वैदिक पंचांग और आपका आज…द्वादशी आज
वैदिक पंचांग
पंचांग (द्वादशी) ज्योतिषी पूनम गौड़ के अनुसार कैसे शुभ होगा?
जानिए वैदिक पंचांग से पितृपक्ष के तरीके और उपाय (द्वादशी)
दिनांक – 11 अक्टूबर 2023
दिन – बुधवार
विक्रम संवत – 2080 (गुजरात – 2079)
शक संवत – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद ॠतु
मास – आश्विन
पक्ष – कृष्ण
तिथि – द्वादशी 17:37 तक तत्पश्चात त्रयोदशी
नक्षत्र – मघा 08:45 तक तत्पश्चात पूर्वफाल्गुणी
योग – शुभ 08:42 तक तत्पश्चात शुक्ल
राहुकाल – 12:00 – 13:30 बजे तक
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दिन की शुरुआत
सूर्योदय – 06:19
सूर्यास्त – 17:56
दिशाशूल – उत्तर दिशा में
व्रत पर्व – द्वादशी श्रद्धा 11 अक्टूबर बुधवार, सन्यासियों का श्राद्ध
प्रदोष व्रत 11 अक्टूबर
त्रयोदशी श्राद्ध 12 अक्टूबर गुरुवार
चतुर्दशी श्राद्ध 13 अक्टूबर शुक्रवार, अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों का श्राद्ध
सर्वपितृ अमावस्या 14 अक्टूबर शनिवार, सर्व पितृ अमावस्या
क्या करें, क्या न करें (द्वादशी)
💥 विशेष:- दवादशी को पूतिका(पोई) खाने से पुत्रनाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खण्ड 27.29-34)
श्राद्ध के दिन स्त्री सहवास तथा तिल का तेल खाना व लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
👉प्रदोष काल का अर्थ है सूर्यास्त के समय का एक पवित्र पर्व काल जो भगवान शिव की साधना के लिये अत्यंत अनुकूल होता है।
👉प्रदोष काल निर्धारित करने की तीन प्रचलित मान्यताएं हैं। आप अपने क्षेत्र और रीति-रिवाज से या अपने विवेक से इनमे से किसी एक का अनुसरण करें।
👉एक मान्यता के अनुसार प्रदोष काल सूर्यास्त के समय से आगे चार घटी अर्थात 96 मिनिट्स का होता है।
👉दूसरी मान्यता के अनुसार सूर्यास्त के समय से दूसरे दिन के सूर्योदय तक का काल लेकर उसके पांच भाग करे .. सूर्यास्त के समय से आगे पहला भाग प्रदोष काल माना जायेगा .. यह समय सूर्यास्त से आगे 144 मिनिट्स का रहेगा।
👉तीसरी मान्यता अनुसार सूर्यास्त से पहले देड घंटा और सूर्यास्त के बाद देड घंटे तक प्रदोष काल माना जायेगा।
👉 तो आप यही सही मानकर सूर्यास्त के समय से आगे डेढ़ घंटा मानकर चले .. आपके क्षेत्र का सूर्यास्त का समय पता कर इसे निर्धारित करें। (द्वादशी)
👉प्रदोष काल रोज सूर्यास्त के आसपास होता है, प्रदोष काल और प्रदोष तिथि में फर्क है। इसका का संबंध पुरातन काल से भगवान शिव से जोड़ा गया है।
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शिवजी क्यों कहलाते हैं नीलकंठ
👉पुराण की मान्यता नुसार देव दानव के समुद्र मंथन मे जो विष उत्पन्न हुवा था वह भगवान महादेव ने इसी प्रदोष काल मे प्राशन किया था .. भगवती पार्वती ने अपने सामर्थ्य से उस विष को शिवजी के कंठ तक ही रोक दिया इसलिये भोलेनाथ ” नीलकंठ ” नाम से जाने गये।
