वैदिक पंचांग-चतुर्थी तिथि

वैदिक पंचांग-चतुर्थी तिथि

*~ वैदिक पंचांग ~*

वैदिक पंचांग-चतुर्थी  ज्योतिषी पूनम गौड़ के अनुसार कैसे शुभ होगा? 

जानिए वैदिक पंचांग से (चतुर्थी) के बारे में 

दिनांक – 1 नवम्बर 2023

दिन – बुधवार
विक्रम संवत – 2080 (गुजरात – 2079)
शक संवत – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद ॠतु
मास – आश्विन

पक्ष – कृष्ण

तिथि – चतुर्थी 21:19 तक तत्पश्चात पंचमी
नक्षत्र – मृगशिरा 04:36 (2 नवम्बर) तक त्तपश्चात आर्द्रा
योग – परिघ 14:07 तक तत्पश्चात शिव
राहुकाल – 12:00 – 13:30 बजे तक
सूर्योदय – 06:33
सूर्यास्त – 17:36

दिशाशूल – उत्तर दिशा में
सर्वार्थ सिद्धि योग – 06:33 से 04:36 (2 नवम्बर) तक

व्रत पर्व – करवा चौथ व्रत 01 नवम्बर 2023

अहोई अष्टमी 05 नवम्बर 2023
धन तेरस 10 नवम्बर 2023
छोटी दीवाली 11 नवम्बर 2023
बड़ी दीवाली 12 नवम्बर 2023
सोमवती अमावस्या 13 नवम्बर 2023
अन्नकुट 14 नवम्बर 2023
भाई दूज 15 नवम्बर 2023
गोपाष्टमी 20 नवम्बर 2023
आंवला नवमी 21 नवम्बर 2023
देवउठनी एकादशी 23 नवम्बर 2023
व्रत की पूर्णिमा 26 नवम्बर 2023
स्नान दान की पूर्णिमा 27 नवम्बर 2023

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💥 विशेष:- चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

👉 जो कार्तिक में प्रतिदिन दीपदान करता है उसके पुण्यो का व्याख्यान होता है
धनहीन व्यक्ति को चाहिए भूखा रहकर भी कुछ धन संग्रह करे जिससे कम से कम 1 दिन कार्तिक पूर्णिमा को दीपदान कर सके।

“दीपदानात्परं नास्ति न भूतं न भविष्यति” (अग्निपुराण)

दीपदान से बढकर न कोई व्रत है, न था और न होगा ही

👉 स्त्रियों ओर पुरुषो ने जन्म से लेकर जो पाप किया है, वह सब कार्तिक में दीपदान से नष्ट हो जाता है।

दीपदान तीर्थ पर,पवित्र नदी के किनारे,मन्दिर में ,विष्णु भगवान के सम्मुख,पीपल के बृक्ष के नीचे,तुलसी जी के आगे करे।यदि आप विदेश में रहते है तो अपने घर के मंदिर में ही कर सकते है पर कार्तिक में दीप दान का बहुत महत्व है।सुवह और शाम यदि दोनो समय नही कर सकते तो एक समय तो अवश्य करें।

श्री हरि विष्णु जी का ओर माँ लक्ष्मी का यह माह है और हर दिन पुण्यदायी है ।

👉 महापुण्यदायक तथा मोक्षदायक कार्तिक के मुख्य नियमों में सबसे प्रमुख नियम है दीपदान। दीपदान का अर्थ होता है आस्था के साथ दीपक प्रज्वलित करना। कार्तिक में प्रत्येक दिन दीपदान जरूर करना चाहिए।

पुराणों में वर्णन मिलता है:-

“हरिजागरणं प्रातःस्नानं तुलसिसेवनम् । उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके।।“ (पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय 115)

