
2024 का पहला त्यौहार मकर संक्रांति, एक साल में 12 मकर संक्रान्ति
मकर सक्रांति विशेष
वर्ष 2024 का पहला बड़ा त्योहार है मकर संक्रांति के क्या क्या हैं लाभ
क्या आप जानते हैं एक साल में 12 मकर संक्रांति आती हैं?
पूनम गौड, ज्योतिषी
जयपुर। नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ ही एक नई चेतना के साथ नव वर्ष के त्योहार मनाने का उत्साह अलग ही दिखाई पड़ता है। सबसे पहला त्योहार मकर सक्रांति का आता है। इस वर्ष मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी 2024, सोमवार को मनाया जाएगा।
हमारे पूर्वजों ने हमारे सारे त्योहार बड़े ही वैज्ञानिक तथ्यों पर बनाएं हैं। हर एक त्योहार पर हमारे स्वास्थ से सम्बन्धित व समाज को बांध कर रखने से सम्बंधित कोई न कोई कारण अवश्य होता है। आइये इसे मकर सक्रांति के सम्बंध में गहराई से सोचते व समझते हैं।
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एक साल में 12 मकर संक्रांति, 4 होती हैं विशेष
जैसे एक वर्ष में 12 महीने होते हैं, ठीक उसी प्रकार से एक वर्ष में 12 सक्रांति होती हैं। जब भी सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो उसे संक्रांति कहा जाता है। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास कहलाता है। इन सौर मास के नामों से हम परिचित हैं — मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, कुंभ, मकर, मीन।
इन 12 सूर्य संक्रांति में से चार संक्रांति बहुत विशेष मानी जाती हैं:- मेष, कर्क, तुला, और मकर। मकर राशि के स्वामी शनि हैं और हम सब जानते हैं कि शनि सूर्य पुत्र हैं। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश का अर्थ हुआ कि सूर्य भगवान अपने पुत्र के घर मे प्रवेश करते हैं । क्योंकि पिता पुत्र एक ही घर में इस मास में वास करते हैं तो ये बहुत विशेष माना जाता है। इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि के प्रति सारी कटुता भुलाकर प्रेम से उसके घर मे प्रवेश करते हैं।
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देवताओं को एक वर्ष कितने दिन का
एक वर्ष में दो अयन होते हैं- उत्तरायन और दक्षिणायन। देवताओं का एक दिन एक अयन के बराबर होता है। देवताओं का एक वर्ष 360 अयन का होता है, यानी पृथ्वी के 180 साल मिला कर देवताओं का एक साल होता है। इससे हमें समय की गति भी समझ आती है। अयन का अर्थ होता है “चलना या गति का काल”। जब सूर्य दक्षिण को गमन करता है तब उस काल को हम दक्षिणायन कहते हैं। सूर्य के उत्तर दिशा में अयन अर्थात् उत्तर दिशा की ओर चलने को उत्तरायन कहा जाता है। इस दिन से चल रहा खरमास समाप्त हो जाता है। खरमास में मांगलिक कार्य करने वर्जित होते हैं, किन्तु सूर्य के मकर राशि मे प्रवेश करने से शुभ व मांगलिक कार्य – मुंडन, जनेऊ, विवाह और नामकरण आदि शुरू हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि उत्तरायण में मृमत्यु होने से मोक्ष प्राप्ति होती है।
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मकर संक्रांति से सूर्य की किरणे सेहत और शांति के लिए शुभ
जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों का असर खराब माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं। यह भी एक कारण है मकर सक्रांति मनाने का। हमारे ऋषियों ने हमें प्रकाश की पूजा करना सिखाया है और मकर सक्रांति को सूर्य देव की पूजा अर्चा करने का विधान है जो हमे प्रकृति की सकरात्मकता से परिचित कराता है।
किसानों के लिए नई शुरुआत
किसान अपनी अच्छी फसल के लिए भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद माँगते हैं. इसलिए मकर संक्रांति को फसलों एवं किसानों के त्यौहार से भी जाना जाता है। मकर संक्रांति के दिन स्नान-दान का विशेष महत्व होता है। इस दिन सबसे पहले गुड़ और तिल लगाकर किसी पवित्र नदी में स्नान करना सेहत के लिए अच्छा माना गया है। इससे सर्दी की शुष्क त्वचा की ऑयलिंग भी हो जाती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। इसके बाद गुड़, तेल, कंबल, फल, खिचड़ी, गर्म कपड़े, छाता आदि दान करने का विधान है। यानी हमारे पूर्वजों ने हमें कोई भी त्योहार अकेले मनाने को नहीं कहा, कमजोर वर्ग के लोगों को खुश करके खुश होना सिखाया है। हर त्योहार मिल बांट के कैसे मनाया जाय, ये सिखाया है। यह “वसुधैव कुटुम्बकम” का भी सन्देश देता है। इसके उपरांत भगवान सूर्य की पूजा-अर्चना करनी चाहिए और अपने पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण जरूर देकर उनके मोक्ष की व सुखद यात्रा की कामना करनी चाहिए।
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क्या है परंपरा और क्या हैं इसके फायदे
मकर संक्रांति पर तिल व गुड़ के पकवान बनाने व खाने की परंपरा है। यह इसलिए है क्योंकि तिल और गुड़ की तासीर गर्म होती है और सर्दी के मौसम में शरीर को गर्म रखने में मदद करते हैं। तिल में तेल की मात्रा अधिक होती है तो इससे अंदर की खुश्की भी समाप्त होती है। इस दिन खिचड़ी भी बना कर खाने की परंपरा है। खिचड़ी अति शीघ्र पच जाती है ओर थोड़े ही समय में, कम मेहनत में बन जाती है। सर्दी में कुछ सुख ग्रहणी को भी मिल सके और वो भी कुछ समय अपने लिए व त्योहार मनाने के लिए निकाल सके, खिचड़ी बनाने के पीछे का एक मन्तव्य ये भी है। यह इस ओर यह संकेत भी देता है कि जो हम दान कर रहे हैं वही हम खा भी रहे हैं। यानी कि हमने किसी भी चीज में भेद भाव नहीं किया। जो हम खुद खा नही सकते या इस्तेमाल करने में अपने आपको छोटा समझते हैं या हमें किसी प्रकार की झेंप आती हो वो हमें दान नहीं करना चाहिए।
जिस तरह से दिवाली पर पटाखें जलाना, होली पर रंग खेलना, ठीक इसी तरह से मकर संक्रांति पर भी पतंगे उड़ाने की भी परंपरा है। मकर सक्रांति पर पतंग इसलिए भी उड़ाते हैं ताकि सर्दी की छुट्टियां हंसी खुशी मिल जुल कर मनाई जाएं। इन दिनों हल्की हवा चल रही होती है जो पतंग को उचाई तक ले जाने में सक्षम होती है।
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भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग अलग नाम से मकर सक्रांति
उत्तर प्रदेश व बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व के नाम से जाना जाता है। सूर्य की पूजा कर चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान में दी जाती है। बिहार में उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने की मान्यता है.
