खादी; गांधी से मोदी तक, संघर्ष से आत्मनिर्भर भारत की कहानी…मामूली खद्दर से युवाओं का फैशन ट्रेंड कैसे बनी खादी

खादी; गांधी से मोदी तक, संघर्ष से आत्मनिर्भर भारत की कहानी…मामूली खद्दर से युवाओं का फैशन ट्रेंड कैसे बनी खादी

खादी: महात्मा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक, आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक

खादी: गांधी के चरखे से मोदी के आत्मनिर्भर भारत तक की यात्रा

स्वदेशी आंदोलन से फैशन ट्रेंड तक: बदलती सोच और बढ़ती लोकप्रियता

33 हजार करोड़ से 1.55 लाख करोड़ तक—खादी का आर्थिक विस्तार

नरेंद्र मोदी के प्रयासों से खादी बनी आत्मनिर्भर भारत की पहचान

विजय श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार

खादी सिर्फ कपड़ा नहीं, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा रही है। महात्मा गांधी ने जब चरखे पर सूत कातकर खादी आंदोलन की शुरुआत की, तब इसका उद्देश्य सिर्फ वस्त्र निर्माण नहीं था, बल्कि स्वदेशी और आत्मनिर्भरता को जनता के जीवन का हिस्सा बनाना था। आज यही खादी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से आधुनिक दौर में फैशन और लाइफस्टाइल का पर्याय बन चुकी है।

खादी गांधी से मोदी तक...

खादी की शुरुआत: गांधी जी का स्वदेशी आंदोलन

महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के वस्त्र बहिष्कार और स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए खादी को अपनाया। उनका मानना था कि चरखा सिर्फ सूत कातने का औजार नहीं, बल्कि गरीब और किसान परिवारों की आजीविका का साधन है। चरखे से निकली खादी ने स्वतंत्रता आंदोलन को एकजुट किया और आत्मनिर्भरता का संदेश पूरे देश में फैलाया।

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खादी बनी युवाओं की पहली पसंद

कभी सिर्फ आज़ादी की लड़ाई और महात्मा गांधी के प्रतीक के रूप में पहचानी जाने वाली खादी आज युवाओं की फैशन स्टेटमेंट बन गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम से लेकर हर मंच पर खादी को अपनाने और पहनने का आह्वान किया।

उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि खादी अब सिर्फ बुजुर्गों या ग्रामीण भारत तक सीमित नहीं, बल्कि शहरी युवाओं की वार्डरोब का अहम हिस्सा बन चुकी है।

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समय समय पर भारी छूट

खादी के उत्पादों पर समय समय पर केवीआईसी द्वारा करीब 20 फीसदी की छूट देकर युवाओं को खादी की तरफ बढ़ाने का प्रयास जहां केंद्र सरकार कर रही है, वहीं 2 अक्टूबर से 31 जनवरी तक राज्य और केंद्र दोनों की तरफ से खादी के सभी उत्पादों पर करीब 50 फीसदी छूट का राजस्थान के युवा भरपूर लाभ उठाते हैं।

इस वर्ष भी यह डिस्काउंट का सिलसिला जारी रहेगा। राजस्थान में खादी के  सभी सरकारी आउटलेट्स पर 50% की छूट की सुविधा उपलब्ध रहेगी। 

युवाओं में बढ़ता खादी का प्रचलन, फैशन सिंबल खादी की ड्रेस

बदलती सोच: परंपरा से फैशन तक

केवीआईसी राजस्थान अध्यक्ष मनोज कुमार

केवीआईसी राजस्थान अध्यक्ष मनोज कुमार

केवीआईसी के अध्यक्ष मनोज कुमार के अनुसार आज का दौर खादी की नई परिभाषा गढ़ रहा है। जहां पहले खादी को सिर्फ बुजुर्गों और ग्रामीण परिवेश से जोड़ा जाता था, वहीं अब यह युवाओं की पहली पसंद बन चुकी है।

डिजाइनर खादी और खादी फैशन वियर ने इसे ग्लोबल पहचान दी है। शर्ट्स, कुर्ते, जैकेट्स, स्कार्फ, यहां तक कि फुटवियर और होम डेकोर में भी खादी का बोलबाला है। यह परिवर्तन साबित करता है कि खादी परंपरा से आधुनिकता की यात्रा पूरी कर चुकी है।

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खादी का आर्थिक सफर: 33 हजार करोड़ से 1.55 लाख करोड़ तक

