दिल्ली एयरपोर्ट पर बड़ा विमान हादसा टला: फ्लाइट्स के GPS से छेड़छाड़…

दिल्ली एयरपोर्ट पर बड़ा विमान हादसा टला: फ्लाइट्स के GPS से छेड़छाड़…

GPS सिग्नल में फेक डेटा भेजने की साजिश, एयर ट्रैफिक कंट्रोल भी हुआ प्रभावित

800 से ज्यादा फ्लाइट्स बाधित, 20 रद्द — जांच में साइबर अटैक की आशंका

इसरो का ‘नाविक’ सिस्टम बनेगा समाधान, NSA की निगरानी में हाई लेवल जांच शुरू

नई दिल्ली, dusrikhabar.com। दिल्ली एयरपोर्ट (Delhi Airport) पर दो दिन पहले हुआ बड़ा विमान हादसा (Plane Accident) टल गया। जांच में खुलासा हुआ है कि फ्लाइट्स के GPS सिस्टम (Global Positioning System) के साथ छेड़छाड़ (GPS Spoofing) की गई थी। इससे पायलट को रनवे के बजाय खेत दिखाई दिए और एयर ट्रैफिक में अफरा-तफरी मच गई। पायलट्स की सूझबूझ और ATC की त्वरित कार्रवाई से किसी बड़े हादसे को टाल दिया गया।

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भारत की राजधानी दिल्ली में इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट (IGI Airport) पर एक बड़ा विमान हादसा (Delhi Plane Accident) होने से बच गया। 6 से 7 नवंबर की शाम को फ्लाइट्स के GPS सिस्टम से छेड़छाड़ (GPS Signal Tampering) की बड़ी साजिश सामने आई है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, यह एक फेक GPS सिग्नल अटैक (Fake GPS Signal Attack) था, जिससे कॉकपिट स्क्रीन पर विमान की गलत स्थिति दिखने लगी।

पायलट्स को रनवे के बजाय खेत दिखाई दिए, जिससे विमान की ऊंचाई और दिशा को लेकर भ्रम पैदा हुआ। स्थिति को संभालते हुए पायलट्स ने GPS-बेस्ड ऑटो मैसेजिंग बंद कर मैनुअल मोड अपनाया और फ्लाइट को सुरक्षित उतारा।

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ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम पर भी असर पड़ा

GPS सिग्नल्स में छेड़छाड़ के कारण एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) को देरी से संदेश मिलने लगे, जिससे कई विमानों को जयपुर और नजदीकी एयरपोर्ट्स पर डायवर्ट करना पड़ा। विमानों की आपसी दूरी बढ़ाकर हादसा टाला गया।

7 नवंबर को IGI एयरपोर्ट के ऑटोमैटिक मैसेज स्विच सिस्टम (AMSS) में तकनीकी खराबी से फ्लाइट ऑपरेशन 12 घंटे से अधिक प्रभावित रहा। इस दौरान 800 से ज्यादा डोमेस्टिक और इंटरनेशनल फ्लाइट्स में देरी हुई और 20 उड़ानें रद्द करनी पड़ीं। एयरपोर्ट की स्थिति 48 घंटे बाद सामान्य हो सकी।

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साजिश का शक GPS सिग्नल ब्लास्ट की आशंका

साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, इस घटना में अमेरिकी GPS सिविलियन सिग्नल की कॉपी बनाकर फेक सिग्नल ब्लास्ट किया गया। यानी एक साथ बड़ी मात्रा में फेक GPS डेटा भेजा गया, जिससे विमान की स्थिति स्क्रीन पर बदलती दिखाई दी।
विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें विदेशी हैकर्स या किसी बाहरी सरकार की भूमिका हो सकती है, जो भारत की एविएशन सिक्योरिटी के लिए गंभीर खतरा है।

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अमेरिकी सिविलियन GPS का डेटा ओपन PRN (Pseudo Random Noise) सिग्नल पर आधारित होता है, जिसे कॉपी करना संभव है। वहीं, मिलिट्री-ग्रेड GPS सिग्नल एन्क्रिप्टेड होते हैं जिनमें किसी तरह की छेड़छाड़ असंभव है।

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देश में GPS छेड़छाड़ के बढ़ते मामले

DGCA की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ महीनों में 465 से ज्यादा GPS छेड़छाड़ (GPS Spoofing Cases) के मामले सामने आए हैं। अधिकतर घटनाएं जम्मू, पंजाब और अमृतसर जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में दर्ज की गई हैं।

अमेरिका अब “चिमेरा सिग्नल (Chimera Signal)” नामक नया GPS-3 विकसित कर रहा है, जो एन्क्रिप्टेड और अधिक सुरक्षित होगा।

समाधान इसरो का स्वदेशी ‘नाविक’ सिस्टम

इसरो (ISRO) द्वारा विकसित ‘नाविक’ (NavIC) सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम को अब विमानन क्षेत्र में उपयोग के लिए मान्यता दी गई है। अक्टूबर 2025 में इसके मानक तय किए गए, जो भारत के नियंत्रण में हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि ‘नाविक’ सिस्टम उपयोग में होता, तो दिल्ली एयरपोर्ट की यह घटना रोकी जा सकती थी।

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NSA की निगरानी में हाई लेवल जांच शुरू

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) की अध्यक्षता में केंद्र सरकार ने उच्च स्तरीय जांच (High-Level Investigation) के आदेश दिए हैं। इसमें एयरपोर्ट, सुरक्षा एजेंसियों और तकनीकी विशेषज्ञों को शामिल किया गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि कहीं यह साइबर हमला (Cyber Attack) या विदेशी हस्तक्षेप (Foreign Interference) का नतीजा तो नहीं था।

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