ति मंत्र है:

शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायण नमोऽस्तु ते।

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते।

रोगनशेषानपहंसि तुष्टा। रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ,त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां! त्वमाश्रिता हृयश्रयतां प्रयान्ति।।

सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्।।

सर्वाबाधा विर्निर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय।।

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।

अर्थ- आप जो निर्बलों और गरीबों की रक्षा करने और उनके दुखों को दूर करने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। हे देवी नारायणी, मैं आपसे प्रार्थना करता हूं।

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हे देवी दुर्गा, कृपया हमें सभी प्रकार के भय से बचाएं। हे सर्वशक्तिमान दुर्गा, मैं आपसे प्रार्थना करता हूं।

हे देवी, जब आप प्रसन्न होती हैं, तब सभी बीमारियों को दूर कर देती हैं और जब आप क्रोधित होती हैं, तब वह सब नष्ट कर देती हैं जिसकी एक व्यक्ति कामना करता है। हालांकि, जो लोग आपके पास शरण लेने के लिए आते हैं, उन्हें आप सब कष्टों से दूर करती हैं।

👉मां दुर्गा-दुह-स्वप्न-निवारण मंत्र है:

शान्तिकर्मणि सर्वत्र तथा दु:स्वप्नदर्शने।
ग्रहपीडासु चोग्रासु माहात्म्यं श्रृणुयान्मम॥

👉दुर्गा शत्रु शांति मंत्र है:

रिपव: संक्षयम् यान्ति कल्याणम चोपपद्यते।
नन्दते च कुलम पुंसाम माहात्म्यम मम श्रृणुयान्मम॥

👉माँ दुर्गा-सर्व-बाधा-मुक्ति मंत्र है:

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धन धान्य: सुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यती न संशय:।।

👉दुर्गा अशांत शिशु शांति प्रदायक मंत्र है:

बालग्रहभिभूतानां बालानां शांतिकारकं सङ्घातभेदे च नृणाम मैत्रीकरणमुतमम।।

👉बाधा मुक्ति मंत्र है:

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धन धान्य: सुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यती न संशय:।।
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