तुलसी विवाह आज, क्या कहता है वैदिक पंचांग आज के लिए

तुलसी विवाह आज, क्या कहता है वैदिक पंचांग आज के लिए

वैदिक पंचांग

24 नवम्बर को होगा तुलसी विवाह वैदिक पंचांग के अनुसार सूर्योदय से 09:04 तक होगा शुभ मुहूर्त

जानिए ज्योतिषी पूनम गौड से आज कैसा रहेगा आपका दिन ?

दिनांक – 24 नवम्बर 2023
दिन – शुक्रवार
विक्रम संवत – 2080 (गुजरात – 2079)
शक संवत – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद ॠतु
मास – आश्विन
पक्ष – शुक्ल
तिथि – द्वादशी 19:06 तक तत्पश्चात त्रयोदशी
नक्षत्र – रेवती 16:01 तक तत्पश्चात अश्विनी
योग – सिद्धि 09:05 तक तत्पश्चात व्यतिपात
अमृत सिद्धि योग – 06:51 से 16:01 तक
सर्वार्थ सिद्धि योग – अहोरात्रि
पंचक – 06:51 से 16:01 तक
राहुकाल – 10:30 – 12:00 तक
सूर्योदय – 06:51
सूर्यास्त – 17:25

दिशाशूल – पश्चिम दिशा में

व्रत पर्व – योगेश्वर द्वादशी 24 नवम्बर 2023
तुलसी विवाह 24 नवम्बर 2023
तुलसी विवाह मुहूर्त: सूर्योदय से 09:04 तक
प्रदोष व्रत 24 नवम्बर 2023
भीष्म पंचक 23 नवम्बर 2023 से 27 नवम्बर 2023
व्रत की पूर्णिमा 26 नवम्बर 2023
स्नान दान की पूर्णिमा 27 नवम्बर 2023

यह भी पढ़ें: अगले साल कोई शुभ मुहूर्त… देवउठनी ग्यारस आज

💥 विशेष:- द्वादशी को स्त्री सहवास तथा तिल का तेल लगाना व खाना निषिद्ध है। द्वादशी के दिन पूतिका (पोई) खाने से पुत्र नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)

👉प्रदोष काल का अर्थ है सूर्यास्त के समय का एक पवित्र पर्व काल जो भगवान शिव की साधना के लिये अत्यंत अनुकुल होता है।

👉प्रदोष यानी सभी दोषो से मुक्ति प्रदान करने वाला पुण्यकाल। मनुष्य के जीवन मे रोग , कर्जे , शत्रु , ग्रहबाधा , संकट , पूर्वजन्म के पाप आदि यह सब एक प्रकार का विष ही है और प्रदोष काल के शिव पूजन से भगवान भोलेनाथ की कृपा से हम इस विष के प्रभाव से मुक्त हो सकते हैं।

👉इसलिए कहा गया है कि
त्रयोदशी व्रत करे जो हमेशा, तन नाहि राखे रहे कलेशा ”
प्रदोष के दिन आप अगर संभव हो तो दिन भर उपवास रखे और शाम को प्रदोष काल मे शिवपूजन , रुद्राभिषेक , शिवस्तोत्रों का पाठ , शिव मंत्र का जाप , 108 बेल के पत्तों से बिल्वार्चन , ध्यान आदि प्रकार से साधना कर सकते हैं।

👉शुक्रवार को अगर प्रदोष हो तो उसे भृगु प्रदोष कहते हैं। यह शत्रू बाधा निवारण के लिये लाभदायी होता है।

” ये वै प्रदोष समये परमेश्वरस्य
कुर्वंति अनन्य मनसोन्गि सरोजपूजाम
नित्यं प्रबद्ध धन धान्य कलत्र पुत्र
सौभाग्य संपद अधिकारस्त इहैव लोके ”
👉जो लोग प्रदोष काल मे अनन्य भक्ति से महादेव के चरण कमलों का पूजन करते है उन्हे इस लोक में धन-धान्य, सौभाग्य एवं संपत्तक की प्राप्ति होती है।