👉 “स्नानं च दीपदानं च तुलसीवनपालनम् । भूमिशय्या ब्रह्मचर्य्यं तथा द्विदलवर्जनम् ।।*
विष्णुसंकीर्तनं सत्यं पुराणश्रवणं तथा । कार्तिके मासि कुर्वंति जीवन्मुक्तास्त एव हि ।।” (स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड, कार्तिकमासमाहात्म्यम, अध्याय 03)

पद्मपुराण उत्तरखंड, अध्याय 121 में कार्तिक में दीपदान की तुलना अश्वमेघ यज्ञ से की है।

👉 घृतेन दीपको यस्य तिलतैलेन वा पुनः। ज्वलते यस्य सेनानीरश्वमेधेन तस्य किम्।

👉 कार्तिक में घी अथवा तिल के तेल से जिसका दीपक जलता रहता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ से क्या लेना है।

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अग्निपुराण के 200 वे अध्याय के अनुसार:

दीपदानात्परं नास्ति न भूतं न भविष्यति
दीपदान से बढ़कर न कोई व्रत है, न था और न होगा ही।

 स्कंदपुराण, वैष्णवखण्ड के अनुसार

सूर्यग्रहे कुरुक्षेत्रे नर्मदायां शशिग्रहे ।। तुलादानस्य यत्पुण्यं तदत्र दीपदानतः ।।

कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय और नर्मदा में चन्द्रग्रहण के समय अपने वजन के बराबर स्वर्ण के तुलादान करने का जो पुण्य है वह केवल दीपदान से मिल जाता है।

👉 कार्तिक में दीपदान का एक मुख्य उद्देश्य पितरों का मार्ग प्रशस्त करना भी है।

👉 “तुला संस्थे सहस्त्राशौ प्रदोषे भूतदर्शयोः

उल्का हस्ता नराः कुर्युः पितृणाम् मार्ग दर्शनम्।।”

पितरों के निमित्त दीपदान जरूर करें।

👉 पद्मपुराण, उत्तरखंड, अध्याय 123 में महादेव कार्तिक में दीपदान का माहात्म्य सुनाते हुए अपने पुत्र कार्तिकेय से कहते हैं ।

👉 शृणु दीपस्य माहात्म्यं कार्तिके शिखिवाहन। पितरश्चैव वांच्छंति सदा पितृगणैर्वृताः।।
भविष्यति कुलेऽस्माकं पितृभक्तः सुपुत्रकः। कार्तिके दीपदानेन यस्तोषयति केशवम्।।

👉 “मनुष्य के पितर अन्य पितृगणों के साथ सदा इस बात की अभिलाषा करते हैं कि क्या हमारे कुल में भी कोई ऐसा उत्तम पितृभक्त पुत्र उत्पन्न होगा, जो कार्तिक में दीपदान करके श्रीकेशव को संतुष्ट कर सके। ”

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दीपदान कहाँ करें?

देवालय (मंदिर) में, गौशाला में, वृक्ष के नीचे, तुलसी के समक्ष, नदी के तट पर, सड़क पर, चौराहे पर, ब्राह्मण के घर में, अपने घर में ।

अग्निपुराण के 200 वे अध्याय के अनुसार

*देवद्विजातिकगृहे दीपदोऽब्दं स सर्वभाक्

👉 जो मनुष्य देवमन्दिर अथवा ब्राह्मण के गृह में दीपदान करता है, वह सबकुछ प्राप्त कर लेता है। पद्मपुराण के अनुसार मंदिरों में और नदी के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं। दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने से व्यक्ति नरक जाने से बच जाता है।

👉 जो देवालय में, नदी के किनारे, सड़क पर दीप देता है, उसे सर्वतोमुखी लक्ष्मी प्राप्त होती है। कार्तिक में प्रतिदिन दो दीपक जरूर जलाएं। एक श्रीहरि नारायण के समक्ष तथा दूसरा शिवलिंग के समक्ष ।

ज्योतिषीय परामर्श के लिए पूनम गौड को 8826026945 पर व्हाट्सएप्प करें।

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