चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर बना रहा दुनिया का सबसे बड़ा डैम या वाटर बम…? भूटान, बांग्लादेश और भारत को बड़ा खतरा…!

चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर बना रहा दुनिया का सबसे बड़ा डैम या वाटर बम…? भूटान, बांग्लादेश और भारत को बड़ा खतरा…!

ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन ने बिना भारत को जानकारी दिए शुरु किया दुनिया के सबसे बड़े डैम का निर्माण…

भारत और बांग्लादेश दोनों ने जताई आपत्ति, जल प्रवाह नियंत्रण से हो सकता है बड़ा खतरा

167.8 अरब डॉलर की लागत से बन रहा है डैम, सालाना 300 अरब यूनिट बिजली उत्पादन का दावा

अरुणाचल सीमा के पास डैम निर्माण शुरू, सीएम पेमा खांडू बोले- ‘ये वाटर बम है भारत के लिए’

विजय श्रीवास्तव,

नई दिल्ली,(dusrikhabar.com)। चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी (चीन में यारलुंग सांगपो) पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर डैम बनाना शुरू कर दिया है। शनिवार को चीन के प्रधानमंत्री ली क्यांग ने न्यिंगची शहर में इस मेगाप्रोजेक्ट का विधिवत उद्घाटन किया। यह शहर भारतीय सीमा—अरुणाचल प्रदेश—से कुछ ही दूरी पर स्थित है।

अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार, इस परियोजना को दिसंबर 2024 में बीजिंग की मंजूरी मिली थी। इसकी अनुमानित लागत करीब 167.8 अरब डॉलर (लगभग 12 लाख करोड़ रुपये) बताई जा रही है।

इस परियोजना से भारत और बांग्लादेश दोनों ही देशों में चिंताओं का स्तर बढ़ गया है। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री पेमा खांडू ने इस डैम को “वॉटर बम” की संज्ञा दी है और इसे भारत की जल सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बताया है।

ब्रह्मपुत्र के प्रवाह मार्ग पर चीन की मजबूत पकड़

करीब 2900 किलोमीटर लंबी ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत के पठार से निकलती है और लगभग 2057 किलोमीटर तक तिब्बत में बहने के बाद अरुणाचल प्रदेश से भारत में प्रवेश करती है। इसके बाद असम होते हुए यह नदी बांग्लादेश पहुंचती है और अंततः बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है।

नदी भारत में प्रवेश से ठीक पहले एक तीव्र यू-टर्न लेती है—यही वह क्षेत्र है जहां चीन यह महा-डैम बना रहा है। इस स्थान का रणनीतिक महत्व भारत के लिए अत्यंत गंभीर है।

भारत की आपत्तियां: जल सुरक्षा और पर्यावरण पर खतरा

भारत के विदेश मंत्रालय ने इस परियोजना पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। 3 जनवरी 2025 को एक आधिकारिक प्रेस वार्ता में भारत ने स्पष्ट किया था कि इस तरह की एकतरफा परियोजनाएं निचले राज्यों के हितों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। भारत द्वारा जताई गईं प्रमुख आपत्तियां निम्नलिखित हैं:

  • जल प्रवाह पर नियंत्रण: डैम के जरिए चीन को ब्रह्मपुत्र के जल प्रवाह को नियंत्रित करने की ताकत मिल सकती है, जिससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों—विशेषकर असम और अरुणाचल—में बाढ़ या सूखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • पर्यावरणीय असर: यह डैम भूकंप-प्रवण क्षेत्र में बनाया जा रहा है, जिससे नदी की पारिस्थितिकी, जैव विविधता और गाद के प्राकृतिक प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
  • कृषि और आजीविका पर प्रभाव: ब्रह्मपुत्र की जल और गाद पर आश्रित पूर्वोत्तर भारत के किसानों और मछुआरों की आजीविका को गंभीर खतरा हो सकता है।
  • राजनीतिक तनाव: परियोजना से भारत-चीन संबंधों में और तनाव बढ़ सकता है, विशेष रूप से अरुणाचल सीमा के सन्दर्भ में।
  • क्षेत्रीय प्रभाव: परियोजना का असर बांग्लादेश, नेपाल और भूटान जैसे निचले देशों तक भी पहुंच सकता है।

डैम से 300 अरब यूनिट बिजली उत्पादन का दावा

चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार, इस डैम प्रोजेक्ट में पांच चरणों में सीढ़ीदार (कैस्केड) हाइड्रोपावर स्टेशन बनाए जाएंगे। इसके जरिए सालाना 300 अरब यूनिट (kWh) से अधिक बिजली उत्पन्न करने का लक्ष्य है। यह क्षमता लगभग 30 करोड़ लोगों की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम होगी।

फिलहाल दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर स्टेशन ‘थ्री गॉर्जेस डैम’ चीन के हुबेई प्रांत में यांग्जी नदी पर स्थित है, जिसकी सालाना उत्पादन क्षमता 88 अरब किलोवाट-घंटा है। नया प्रोजेक्ट इसे पीछे छोड़ने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।

भारत की तैयारी: जवाब में निर्माण और कूटनीतिक पहल

भारत ने भी ब्रह्मपुत्र नदी पर अरुणाचल प्रदेश के भीतर एक बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट शुरू कर रखा है। इसके साथ-साथ भारत और चीन के बीच 2006 से जल प्रवाह डेटा साझा करने के लिए एक्सपर्ट लेवल मैकेनिज्म (ELM) प्रणाली सक्रिय है, हालांकि चीन की ओर से हालिया वर्षों में पारदर्शिता में कमी आई है।

गत वर्ष दिसंबर में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी।

पूर्व में भी 2015 में जब चीन ने तिब्बत में ‘जम हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट’ की शुरुआत की थी, तब भारत ने इस प्रकार के निर्माण कार्यों को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की थी।

पानी पर बढ़ता भू-राजनीतिक दबाव

ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन की यह नई परियोजना केवल एक ऊर्जा उत्पादन साधन नहीं है, बल्कि दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में पानी के बढ़ते महत्व का संकेत है। भारत और उसके पड़ोसी देशों को अपनी जल नीति और कूटनीतिक रणनीति को नए सिरे से परिभाषित करना होगा, ताकि जल संसाधनों पर नियंत्रण भविष्य की अस्थिरता का कारण न बन सके।

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