” अत: प्रदोषे शिव एक एव पूज्योsथ नान्ये हरिपद्मजाद्या:
तस्मिन महेशे विधिज्यमाने सर्वे प्रसीदंति सुराधिनाथा: “

👉प्रदोष काल में विष्णु एवं ब्रम्हा का पूजन न करे और केवल एक शिवजी का पूजन करें। प्रदोष काल मे महादेव के पूजन से सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं।

तुलसी विवाह

👉ब्रह्मा जी कहते हैं कि कार्तिक मास में जो भक्त प्रातः काल स्नान करके पवित्र हो कोमल तुलसी दल से भगवान् दामोदर की पूजा करते हैं, वह निश्चय ही मोक्ष पाते हैं।

👉तुलसी से भगवान् की पूजा, पाप का नाश और पुण्य की वृद्धि करने वाली है। अपनी लगाई हुई तुलसी जितना ही अपने मूल का विस्तार करती है, उतने ही सहस्रयुगों तक मनुष्य ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठित रहता है।

यह भी पढ़ें:देवउठनी एकादशी आज, वैदिक पंचांग से आपका आज…

👉यदि कोई तुलसी संयुत जल में स्नान करता है तो वह पापमुक्त हो आनन्द का अनुभव करता है।

👉जिसके घर में तुलसी का पौधा विद्यमान है, उसका घर तीर्थ के समान है, वहाँ यमराज के दूत नहीं जाते।
👉तुलसी विवाह की विधि व महत्व

कार्तिक शुक्ला नवमी को द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। इस तिथि को नवमी से एकादशी तक मनुष्य शास्त्रोक्त विधि से तुलसी विवाह का उत्सव करें तो उसे कन्यादान का फल होता है। पूर्वकाल में कनक की पुत्री किशोरी ने एकादशी के दिन संध्या के समय तुलसी की वैवाहिक विधि संपन्न की थी इससे वह वैधव्य दोष से मुक्त हो गई थी। अब तुलसी विवाह की विधि सुनिये-

एक तोला स्वर्ण की भगवान् विष्णु की प्रतिमा बनवाएँ या अपनी शक्ति के अनुसार आधे या चौथाई तोले की बनवाएँ अथवा यह भी न होने पर उसे अन्य धातुओं के सम्मिश्रण से ही बनवाएँ। फिर तुलसी और भगवान् विष्णु की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा करके स्तुति आदि के द्वारा भगवान् को निन्द्रा से जगावें। फिर पुरुष सूक्त से व घोडशोपचार से पूजा करें। पहले देशकाल स्मरण करके गणेश पूजन करे, फिर पुण्याह वाचन करके वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए बाजे आदि की ध्वनि से भगवान् विष्णु की प्रतिमा को तुलसी के निकट लाकर रख दें। प्रतिमा को सुंदर वस्त्रों व अलंकारों सजाए रहें उसी समय भगवान् का आह्वान इस मंत्र से करें-

आगच्छ भगवत् देव अर्चयिष्यामि केशव।
तुभ्यं दासयामि तुलसीं सर्वकामप्रदो भव॥

अर्थात्-हे भगवान् केशव ! आइए देव, मैं आपकी पूजा करूँगा, आपकी सेवा में तुलसी को समर्पित करूँगा आप मेरे सब मनोरथों को पूर्ण करें।

इस प्रकार आह्वान के बाद तीन-तीन बार अर्ध्य, पाद्य और विष्टर का उच्चारण करके इन्हें भी भगवान् को समर्पित कर दे। तत्पश्चात् काँसे के पात्र में दही, घी और शहद रखकर उसे कांसे के ढक्कन से ढककर भगवान् को अर्पण करते हुए इस प्रकार कहें- ‘हे वासुदेव, आपको नमस्कार है। यह मधुपर्क ग्रहण कीजिए।’ तब दोनों को एक-दूसरे के समक्ष रखकर मंगल पाठ करें। इस प्रकार गोधूलि बेला में जब भगवान् सूर्य कुछ-कुछ दिखाई दे रहे हों, तब कन्यादान का संकल्प करें और भगवान् से यह प्रार्थना करें- “आदि, मध्य और अंत से रहित त्रिभुवन प्रतिपालक परमेश्वर !

