
विधानसभा सीटें जहां मतदाता चबवा देते हैं नाकों चने…!
इन 17 सीटों पर भाजपा-कांग्रेस को सीधी चुनौती
कहीं बरसों से कांग्रेस हारती आई तो कहीं भाजपा का रहा सूपड़ा साफ
जयपुर। Rajasthan politics: प्रदेश में विधानसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस और भाजपा पूरे दमखम के साथ मैदान में हैं। 200 विधानसभा सीटों पर पहले तो उम्मीदवारों का चयन नहीं कोई सरल प्रक्रिया फिर उसके बाद कुछ सीटों पर मतदाता राजनीतिक पार्टियों को नाकों चने चबवा देते हैं।
विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियां फिलहाल अपने आंकलन में जुटी हैं कि कहां वो कमजोर रही हैं और कहां उनकी स्थिति मजबूत है। ऐसे में जोड़ तोड़ के गणित के साथ रणनीति बनाने में जुटे दोनों दलों के लिए करीब 17 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां दोनों पार्टियां चुनौतियों का सामना करती आई हैं।
इनमें से कुछ विधानसभा सीटों पर कांग्रेस 20 वर्षों में कभी नहीं जीती को कुछ क्षेत्र ऐसे जहां भाजपा का जनता ने कर रखा सूपड़ा साफ।
यह भी पढ़ें:सुधांशु त्रिवेदी से भाजपाइयों को वाकपटुता का गुरुमंत्र…!
किस सीट पर कौन है भारी
- जयपुर की बस्सी विधानसभा सीट ऐसा क्षेत्र हैं जहां पिछले चार चुनावों में तीन बार निर्दलीय उम्मीदवार को जनता ने जिताया। 2018 में भी यहां की जनता ने निर्दलीय उम्मीदवार लक्ष्मण मीणा की जीत हुई।
- भरतपुर विधानसभा सीट से भाजपा की स्थिति ठीक है यहां चार में से दो चुनावों में भाजपा प्रत्याशी ने बाजी मारी।
- नदबई सीट कांग्रेस के लिए चारों चुनावों में निराशा लेकर आई। यहां तीन बार कृष्णेंन्द्र कौर दीपा लोगों की पसंद बनीं वहीं पिछले चुनावों में जोगिंदर सिंह अवाना बसपा से जीतकर विधायक बने।
- बांदीकुई दौसा सीट की परिसीमन से स्थिति बदल गई। 2018 में यहां कांग्रेस के जीआर खटाना बाजी मारी थी। जबकि 2013 में भाजपा की अल्का सिंह इस सीट से विधायक रहीं। 2008 में दौसा से मुरारी मीणा जीते थे जो 2018 में फिर दौसा से विजयी रहे।
- महुआ सीट नदबई की तरह कभी कांग्रेस के पक्ष में नहीं रही। यहां पिछले चारों चुनावों में कांग्रेस का हार का मुंह देखना पड़ा है। इस सीट पर एक बार निर्दलीय और एक बार भाजपा का रिवाज बना हुआ है। 2018 में यहां निर्दलीय उम्मीदवार ओम प्रकाश हुड़ला जीते थे।
- इधर करौली सीट हमेशा से सत्ता विरोधी लहर में चली। यानि यहां से कभी सरकार का विधायक नहीं जीता। 2018 में यहां बीएसपी के प्रत्याशी लखन सिंह जीते।
- कोटपूतली सीट पर भाजपा जैसे श्रापित है क्योंकि पिछले 20 वर्षों में भाजपा को एक बार भी जीत नहीं मिली। इस सीट पर एक बार कांग्रेस एक बार निर्दलीय का रिवाज बरकरार है।
- थानागाजी विधानसभा सीट से दो बार भाजपा तो दो बार निर्दलीय उम्मीदरवार जीते हैं यहां 2018 में निर्दलीय उम्मीदवार कांति प्रसाद ने जीत हासिल की थी। यह भी पढ़ें:गहलोत का एक और माइलस्टोन !
- राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ विधानसभा सीट पर 4 में से केवल एक-एक बार ही भाजपा-कांगेस को जीत नसीब हुई जबकि दो बार यहां से NPEP और SP के विधायक बने। पिछले चुनावों में इस सीट से कांग्रेस के जौहरीलाल जीते थे।
- उदयपुरवाटी विधानभा सीट पर तीन में से दो चुनाव पर BSP ने बाजी मारी है। पिछले चुनावों में इस सीट से बीएसपी के Rajendra gudha विधायक बने।
- धोद विधानसभा सीट पर चार में से दो बार सीपीएम ने बाजी मार विधायक बनाए। 2018 में कांग्रेस और 2013 में यहां भाजपा ने विधायक बनाए।
- नवलगढ़ सीट से भाजपा को पिछले चारों चुनावों में खाता नहीं खुला। यहां दो बार राजकुमार शर्मा बसपा और निर्दलीय चुनाव जीते, पिछले चुनावों में शर्मा को कांग्रेस से टिकट मिला और वे तीसरी बार यहां से विधायक बने हैं।
- कुशलगढ़ सीट से पिछले 20 वर्षों में कांग्रेस यहां अपना खाता नहीं खोल पाई। यहां पार्टी की जगह उम्मीदवार के चेहरे पर वोट मिलते हैं। यानि यहां चेहरा प्रधान है। इस सीट पर 2018 में निर्दलीय उम्मीदवार रमीला खड़िया की जीत हुई। यह भी पढ़ें:गहलोत सरकार घबराई, राज्यवर्धन का आरोप
- खींवसर सीट पर भी कांग्रेस चार चुनावों में से एक में भी नहीं जीती। ये विधानसभा सीट भी ऐसी मानी जाती हैं जहां पार्टी की नहीं प्रत्याशी के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाता है। 2018 में RLP से हनुमान बेनीवाल जीते उनके सांसद बनने के बाद उनके भाई नारायण बेनीवाल 2019 में RLP से ही विधायक बने, यहां कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं रही है।
- श्रीगंगानगर सीटर से 2018 में राजकुमार गौड ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीता यहां दो बार भाजपा भी अपने विधायक बनवा चुकी है।
- भद्रा सीट पर भी कांग्रेस को कभी जीत नसीब नहीं हुई। इस विधानसभा सीट स एक बार निर्दलीय या अन्य दल जीते वहीं एक बार भाजपा का विधायक बना।
- गंगापुर सीट पर किसी भी पार्टी ने स्वयं को कभी स्टेबल नहीं किया या फिर यूं कहें कि कभी किसी पार्टी का यहां वर्चस्व नहीं बन पाया। यहां एक-एक बार भाजपा कांग्रेस, निर्दलीय और सीपीएम ने विधायक बनाए। पिछले चुनावों में इस सीट से निर्दलीय राकेश मीणा जीते।
किसकी जीत में क्या रहे बड़े कारण
इन सीटों पर अक्सर त्रिकोणीय संघर्ष का माहौल बना रहा। इन सीटों पर भाजपा कांग्रेस के अलावा अन्य भी जोर आजमाते रहे हैं। इससे पहले यहां JDU और कुछ सीटों पर SP का प्रभाव रहा। अब RLP BTP जैसे दल भी हैं।
कई बार इन सीटों पर विधायकों के टिकट कटने के चलते तो किसी सीट से चेहरे को प्रमुखता मिलने के कारण किसी का वर्चस्व नहीं बन पाया। इनमें राजकुमार शर्मा, हनुमान बेनीवाल, कृष्णेंद्र कौर दीपा, राजेंद्र गुढ़ा, मुरारीलाल मीणा ऐसे ही चेहरे कई उदाहरण हैं जो पार्टियों की जगह अपने क्षेत्रों पर खुद की पकड़ रखते हैं जिस भी पार्टी से टिकट मिले जीत जाते हैं।
फिर कई बार जातिगत समीकरण भी क्षेत्रों में प्रभावी रहता है। कई बार जाति को साइड कर पार्टियां चेहरों पर दाव खेलती हैं और मुंह की खानी पड़ती है और उस क्षेत्र से जातियों को साथ लेकर चलने वाल चेहरा जीत जाता है।
बहरहाल ये राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में से ऐसी सीटें हैं जहां कांग्रेस भाजपा का बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। साथ ये सीटें किसी पार्टी की जगह जातिगत समीकरण और चेहरे की प्रमुखता से जीती जाती हैं। यानि पार्टियों को इन सीटों के समीकरण को समझकर इन सीटों को अगर जीत लेती हैं तो उस पार्टी का वर्चस्व बना रहेगा।