
मुफ्त का चंदन घिसना बंद करें राज्य सरकारें…!
फ्रीबीज को लेकर आरबीआई ने राज्य सरकारों को दी दो टूक सलाह
सब्सिडी और कर्ज पर लगाम लगाएं राज्य सरकारें
मुफ्त की रेवड़ी बांटने से पहले विचार करें
विजय श्रीवास्तव,
जयपुर,(dusrikhabar.com)। हर राज्य में सब्सिडी से महिलाओं और पिछड़े वर्ग को खुश का मुफ्त की रेवड़ियां बांट रही राज्य सरकारों पर भारतीय रिजर्व बैंक ने लगाम लगाने की सलाह भारत के सभी राज्यों को दी है। हाल में जारी RBI की एक रिपोर्ट के अनुसार कृषि ऋण माफ करना, मुफ्त में बिजली, बसें, गैस सिलेंडर जैसी योजनाओं को अगर कंट्रोल नहीं करेंगी तो ये सब राज्य की वित्तीय स्थिति को बिगाड़ सकती है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने राज्यों को इन योजनाओं पर लगाम लगाते हुए कुछ सिफारिशें करते हुए आगाह किया है कि अगर राज्यों ने अभी से इन पर ध्यान नहीं दिया तो राज्यों में वित्तीय संकट तय है। हालांकि RBI ने चेतावनी देते हुए सिफारिशें तो दे दी हैं लेकिन क्या राज्य इन सिफारिशों के द्वारा अपनी वित्तीय स्थिति को बचाने में कामयाब हो पाएंगे या फिर अन्य सुझावों की तरह राज्य रिजर्व बैंक के इस सुझाव को भी नजरअंदाज कर देंगे।
आपको बता दें कि महिलाओं से जुड़ी कई सारी योजनाएं जैसे गैस सिलेंडर, परिवहन सेवाएं, कृषि ऋण माफी, मुफ्त बिजली और किसानों-महिलाओं तथा युवाओं को मुफ्त नकद हस्तांतरण जैसी योजनाओं से राज्य सरकारों पर न सिर्फ ऋण का बोझ बढ़ता जा रहा है बल्कि एक सीमा के बाद इन राज्यों में वित्तीय ढांचा चरमरा जाएगा और ऐसे राज्यों में मुफ्त की रेवड़ियां बांटने में लगे हैं कर्ज के चलते वित्तीय संकट आना तय है। हाल ही में हुई RBI की बैठक में राज्यों का यह विषय काफी चिंताजनक रहा।
रिपोर्ट में दिल्ली जैसे राज्यों में चुनावी सीजन के समय कई तरह की योजनाओं का सरकार ऐलान कर देती है ये अलग अलग तरह की योजनाओं का खर्च सरकार की आर्थिक स्थित को बिगाड़ सकता है। इन्हीं योजनाओं में से एक ‘मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना’ है जिसमें हर महिला को 1,000 रुपये की मासिक सहायता देने का दिल्ली सरकार ने वादा किया है, ऐसे में इन योजनाओं को आगामी विधानसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है। कुछ राजनीतिक विश्लेषक इसे चुनावी रणनीति या पैतरेबाजी का भी नाम दे रहे हैं। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में इस विषय को काफी गंभीरता से लिया गया और कहा गया कि अगर राज्य सरकारें अपनी सब्सिडी की ऐसी योजनाओं को काबू नहीं करेंगे तो, यह प्रोडक्शन एक्सपेंसेस को प्रभावित कर सकता है। आपको बता दें कि भारतीय राज्यों में कर्ज का लेवल लगातार बढ़ रहा है राज्योंं के कर्ज की सीमा एफआरबीएम समिति के द्वारा 20% तय है। लेकिन मार्च 2024 में राज्यों का कुल कर्ज जीडीपी के 28.5%तक पहुंच चुका था जो ‘फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट कमेटी’ (FRBM) द्वारा तय मानक 20% से काफी अधिक है। यही कारण है कि राज्यों को ऊंची ब्याज दरों पर ऋण लेना पड़ रहा है। आरबीआई का मानना है कि राज्यों पर अधिक कर्ज का बोझ राज्यों की सरकारों के विकास कार्यों और योजनाओं के लिए संसाधन एकत्र करने में परेशानियां पैदा कर सकता है।