खादी का महत्व सिर्फ सांस्कृतिक नहीं, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी बढ़ा है। पिछले दस वर्षों में खादी और ग्रामोद्योग का वार्षिक टर्नओवर 33 हजार करोड़ से बढ़कर 1 लाख 55 हजार करोड़ तक पहुंच गया है।

यह न सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देता है बल्कि लाखों परिवारों की आजीविका भी सुनिश्चित करता है।

बच्चों से युवाओं तक: सबकी पसंद बनती खादी

जहां पहले खादी के कपड़े अधिकतर बुजुर्गों की पहचान थे, वहीं अब बच्चों और युवाओं की अलमारी में भी खादी की मौजूदगी बढ़ रही है।

स्कूल यूनिफॉर्म, कॉलेज फैशन और ऑफिस वियर तक खादी ने अपनी जगह बनाई है। खादी ब्रांड आज गुणवत्ता, आराम और स्टाइल का मिश्रण बन चुका है।

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पहले और आज की खादी

पुरानी खादी और आधुनिक खादी में जमीन-आसमान का अंतर है। पहले खादी सिर्फ साधारण, मोटे कपड़े के रूप में पहचानी जाती थी, जबकि आज यह विभिन्न फैब्रिक ब्लेंड्स और डिजाइनों में उपलब्ध है। नई तकनीकों और डिजाइनरों की सोच ने खादी को ग्लोबल फैशन रैंप तक पहुंचा दिया है।

ग्रामोद्योग से जुड़ी आजीविका में सुधार

खादी और ग्रामोद्योग के लिए काम करने वाले कतिनों और बुनकरों की मेहनत का सही मूल्य दिलाने के लिए केंद्र सरकार ने लगातार कदम उठाए। प्रधानमंत्री मोदी ने खादी ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) को निर्देश दिया कि कारीगरों का पारिश्रमिक बढ़ाया जाए। इससे उनकी आमदनी में सीधा इजाफा हुआ और ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका का स्तर सुधरा। आज खादी सिर्फ कपड़े का प्रतीक नहीं रही, बल्कि ग्रामोद्योग और आत्मनिर्भर भारत की रीढ़ बन चुकी है।

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खादी का भविष्य और आत्मनिर्भर भारत

खादी के प्रति प्रधानमंत्री मोदी का जोर, कतिनों और बुनकरों का सम्मानजनक मेहनताना और युवाओं का फैशन की ओर झुकाव—इन तीनों ने मिलकर खादी को एक नए युग का परिधान बना दिया है। आज खादी सिर्फ कपड़ा नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी गौरव की पहचान बन चुकी है।

राजस्थान का उदाहरण: दो बार बढ़ा पारिश्रमिक

केवीआईसी के राज्य निदेशक राहुल मिश्र

केवीआईसी के राज्य निदेशक राहुल मिश्र

केवीआईसी के राज्य निदेशक राहुल मिश्र ने बताया कि राजस्थान में कतिन और बुनकरों की मेहनत को सम्मान देने के लिए राज्य स्तर पर उनके पारिश्रमिक में बढ़ोतरी की गई। इनमें कतिनों के पारिश्रमिक के दो वर्ष में तीन बार और बुनकरों के पारिश्रमिक में दो बार बढ़ोतरी कर उनके जीवन स्तर को और अधिक सबल बनाने का प्रयास किया गया है।

इस फैसले ने न केवल उनके जीवन स्तर को ऊंचा किया बल्कि खादी उद्योग में फिर से नई ऊर्जा भर दी। अब ग्रामीण क्षेत्रों के युवा भी खादी उत्पादन से जुड़कर रोजगार और सम्मानजनक आय अर्जित कर रहे हैं। बुनकर की औसतन आय इस समय करीब 10-12हजार रुपए और कतिन कामगारों की आय 6 से 7 हजार रुपए प्रति महीना है। 

नरेंद्र मोदी और खादी का पुनर्जागरण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के तहत खादी को फिर से जन-जन तक पहुंचाया। उन्होंने हर मौके पर खादी वस्त्र को प्राथमिकता दी और युवाओं से भी इसे अपनाने का आह्वान किया। मोदी जी के प्रयासों का ही परिणाम है कि आज खादी केवल कपड़ा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय ब्रांड बन गई है।

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खादी महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन से शुरू होकर आज नरेंद्र मोदी की आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना का मजबूत स्तंभ बन चुकी है। परंपरा, आत्मनिर्भरता, फैशन और आर्थिक विकास—खादी इन सबका संगम है। बदलते दौर में खादी सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की पहचान भी है।


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