पंजाब में मकर संक्रांति को लोहड़ी के रूप में 13 जनवरी को मानाया जाता है। इस दिन शाम को आग जलाकर उसमें तिल, गुड, चावल और भुने हुए मक्के का भोग लगाया जाता है। इस समय सारा कुटुम्ब व मित्र आग के चारों ओर गिद्दे गाते हैं और नाचते हैं। यह त्यौहार प्रेम का संदेश देता है।
हरियाणा में मकर सक्रांति के दिन ब्रह्म कुंड में अथवा सरस्वती नदी में भक्त स्नान करते हैं और खिचड़ी, तिल पट्टी, मूंगफली की गज्जक व पट्टी, साग सब्जी, सुहाग, वस्त्र, सफाई कर्मचारी की झाड़ू अथवा उनके काम की चीजें साल भर के लिये दान करने का संकल्प लेते हैं। इस दिन घरों में खिचड़ी बनाना शुभ माना जाता है। क्योंकि हरियाणा पंजाब के साथ लगता है तो हरियाणा में लोहड़ी भी एक दिन पहले मनाई जाती है। पितृ तर्पण भी किया जाता है। तिल बुग्गा और गाजर पाक यहाँ की इस दिन की खासियत है।
गुजरात और राजस्थान में इसे उत्तरायण पर्व के रूप में पतंग उड़ा कर मनाया जाता है।
तमिलनाडु में इस त्यौहार को पोंगल के रूप में तीन दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन कचरा इकठ्ठा कर के जलाया जाता है, दूसरे दिन माँ ललिताम्बा की पूजा की जाती है और तीसरे दिन गाय की पूजा की होती है। जब घर सज जाता है तो भोग के लिए खीर बनाई जाती है। इस खीर को पोंगल कहते हैं। फिर सूर्य की अर्चना विधिवत की जाती है। इस दिन इस प्रदेश में बेटी और दामाद का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।
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आंध्रप्रदेश में यह संक्रांति के नाम से प्रसिद्ध है।
महाराष्ट्र : लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं.
पश्चिम बंगाल : हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है.
असम में ये त्योहार भोगली बिहू के नाम से मनाया जाता है.
पंजाब मे 13 जनवरी को लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। धूमधाम के साथ लकड़ी इकट्ठी कर जलाई जाती है व सब उसके चारों ओर नृत्य करते हैं।समारोहों का आयोजन किया जाता है।
राज्यस्था में मकर सक्रांति पर शादीशुदा महिलाएं अपनी सास को सुहाग का सामान दान करके अखंड सौभाग्यवति होने का आर्शीवाद पाती हैं।
मकर संक्रांति: दिन और समय – शुभ मुहूर्त
15 जनवरी 2024 सोमवार को
ब्रह्म मुहूर्त: प्रातः 5:38 से 6:26 तक
पुण्य काल :प्रातः 07:15 से शाम 5:46 तक(अवधि 10 घंटे 31 मिनट)
महा पुण्य काल :प्रातः 07:15 से प्रातः 09:00 तक(अवधि 1 घंटा 45 मिनट)
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अब बात करते हैं मकर सक्रांति पर किये जाने वाले उपायों की
1. सूर्य को अर्घ्य दें।
2. आदित्य हृदय स्त्रोत्र, सूर्य अष्टकम, पुरुष सूक्त, नारायण कवच आदि का पाठ अगर कर सकते हैं तो अवश्य करें।
नीचे दिए गए किसी एक मंत्र का 1 से 5 माला अपनी क्षमता अनुसार जप करें।
3. ऊं आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।
4. ऊं घृणि सूर्याय नम:।
5. ऊं भास्कराय नम:।
6. सूर्य यंत्र की स्थापना कर के पूजा करना शुभ होगा।
मकर संक्रांति के दिन वस्त्र, चावल, चिड़वा, उड़द, तिल, गुड़, ऊनी वस्त्र, कंबल, धन आदि दान करने का विशेष महत्व है। किसी भी प्रकार का दान स्नानादि से निवृत्त होकर ही करें।
उड़द तथा तिल का दान करने से शनि दोष से तथा कंबल का दान करने से है राहु के अशुभ प्रभाव से दूर रहते हैं।
मकर सक्रांति को नीचे दी गयी बातों का ख्याल रखें!
1. लहसुन, मांस ,मदिरा, सिगरेट आदि का तामसी भोजन व चीजों के सेवन से जितना बच सकते हैं बचना चाहिए।
2. मन क्रम वचन से कोशिश रखें कि आपके द्वारा किसी का दिल न दुखे।
3. घर के द्वार पर आए हुए किसी भी जरूरतमंद व गरीब को खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए।
4. दान वही करना चाहिए जिसको पा कर व्यक्ति खुश हो जाय और आपको आशीर्वाद दे।
आप सबको लोहड़ी व मकर सक्रांति की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं।