आचार्य विद्यासागर महा मुनिराज ब्रह्मलीन

आचार्य विद्यासागर महा मुनिराज ब्रह्मलीन

शनिवार रात हुई समाधि, रविवार को चंद्रगिरी तीर्थ पर पंचतत्व में हुए विलीन

जैन समाज में शोक की लहर, शोक में प्रतिष्ठान रखे बंद

जैन मंदिरों में हुआ णमोकार मंत्र का जाप

 

जयपुर।

संत शिरोमणी जैन (Jain) समाज के आचार्य विद्यासागर महा मुनिराज (Vidyasagar Maha Muniraj) समाधि (Mausoleum) में लीन हो गए। माघ शुक्ल अष्टमी शनिवार रात 2.35 बजे महा मुनिराज की समाधि हो गई। प्रबुद्धजनों की मानें तो रविवार को दोपहर 1 बजे चन्द्रगिरी तीर्थ पर डोला (अंतिम यात्रा) निकाला गया। लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में समाधि स्थल पर विधि विधान के साथ महा मुनिराज को पंचतत्व में विलीन किया गया। इस मौके पर आरके मार्बल्स (RK Marbles) किशनगढ़ (kishangarh)के अशोक पाटनी (ashok patni) सहित देश के गणमान्य बड़ी संख्या में मौजूद रहे।

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जैन समाज में शोक की लहर

आचार्य श्री के ब्रह्म लीन होने की सूचना मिलते ही देश-विदेश के जैन समाज में शोक छा गया। राजस्थान जैन सभा जयपुर के मंत्री विनोद जैन कोटखावदा ने बताया कि आचार्य श्री ने विधिवत सल्लेखना पूर्वक 3 दिन का उपवास ग्रहण कर अखण्ड मौन धारण कर लिया था। पूर्ण जागृत अवस्था में आचार्य पद त्याग कर प्रथम मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण समय सागर महाराज को आचार्य पद देने की घोषणा कर दी थी। आहार व संघ का प्रत्याख्यान कर दिया था। संघ को प्रत्याख्यान व प्रायश्चित देना बन्द कर दिया था।

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जयपुर सहित देशभर में समाज के लोगों ने प्रतिष्ठान रखे बंद

आचार्य विद्यासागर के समाधि में लीन होने के समाचार मिलने के बाद पूरे देश के लोगों में शोक की लहर छा गई। आचार्य के समाधि के समाचार सुनकर सभी जैन प्रतिष्ठान रविवार को भारत में स्वत: बंद रहे। जयपुर के भी जैन प्रतिष्ठान बंद रहे। इस कड़ी में जौहरी बाजार, इंदिरा बाजार, मानसरोवर सहित शहर के कई इलाकों में जैन समाज के लोगों ने अपने प्रतिष्ठान बंद रखे।

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मंदिरों में णमोकार मंत्र का जाप

जैन मंदिरों में णमोकार मंत्र का जाप हुआ। प्रमिला पटौदी ने बताया कि गुरुवर के आचार्य पद ग्रहण करने के बाद 500 से भी अधिक मुनियों ने गुरुवर से दीक्षा ली, ये मुनि त्याग तपस्या से आज के युग के वर्धमान कहलाए जाते हैं।

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आचार्य श्री का जीवन परिचय

समाज के प्रबुद्धजनों के अनुसार आचार्य श्री का जन्म शरद पूर्णिमा 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के जिला बेलगांव के सदलगा ग्राम में हुआ था। उनका बचपन का नाम विद्याधर था। उनके पिता मलप्पा जैन (अष्टगे ) तथा माता श्रीमन्ति थी। उन्होंने लौकिक शिक्षा 9 वीं कक्षा तक कन्नड माध्यम से प्राप्त की थी। उन्होंने 27 जुलाई 1966 को गृह त्याग दिया था। वे हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश में पारंगत थे। उन्होंने 323 से अधिक दीक्षाऐं प्रदान की।

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आचार्य विद्यासागर महा मुनिराज का राजस्थान से अटूट संबंध

ज्ञानावरणीय कर्म का प्रबल क्षयोपशम था, संयम के प्रति अंत:प्रेरणा तीव्र थी, अतः किशोरवय में ही आचार्य श्री ने जयपुर में आगरा रोड पर खानियाजी में विद्यमान आचार्य देशभूषण महाराज से ब्रह्मचर्य वृत अंगीकार किया। ज्ञानार्जन के लिए वे आचार्य ज्ञान सागर महाराज के पास 1967 ई. में मदनगंज किशनगढ़ पहुंचे

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