रिजर्व बैंक ने ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिए एक स्पष्ट और समयानुसार कर्ज के बोझ को कम करने के लिए योजना बनाने की सलाह सभी राज्यों को जारी की है। गाइडलाइन के अनुसार इस योजना में राज्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे अपने कर्ज को धीरे-धीरे कम करने की दिशा में सही काम कर रही हैं और वे उसे चुकाने में पूरी तरह से सक्षम हों। ऐसा माना जा रहा है दिल्ली में ऑटोरिक्शा चालकों को एक कल्याण पैकेज के तहत 2100 रुपए देने का आश्वासन दिया है, जिसमें दुर्घटना बीमा, बेटी की शादी के लिए वित्तीय सहायता और अन्य योजनाएं भी शामिल होंगी। ऐसे ही पिछले महीने नवम्बर में झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए जिसमें महिलाओं को विशेष टारगेट बनाकर नकद पैसे उनके खाते में डालने को लेकर सत्ता विरोधी लहर को मोड़ने में मदद मिली जीत का रास्ता बनाया गया। हालांकि विकास से जुड़े अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों के इसको लेकर अपने-अपने मत हैं कुछ इसको लेकर राय रखते हैं और इसे सार्वजनिक संसाधनों को आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचितों के बीच पुनर्वितरित करने का सही तरीका मानते हैं यहां तक कि कोरोना के बाद लोग इसे मानते हैं कि लोगों की आय स्थिर हो गई है ऐसे में आने वाले समय में लोगों की आर्थिक समस्याओं को खत्म करने का ये रामबाण तरीका हो सकता है।
ऐसे ही ओआरएफ के गवर्नेंस एंड पॉलिटिक्स इनिशिएटिव के सीनियर फेलो निरंजन साहू का कहना है कि ऐसी फ्रीबीज मतदाताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने और ध्यान भटकाने का एक तरीका है। सरकारें और निजी क्षेत्र पर्याप्त रोजगार उत्पन्न करने और में समक्ष नहीं हैं। यह एक आबादी को कुछ समय खुश रखता है।
आरबीआई ने अपने सुझावों में पांच मुख्य सुझाव सरकारों को दिए:-
RBI का पहला सुझाव राज्य सरकारों द्वारा जारी सब्सिडी योजनाओं के पुनर्मूल्यांकन का सुझाव है, यानि उन्हें ये विचार करना होगा कि जो सब्सिडी वो दे रहे रहे हैं वो वाकई जरूरतमंदों को मिल रही हैं या नहीं। मसलन मुफ्त बिजली, परिवहन, गैस सिलेंडर, कृषि ऋण माफी इत्यादि। दूसरा सुझाव है कि केंद्र की ओर से मिली योजनाओं में तार्किकता लाकर अधिक खर्च के लिए बजट में व्यवस्था की जाए, ताकि केंद्र की योजनाओं में राज्य सरकारों को केंद्र के निर्देशों का अधिक पालन नहीं करना पड़े। तीसरा सुझाव राज्यों को वित्तीय नियमों पर फिर से विचार करना चाहिए। चौथा सुझाव यह कि राज्य सरकारें डेटा एनालिटिक्स, मशीन लर्निंग और AI जैसी तकनीक का इस्तेमाल करें इससे टैक्स कलेक्शन प्रणाली और प्रभावी हो जाएगी और सरकार का रेवेन्यू बढ़ेगा और पांचवा सुझाव वित्तीय पारदर्शिता पर और अधिक काम करना होगा ताकि जनता को उनके पैसे का सही हिसाब मिल सके।
बहरहाल रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के इन पांच सुझावों या सिफारिशों का प्रभावी असर तब सामने आएगा जब राज्यों की सरकारें इनको लेकर गंभीरता बरतें और इन्हें अपने प्रदेशों में लागू करने में दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाएं हालांकि चुनावी फायदे के लिए इन योजनाओं को सरकार इस्तेमाल करती है इसलिए इन सिफारिशों पर अमल करना राज्यों के लिए बड़ा चैलेंज होगा। लेकिन अगर इन सिफारिशों पर राज्य सरकारें अमल करती हैं तो राज्यों को इसके दीर्धकालिक सकारात्मक परिणाम मिलेंगे।