कैसे हुई होलिका दहन और धुलंडी की शुरुआत

कैसे हुई होलिका दहन और धुलंडी की शुरुआत

देवताओं ने मिलकर क्यों की भगवान विष्णु की आराधना?

कैसे पृथ्वी लोक को मिली हिरण्यकश्यप के जुल्मों से मुक्ति?

किसने बचाया होलिका की गोद में बैठे प्रहलाद को ?

 

जयपुर।  होली वर्षों पुरानी न सिर्फ परंपरा बल्कि हमारे पुराणों और साहित्यों के अनुसार तहजीब और नई शुरुआत का त्योहार है। होली ऐसा त्योहार है जिसमें रंगों का खेलना होली मिलना, पुरानी दुश्मनियों और नाराजगियों को भुलाना और एक नई शुरुआत करने का त्योहार है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के जल मरने और अगले ही दिन भगवान श्रीनृसिंह के हाथों उसके वध के कारण होलिका दहन में प्रह्लाद को बचाने जैसी घटनाओं से होलिका दहन की शुरुआत हुई।

 

कैसे मनी पहली होली?

पुराणों के अनुसार हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान नारायण का परम भक्त और धर्म अनुयायी था। यही हिरण्यकश्यप के क्रोध और दुःख का कारण था। उसने अपने ही पुत्र प्रह्लाद के वध के अनेक उपाय किए। उसने अपनी बहन होलिका से प्रह्लाद को मरवाने की योजना बनाई।

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होलिका की चादर ने बचाया भक्त प्रहलाद को

ऐसा कहा जाता है कि होलिका के पास एक चादर थी, जिस पर अग्नि का असर नहीं होता था। वह उसी चादर को ओढ़कर और प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश कर गई। तभी भगवान की कृपा से वह चादर होलिका के शरीर से हट कर प्रह्लाद की देह में लिपट गई। इससे होलिका जल गई और प्रह्लाद बच निकले। इसी घटना की याद में हर वर्ष होलिका दहन का आयोजन किया जाता है।

प्रहलाद स्वरूप बबूल के पेड़ की शाखा 

गली मोहल्लों के चौराहे पर लकड़ियों और घास-फूस से तैयार होलिका में बबूल के पेड़ की एक शाखा को प्रहलाद स्वरूप लगाया जाता है और फिर होलिका दहन के समय भगवान विष्णु के आशीर्वाद से भक्त प्रहलाद को अग्नि के बीच से सुरक्षित निकाल लिया जाता है मानों प्रहलाद को होलिका की वरदान स्वरूप चादर ने अपने आलिंगन में लेकर उनकी रक्षा की हो।  

लेकिन होलिका के मरने और प्रहलाद के बच जाने से हिरण्यकश्यप बहुत नाराज हुआ। क्रोधित हिरण्यकश्यप ने अगले ही दिन अपने हाथों प्रह्लाद की हत्या का निश्चय किया। तभी भगवान नारायण एक खम्भे से नृसिंह अवतार के रूप में प्रकट हो गए। उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध कर प्रह्लाद को उस प्रदेश का राजा बना दिया। ऐसे में देवताओं की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

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क्या कहती हैं हमारी पौरणिक कथाएं?

निशम्य लोकत्रय मस्तकज्वरं तमादि दैत्यं हरिणा हतं मृते। प्रहर्ष वेगोत्कलितानना मुहुः प्रसूनवर्षेर्ववृषुः सुरस्त्रियः ।। तदा विमानावलिभिर्नभस्तलं दिदृक्षतां संकुलमास नाकिनाम। सुरानका दुन्दुभयोअथ जघ्निरे गंधर्व मुख्या ननृतुर्जगुः स्त्रियः।।

अर्थात जब स्वर्ग की देवियों को हिरण्यकश्यप के मरने का समाचार मिला और यह मालूम हुआ कि तीनों लोकों के कष्टों का कारण हिरण्यकश्यप को भगवान विष्णु ने समाप्त कर दिया है तो खुशी से उनके चेहरे खिल उठे और वे सब बार बार भगवान पर फूलों की वर्षा करने लगीं। आकाश में विमानों से आए हुए भगवान के दर्शनार्थी देवताओं की भीड़ लग गई। वे विभिन्न वाद्ययंत्र और नगाड़े बजाने लगे। गंधर्वराज गाने लगे और अप्सराएं नाचने लगीं और ऐसे ही धुलंडी के पर्व की शुरुआत हुई।

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