वैदिक पंचांग-अष्टमी तिथि

वैदिक पंचांग-अष्टमी तिथि

*~ वैदिक पंचांग ~*

वैदिक पंचांग-अष्टमी ज्योतिषी पूनम गौड़ के अनुसार कैसे शुभ होगा? 

जानिए वैदिक पंचांग से (अष्टमी) के बारे में 

दिनांक – 5 नवम्बर 2023
दिन – रविवार
विक्रम संवत – 2080 (गुजरात – 2079)
शक संवत – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद ॠतु
मास – आश्विन

पक्ष – कृष्ण
तिथि – अष्टमी 03:18 (6 नवम्बर) तक तत्पश्चात नवमी
नक्षत्र – पुष्य 10:29 तक त्तपश्चात अश्लेषा
योग – शुभ 13:37 तक तत्पश्चात शुक्ल
राहुकाल – 16:30 – 18:00 बजे तक
सूर्योदय – 06:36
सूर्यास्त – 17:33

दिशाशूल – पश्चिम दिशा में
सर्वार्थसिद्धि योग – 06:36 से 10:29 तक
रवि पुष्य योग – 06:36 से 10:29 तक
व्रत पर्व – अहोई अष्टमी 05 नवम्बर 2023
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त – 17:33 से 18:52 तक
तारों को देखने के लिये साँझ का समय – 17:58
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय – 00:02, (नवम्बर 06)

राधा कुंड स्नान 05 नवम्बर 2023
कालाष्टमी 05 नवम्बर 2023
धन तेरस 10 नवम्बर 2023
छोटी दीवाली 11 नवम्बर 2023
बड़ी दीवाली 12 नवम्बर 2023
सोमवती अमावस्या 13 नवम्बर 2023
अन्नकुट 14 नवम्बर 2023
भाई दूज 15 नवम्बर 2023

गोपाष्टमी 20 नवम्बर 2023
आंवला नवमी 21 नवम्बर 2023
देवउठनी एकादशी 23 नवम्बर 2023
व्रत की पूर्णिमा 26 नवम्बर 2023
स्नान दान की पूर्णिमा 27 नवम्बर 2023

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💥 विशेष:- अष्टमी को नारियल को किसी भी रूप में सेवन करने से बुद्धि का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

अहोई अष्टमी

👉अहोई अष्टमी के दिन माताएँ अपने पुत्रों की भलाई के लिए उषाकाल (भोर) से लेकर गोधूलि बेला (साँझ) तक उपवास करती हैं। साँझ के दौरान आकाश में तारों को देखने के बाद व्रत तोड़ा जाता है। कुछ महिलाएँ चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद व्रत को तोड़ती है लेकिन इसका अनुसरण करना कठिन होता है क्योंकि अहोई अष्टमी के दिन रात में चन्द्रोदय देर से होता है।

👉करवा चौथ के समान अहोई अष्टमी उत्तर भारत में ज्यादा प्रसिद्ध है। अहोई अष्टमी का दिन अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह व्रत अष्टमी तिथि, जो कि माह का आठवाँ दिन होता है, के दौरान किया जाता है।

👉अहोई अष्टमी का दिन भी कठोर उपवास का दिन होता है और बहुत सी महिलाएँ पूरे दिन जल तक ग्रहण नहीं करती हैं। आकाश में तारों को देखने के बाद ही उपवास को तोड़ा जाता है।

👉दूध के शत्रु अथवा दूध के विरोधी द्रव्य: मूंग, मूली, गुड़, मछली, मांस के साथ लिया हुआ दूध कोढ़ उत्पन्न करता है । प्रत्येक सब्जी, जामुन, शराब के साथ लिया हुआ दूध अज्ञानी मानव को सर्प की तरह मार डालता है ।

क्या करें क्या न करे!