👉भगवान शिव जी ने समस्त सृष्टि को इस भयंकर विष के प्रभाव से बचाया इस पवित्र प्रदोष काल मे इसीलिए इसे शिव उपासना के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है .. इसि काल मे भगवान महादेव ने अपना तांडव नृत्य किया था।
भगवान महादेव ने विष का प्राशन कर समस्त सृष्टि को उस भयंकर विष के प्रभाव से मुक्त किया इसलिए जब सभी देव दानव महादेव के पास गये और उनकी स्तुति की जिससे भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुये वह दिन प्रदोष तिथि ही थी।
👉इसीलिए प्रदोष के दिन सूर्यास्त के समय प्रदोष काल मे भगवान शिव की उपासना कर उन्हे प्रसन्न किया जा सकता है .. यह अत्यंत पुण्यदायी पर्व काल होता है।
👉प्रदोष यानी सभी दोषों से मुक्ति प्रदान करनेवाला पुण्यकाल .. मनुष्य के जीवन मे रोग , कर्जे , शत्रु , ग्रहबाधा , संकट , पूर्वजन्म के पाप आदि यह सब एक प्रकारका विष ही है और प्रदोष काल के शिव पूजन से भगवान भोलेनाथ की कृपा से हम इस विष के प्रभाव से मुक्त हो सकते है।
इसलिए कहा गया है कि…
” त्रयोदशी व्रत करे जो हमेशा
तन नाहि राखे रहे कलेशा “
👉प्रदोष के दिन आप अगर संभव हो तो दिन भर उपवास रखे और शाम को प्रदोष काल मे शिवपूजन , रुद्राभिषेक , शिवस्तोत्रों का पाठ , शिव मंत्र का जाप , 108 बेल के पत्तों से बिल्वार्चन , ध्यान आदि प्रकार से साधना कर सकते है।
👉 बुधवार को अगर प्रदोष हो तो उसे बुध प्रदोष या सौम्य प्रदोष कहते है .. संतान सुख प्राप्ति और विद्या प्राप्ति के लिये लाभदायी होता है।
👉स्कंद पुराण मे प्रदोष स्तोत्र वर्णित है .. इसका पाठ प्रदोष काल मे कर सकते है .. प्रदोष काल के शिवपूजन से दरिद्रता दूर होती और आर्थिक उन्नती प्राप्त होती है ..
” ये वै प्रदोष समये परमेश्वरस्य
कुर्वंति अनन्य मनसोsन्गि सरोजपूजाम
नित्यं प्रबद्ध धन धान्य कलत्र पुत्र
सौभाग्य संपद अधिकारस्त इहैव लोके “
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👉जो लोग प्रदोष काल मे अनन्य भक्ति से महादेव के चरण कमलों का पूजन करते है उन्हे इस लोक मे धन धान्य कलत्र पुत्र सौभाग्य एवं संपत्ति की प्राप्ति होती है।
” अत: प्रदोषे शिव एक एव पूज्योsथ नान्ये हरिपद्मजाद्या:
तस्मिन महेशे विधिज्यमाने सर्वे प्रसीदंति सुराधिनाथा: “
प्रदोष काल में शिव पूजन ही फलदायी
👉प्रदोष काल मे विष्णु एवं ब्रम्हा का पूजन न करे और केवल एक शिवजी का पूजन करें .. प्रदोष काल मे महादेव के पूजन से इतर सभी देवता प्रसन्न हो जाते है .
👉हर महीने मे दो बार प्रदोष आता है .. एक शुक्ल पक्ष मे और एक कृष्ण पक्ष में। (द्वादशी)
परंतु माघ महिने मे कृष्ण पक्ष मे जो प्रदोष आता है उसे महाप्रदोष कहते है .. यह महाशिवरात्री के वक्त आता है … माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को
जब मध्यरात्री मे चतुर्दशी तिथि हो तब वह रात्री महाशिवरात्री कहलाती है .. और माघ मास की कृष्ण त्रयोदशी तिथी को सूर्यास्त को त्रयोदशी होने से महा प्रदोष तिथि होती है।
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