यह भी पढ़ें:कायस्थ कल्याण बोर्ड बनाने पर मुख्यमंत्री का आभार

इस तुलसी को आप विवाह की विधि से ग्रहण करें। यह पार्वती के बीज से प्रकट हुई है, वृंदावन की भस्म में स्थित रही है तथा आदि, मध्य और अंत में शून्य है। आपको तुलसी अत्यंत प्रिय है अतः इसे मैं आपकी सेवा में अर्पित करता हूँ। मैंने जल के घड़ों से सींचकर और अन्य सभी प्रकार की सेवाएँ करके, अपनी पुत्री की भाँति इसे पाला-पोसा है, बढ़ाया है और आपकी तुलसी आपको ही दे रहा हूँ। हे प्रभो ! कृपा करके इसे ग्रहण करें।”

इस प्रकार तुलसी का दान करके फिर उन दोनों (तुलसी और विष्णु) की पूजा करें। अगले दिन प्रातः काल में पुनः पूजा करें। अग्नि की स्थापना करके उसमें द्वादशाक्षर मंत्र से खीर, घी, मधु और तिल मिश्रित द्रव्य की 108 आहुति दें। आप चाहें तो आचार्य से होम की शेष पूजा करवा सकते हैं। तब भगवान् से प्रार्थना करके कहें- “प्रभो ! आपकी प्रसन्नता के लिए मैंने यह व्रत किया, इसमें जो कमी रह गई हो, वह आपके प्रसाद से पूर्णताः को प्राप्त हो जाए। अब आप तुलसी के साथ बैकुण्ठ धाम में पधारें। आप मेरे द्वारा की गई पूजा से सदा संतुष्ट रहकर मुझे कृतार्थ करें।”

इस प्रकार तुलसी विवाह का परायण करके भोजन करें, और भोजन के बाद तुलसी के स्वत: गिरे हुए पत्तों को खाऐं, यह प्रसाद सब पापों से मुक्त होकर भगवान् के धाम को प्राप्त होता है। भोजन में आँवला और बेर का फल खाने से उच्छिष्ट-दोष मिट जाता है।

तुलसी दल चयन

स्कन्द पुराण का वचन है कि जो हाथ पूजार्थ तुलसी चुनते हैं, वे धन्य हैं-

तुलसी ये विचिन्वन्ति धन्यास्ते करपल्लवाः।

तुलसी का एक-एक पत्ता न तोड़कर पत्तियों के साथ अग्रभाग को तोड़ना चाहिए। तुलसी की मंजरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है। मंजरी तोड़ते समय उसमें पत्तियों का रहना भी आवश्यक माना जाता है। निम्नलिखित मंत्र पढ़कर पूज्यभाव से पौधे को हिलाए बिना तुलसी के अग्रभाग को तोड़े। इससे पूजा का फल लाख गुना बढ़ जाता है।

यह भी पढ़ें:क्या कह रहे हैं आपके आज के सितारे…!

तुलसी दल तोड़ने का मंत्र

तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशवप्रिया।
चिनोमी केशवस्यार्थे वरदा भव शोभने॥
त्वदङ्गसम्भवैः पत्रैः पूजयामि यथा हरिम्।
तथा कुरु पवित्राङ्गि! कलौ मलविनाशिनि॥

ज्योतिषीय परामर्श के लिए पूनम गौड को 8826026945 पर व्हाट्सएप्प करें

CATEGORIES
TAGS
Share This

COMMENTS

Wordpress (0)
Disqus (0 )

अपने सुझाव हम तक पहुंचाएं और पाएं आकर्षक उपहार

खबरों के साथ सीधे जुड़िए आपकी न्यूज वेबसाइट से हमारे मेल पर भेजिए आपकी सूचनाएं और सुझाव: dusrikhabarnews@gmail.com