आपका आज का दिन कैसे रहेगा शुभ, वैदिक पंचांग से जानिए…
वैदिक पंचांग
आज वैदिक पंचांग में क्या है आपके लिए ?
जानिए ज्योतिषी पूनम गौड से आज कैसा रहेगा आपका दिन ?
दिनांक – 21 नवम्बर 2023
दिन – मंगलवार
विक्रम संवत – 2080 (गुजरात – 2079)
शक संवत – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद ॠतु
मास – आश्विन
पक्ष – शुक्ल
तिथि – नवमी 01:09 (22 नवम्बर) तक तत्पश्चात दशमी
नक्षत्र – शतभिषा रात्रि 08:01 तक तत्पश्चात पूर्वभाद्रपद
योग – व्याघात 17:41 तक तत्पश्चात हर्षण
रवियोग – 20:01 – 06:49 (22 नवम्बर)
राहुकाल – 14:30 – 16:00 तक
सूर्योदय – 06:48
सूर्यास्त – 17:25
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दिशाशूल – उत्तर दिशा में
व्रत पर्व – आंवला नवमी 21 नवम्बर 2023
देवउठनी एकादशी 23 नवम्बर 2023
व्रत की पूर्णिमा 26 नवम्बर 2023
स्नान दान की पूर्णिमा 27 नवम्बर 2023
💥 विशेष:- नवमी को लौकी (घीया) खाना गोमांस खाने के समान है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
👉आँवला (अक्षय) नवमी है फलदायी
👉भारतीय सनातन पद्धति में पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए महिलाओं द्वारा आँवला नवमी की पूजा को महत्वपूर्ण माना गया है। कहा जाता है कि यह पूजा व्यक्ति के समस्त पापों को दूर कर पुण्य फलदायी होती है। जिसके चलते कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को महिलाएं आँवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करती हैं।
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🍏आँवला नवमी को अक्षय नवमी के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। कहा जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का पसंदीदा फल है। आंवले के वृक्ष में समस्त देवी-देवताओं का निवास होता है। इसलिए इसकी पूजा करने का विशेष महत्व होता है।
व्रत की पूजा का विधान
👉🏻नवमी के दिन महिलाएं सुबह से ही स्नान ध्यान कर आँवला के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में मुंह करके बैठती हैं।
👉🏻 इसके बाद वृक्ष की जड़ों को दूध से सींच कर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटा जाता है।
👉🏻 तत्पश्चात रोली, चावल, धूप दीप से वृक्ष की पूजा की जाती है।
👉🏻 महिलाएं आँवले के वृक्ष की १०८ परिक्रमाएं करके ही भोजन करती हैं।
🍏 आँवला नवमी की कथा
पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए आँवला पूजा के महत्व के विषय में प्रचलित कथा के अनुसार एक युग में किसी वैश्य की पत्नी को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी। अपनी पड़ोसन के कहे अनुसार उसने एक बच्चे की बलि भैरव देव को दे दी। इसका फल उसे उल्टा मिला। महिला कुष्ट की रोगी हो गई।
🍏इसका वह पश्चाताप करने लगे और रोग मुक्त होने के लिए गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आँवला के वृक्ष की पूजा कर आँवले के सेवन करने की सलाह दी थी।
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🍏जिस पर महिला ने गंगा के बताए अनुसार इस तिथि को आँवला की पूजा कर आँवला ग्रहण किया था, और वह रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे दिव्य शरीर व पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।
👉अक्षय नवमी पर किया गया जप, पूजा, अर्चा का अक्षय फल होता है।
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