कालबेलिया यानि “महाकाल के साथी”

कालबेलिया यानि “महाकाल के साथी”

राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर है कालबेलिया नृत्य

पुरुषों का श्रृंगार कानों में कुंडल, भुजाओं में रुद्राक्ष,

महिलाएं घाघरा, कांचली-कुर्ति और ओढनी में सांप की तरह बलखाते हुए करती हैं कालबेलिया नृत्य

जयपुर। राजस्थान के संस्कृति में चार चांद लगाने वाली यहां की परम्पराएं, साहित्य, लोकनृत्य (Folk dance) आज भी मरुधरा के गौरवमयी इतिहास की गाथा गाते हैं। राजस्थान (Rajasthan) में आज भी संस्कार, परंपराएं, सभ्यता, संस्कृति उसी रूप में बनी हुई हैं जैसी की वे अपने प्रारब्ध में हुआ करती थीं। अपनी आन-बान-शान के प्रतीक राजस्थान प्रदेश का नृत्य आज भी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। राजस्थान के प्रमुख नृत्यों में कालबेलिया (Kalbeliya), घूमर (Ghoomar) और गैर(Gair) नृत्य  (Dance) जैसे नृत्य शामिल हैं।  

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दलीप सिंह राठौड़ के पास है अद्भत खजाना 

आज हम आपको बताएंगे राजस्थान के इस नृत्य के बारे में dusrikhabar.com  की नृत्य सीरीज में। कालबेलिया नृत्य की परंपरा, खासियत और कैसे ये राजस्थान की संस्कृति एवं पर्यटन को और रंगीला-रोचक बना देता है। राजस्थान पर्यटन विभाग (Rajasthan Tourism Department) के उप निदेशक दलीप सिंह राठौड़ (Daleep singh Rathore) का राजस्थान की कला और संस्कृति से अटूट बंधन है। राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि राजस्थान का कालबेलिया नृत्य क्या है, कौन हैं इसके जन्मदाता, किसने इसे आगे बढ़ाया और क्या है इस नृत्य के पीछे की कथा…

 

क्या है कालबेलिया नृत्य

कालबेलिया नृत्य राजस्थान की सपेरा जाति के द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में सपेरा समाज की महिलाओं का विशेष योगदान होता है। क्योंकि ये महिलाएं ही कई तरह के वाद्य यंत्रों जैसे पुंगी, डफली, खंजरी, ढोलक आदि की धुन पर नागिन की तरह बल खाती हुईं थिरकती हैं तो देखने वालों को मन मोह लेती हैं।

राजस्थान का कालबेलिया नृत्य अपनी कुशल नृत्यांगनाओं की अदाओं और विशेष शैली के कारण विश्व प्रसिद्धि हासिल कर चुका है। जब ये नृत्य होता है तो दर्शकों पर इनका मानो जादू सा छा जाता है पुरुष सदस्य इस प्रदर्शन में संगीत पक्ष की जिम्मेदारी उठाते हुए नृत्य प्रदर्शन में सहायता के लिए कई तरह के वाद्य यंत्र पर धुन तैयार करते हैं।

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कालबेलिया की मुख्य वाद्य यंत्र पुंगी (Pungi) है तो सहयोगी यंत्र डफली (Dafli) या खंजरी (Khanjri) होता है। कालबेलिया के कई कलाकार राजस्थान की नाग पहाड़ियों से निकालकर पूरे देश में फैले हुए हैं। इस समाज के लोग अपनी उत्पत्ति गुरु गोरखनाथ के 12वीं सदी के शिष्य कंलिप्र से हुई मानते हैं। आपको बता दें कि कालबेलिया जनजाति की सबसे ज्यादा आबादी राजस्थान के पाली जिले में निवास करती है इसके बाद अजमेर, चितौड़गढ़ और उदयपुर में भी कालबेलिया समाज के लोग बहुतायत में निवास करते हैं।

 

कालबेलिया समाज और महाकाल का रिश्ता

जैसा कि इस नृत्य के नाम से ही समझ आता है, कालबेलिया दो शब्दों से मिलकर बना है। काल यानी काल या महाकाल और बलिया अर्थात नदी बेल और बलिया का मतलब साथी भी होता है।  काल के साथी ये है लोग कानों में कुंडल, भुजाओं में रुद्राक्ष धारण किए एक स्वाभिमानी घुमंतू जाति है।