👉प्रवाही या प्रवाही न हो ऐसे प्रत्येक गरम पदार्थ को दूध के साथ मिला कर नहीं खाना चाहिये । उसी तरह से हरे शाकभाजी, तेल, तल की खली, सरसव, कोठफल जामुन, नींबू, कटहल, विजोरु, बांस का फल, बोर, खट्टा अनार ऐसा दूसरा कोई भी फल खास करके खट्टे आम जैसा फल तथा बिल्व फल दूध के साथ विरोधी होने से एक साथ खाया नहीं जाता । अगर ये चीजें दूध के साथ खाई जायें तो बहरापन, अंधापन, शरीर में विवर्णता फीकापन, मूकपन आदि आते है और किसी समय मृत्यु भी होती है। पीसे हुए आटे के पदार्थ, आचार के साथ दूध का सेवन नहीं करना चाहिये।

दूध का उपयोग 

👉दूध के मित्र: शहद, घी, मक्खन, अदरक, पीपर, कालीमिर्च, मिश्री या शक्कर, चूड़ा, परवल, सौंठ और हरड़े इतने द्रव्य में से कोई भी एक द्रव्य दूध के साथ लिया जाय तो यह उत्तम है ।*

👉दूध को खूब फेंटकर झाग पैदा करके धीरे-धीरे घूँट-घूँट पीना चाहिए । इसका झाग त्रिदोष नाशक, बलवर्धक, तृप्ति कारक व हलका होता है । ये विशेषताएँ केवल देशी गाय के दूध में ही होती हैं । जर्सी गाय, भैंस अथवा बकरी आदि के दूध से उपरोक्त लाभ नहीं होते ।4*

👉दूध कब नहीं पीना चाहिए: नया बुखार, कमजोर पाचन शक्ति मन्दाग्नि में, आंव के दोष में, कोढ़ के रोगी को, चर्मरोग वाले को, कफ के रोग में, खाँसी में, अतिसार (दस्त) वाले रोगी को दूध नहीं पीना चाहिये । प्रत्येक प्रकार का दूध कृमि-दोष उत्पन्न करता है। अतः कृमि रोग वाले व्यक्ति को मुख्यतः दूध का सेवन नहीं करना चाहिये।

👉05 नवम्बर 2023 रविवार को सूर्योदय से सुबह 10:29 तक रविपुष्यामृत योग है।

👉१०८ मोती की माला लेकर जो मंत्र का जप करता है, श्रद्धापूर्वक तो २७ नक्षत्र के देवता उस पर खुश होते हैं और नक्षत्रों में मुख्य है पुष्य नक्षत्र, और पुष्य नक्षत्र के स्वामी हैं देवगुरु ब्रहस्पति। पुष्य नक्षत्र समृद्धि देनेवाला है, सम्पति बढ़ानेवाला है। उस दिन ब्रहस्पति का पूजन करना चाहिये और मन ही मन ये मंत्र बोले –*
ॐ ऐं क्लीं ब्रहस्पतये नम:।…… ॐ ऐं क्लीं ब्रहस्पतये नम:।

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👉कैसे बदले दुर्भाग्य को सौभाग्य में
बरगद के पत्ते पर गुरुपुष्य या रविपुष्य योग में हल्दी से स्वस्तिक बनाकर घर में रखें।

रविपुष्यामृत योग

👉‘शिव पुराण’ में पुष्य नक्षत्र को भगवान शिव की विभूति बताया गया है। पुष्य नक्षत्र के प्रभाव से अनिष्ट-से-अनिष्टकर दोष भी समाप्त और निष्फल-से हो जाते हैं, वे हमारे लिए पुष्य नक्षत्र के पूरक बनकर अनुकूल फलदायी हो जाते हैं। ‘सर्वसिद्धिकर: पुष्य:।’ इस शास्त्रवचन के अनुसार पुष्य नक्षत्र सर्वसिद्धिकर है। पुष्य नक्षत्र में किये गए श्राद्ध से पितरों को अक्षय तृप्ति होती है तथा कर्ता को धन, पुत्रादि की प्राप्ति होती है।*

👉इस योग में किया गया जप, ध्यान, दान, पुण्य महाफलदायी होता है परंतु पुष्य में विवाह व उससे संबधित सभी मांगलिक कार्य वर्जित हैं। (शिव पुराण, विद्येश्वर संहिताः अध्याय 10)

👉ज्योतिषीय परामर्श के लिए पूनम गौड को 8826026945 पर व्हाट्सएप्प करें।

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