वैदिक पंचांग-त्रयोदशी तिथि

*~ वैदिक पंचांग ~*

वैदिक पंचांग-त्रयोदशी ज्योतिषी पूनम गौड़ के अनुसार कैसे शुभ होगा? 

जानिए वैदिक पंचांग से (त्रयोदशी) के बारे में 

दिनांक – 27 अक्टूबर 2023
पंचांग दिन – शुक्रवार
विक्रम संवत – 2080 (गुजरात – 2079)
शक संवत – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद ॠतु
मास – आश्विन

पक्ष – शुक्ल
वैदिक तिथि – त्रयोदशी 06:56 तक तत्पश्चात चतुर्दशी
नक्षत्र – उत्तरभाद्रपद 09:25 तक त्तपश्चात रेवती
योग – हर्षण 02:02 (28अक्टूबर) तक तत्पश्चात वज्र
राहुकाल – 10:30 – 12:00 बजे तक
सूर्योदय – 06:29
सूर्यास्त – 17:40

दिशाशूल – पश्चिम दिशा में
रवि योग – 09:25 से 06:30 (28 अक्टूबर) तक
सर्वार्थ सिद्धि योग – 09:25 से 06:30 (28 अक्टूबर) तक
अमृत सिद्धि योग – 09:25 से 06:30 (28 अक्टूबर) तक
पंचक प्रारंभ – मंगलवार, 24 अक्टूबर 2023 पूर्वाह्न 04:23 बजे
पंचक समाप्त: शनिवार, 28 अक्टूबर 2023 पूर्वाह्न 07:31 बजे

पंचांग के अनुसार व्रत पर्व

शरद पूर्णिमा
चन्द्र ग्रहण
कोजागर पूजा
वाल्मीकि जयंती
मीराबाई जयंती
आश्विन पूर्णिमा

खण्डग्रास चन्द्र ग्रहण – नई दिल्ली
चन्द्र ग्रहण प्रारम्भ – 01:06 ए एम 29 Oct23
चन्द्र ग्रहण समाप्त – 02:22 ए एम
स्थानीय ग्रहण की अवधि – 01 घण्टा 16 मिनट्स 16 सेकण्ड्स
उपच्छाया से पहला स्पर्श – 11:32 पी एम, अक्टूबर 28
प्रच्छाया से पहला स्पर्श – 01:06 ए एम
परमग्रास चन्द्र ग्रहण – 01:44 ए एम
प्रच्छाया से अन्तिम स्पर्श – 02:22 ए एम
उपच्छाया से अन्तिम स्पर्श – 03:55 ए एम
खण्डग्रास की अवधि – 01 घण्टा 16 मिनट्स 16 सेकण्ड्स
उपच्छाया की अवधि – 04 घण्टे 23 मिनट्स 07 सेकण्ड्स
चन्द्र ग्रहण का परिमाण – 0.12
उपच्छाया चन्द्र ग्रहण का परिमाण – 1.12

सूतक प्रारम्भ – 02:52 पी एम, अक्टूबर 28
सूतक समाप्त – 02:22 ए एम
बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिये सूतक प्रारम्भ – 08:52 पी एम, अक्टूबर 28
बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिये सूतक समाप्त – 02:22 ए एम

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💥 विशेष:- त्रयोदशी को बैगन खाने से पुत्र का नाश होता है।

द्वादशी को स्त्री सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)

👉🏻28 अक्टूबर 2023 शनिवार को खंडग्रास चन्द्रग्रहण (भारत में दिखेगा, नियम पालनीय। ग्रहण समय रात्रि 01:06 से 02:22 तक

👉चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है। श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके ‘ॐ नमो नारायणाय’ मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्धि होने पर उस घृत को पी ले। ऐसा करने से वह मेधा (धारणशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाक् सिद्धि प्राप्त कर लेता है।

सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण

👉सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक ‘अरुन्तुद’ नरक में वास करता है।

👉सूर्यग्रहण में ग्रहण चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर (9) घंटे पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं।

ग्रहण काल 

👉ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए।

👉प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यंतआवश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए।

👉 स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल (वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए। स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं।

👉 पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए।

👉ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए।

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क्या करें और क्या न करें

👉ग्रहण के स्नान में कोई मंत्र नहीं बोलना चाहिए। ग्रहण के स्नान में गरम जल की अपेक्षा ठंडा जल, ठंडे जल में भी दूसरे के हाथ से निकाले हुए जल की अपेक्षा अपने हाथ से निकाला हुआ, निकाले हुए की अपेक्षा जमीन में भरा हुआ, भरे हुए की अपेक्षा बहता हुआ, (साधारण) बहते हुए की अपेक्षा सरोवर का, सरोवर की अपेक्षा नदी का, अन्य नदियों की अपेक्षा गंगा का और गंगा की अपेक्षा भी समुद्र का जल पवित्र माना जाता है।

👉गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरतमंदों को वस्त्रदान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है।

👉 पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहिए। बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए व दंतधावन नहीं करना चाहिए। ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन – ये सब कार्य वर्जित हैं।

शुभ कार्य 

👉ग्रहण के समय कोई भी शुभ व नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।

👉इस समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सुअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है। गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए।

👉तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण में महाफल है, किन्तु संतानयुक्त गृहस्थ को ग्रहण और संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिए।

पुण्यकर्म

👉भगवान वेदव्यासजी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- ‘सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्यग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। यदि गंगाजल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदायी होता है।’

👉ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम-जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है।

👉इस अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है। (स्कन्द पुराण)

👉भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिए।(देवी भागवत)

👉अस्त के समय सूर्य और चन्द्रमा को रोगभय के कारण नहीं देखना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खं. 75.24)*

👉पूनम गौड़ से ज्योतिषीय सलाह लेने के लिए 8826026945 पर व्हाट्सएप्प करें।

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