सांप की तरह बलखाती नृत्यांगनाएं करती हैं कमाल

इनकी महिला सदस्य यानि नृत्यांगनाएं सांप की तरह बाल खाते हुए चुस्ती फूर्ति से थिरकती हैं। उनकी आंखों की पलकों से अंगूठी उठाना, मुंह से पैसे उठाना, उल्टी चकरी खाना तथा कई सारे घुमावदार चक्कर लेकर लोगों के दिलों पर नृत्य से राज करती हैं।

नृत्य करने वाली कालबेलिया महिलाएं कांच लगी कशीदाकारी वाली काले रंग का घेरदार घाघरा, कांचली-कुर्ती और ओढ़नी पहनती हैं। कालबेलिया नृत्य के गीत आमतौर पर लोक कथा और पौराणिक कथाओं पर आधारित होते हैं।

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गुलाबो ने कालबेलिया नृत्य को पहुंचाया विश्वपटल पर

राजस्थान के कालबेलिया नृत्य को विश्वस्तर की ऊचाइयों पर ले जाने वाली नृत्यांगना पद्मश्री गुलाबो ने अपनी कला के माध्यम से कालबेलिया जाति और इस नृत्य का विश्वभर में परचम लहराया है। इस नृत्य को विश्वपटल पर ले जानी वाली गुलाबो देवी (Gulabo Devi) अब इस नृत्य को और आगे बढ़ाने के लिए युवा पीढ़ी को प्रशिक्षण भी देती हैं। कालबेलिया नृत्यांगना पद्मश्री (Padmashree) गुलाबो के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में देश ही नहीं विदेश के लोग भी शामिल होते हैं।

बकौल गुलाबो एक बार किसी ने गुलाबो से पूछा कि गुलाबोजी आजकल कहां रहती हो तो उन्होंने कहा कि मैं आजकल फ्रांस व्यक्ति हूं वहीं रहती हूं तथा इंडिया के प्रांत राजस्थान की परंपरा और संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम कर रही हूं। जब कालबेलिया नृत्य अपने चरम पर था तो उन्हें कई देशों से प्रशिक्षण देने का न्योता मिला इसलिए अब वे फ्रांस (France) में मुख्य प्रशिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हैं और राजस्थान से मिली अपनी विरासत को आगे लोगों में बांट रही हैं।

यूनेस्को की सूची में शामिल कालबेलिया नृत्य

इनमें से कालबेलिया नृत्य को यूनेस्को की सूची में भी शामिल किया गया है। आपको जानकार हैरानी होगी कि करीब 14वर्ष पहले 2010 में कालबेलिया नृत्य को संयुक्त राष्ट्र की इकाई यूनेस्को ने मानवता की सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल कर लिया था।

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कालबेलिया नृत्य के बिना समारोह में लगता अधूरापन

राजस्थान की परंपरा और संस्कृति का हिस्सा बन चुका कालबेलिया नृत्य यहां होने वाले करीब करीब सभी कार्यक्रमों में प्रस्तुत किया जाता है। यहां आने वाले देशी विदेशी पर्यटकों को कालबेलिया नृत्य के बिना अधूरापन सा महसूस होता है। यानि अगर ये कहें कि कालबेलिया नृत्य राजस्थान की परंपरा का अभिन्न हिस्सा बन गया है तो गलत नहीं होगा।

 

राजस्थान सरकार और पर्यटन विभाग ने निभाई अपनी जिम्मेदारी

पर्यटन विभाग ने भी राजस्थान के ज्यादातर लोक नृत्यों और कलाकारों को देश-प्रदेश में कई प्लेटफार्म उपलब्ध करवाकर उनका संरक्षण करने में महती भूमिका निभाई है। पर्यटन विभाग और राजस्थान सरकार के सहयोग से ही ये कलाकार देश-विदेश में राजस्थानी परंपराओं और संस्कृति को जीवंत बनाए हुए हैं।

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