वैदिक पंचांग और आपका आज.. तृतीया श्राद्ध
वैदिक पंचांग
पंचांग ज्योतिषी पूनम गौड़ के अनुसार कैसे शुभ होगा?
जानिए वैदिक पंचांग से पितृपक्ष के तरीके और उपाय, आज Tritiya Shraddha

सेलीब्रिटी ज्योतिष पूनम गौड़
दिनांक – 1 अक्टूबर 2023
दिन – रविवार
विक्रम संवत – 2080 (गुजरात – 2079)
शक संवत – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद ॠतु
मास – आश्विन
पक्ष – कृष्ण
तिथि – द्वितीया 09:41 तक तत्पश्चात Tritiya Shraddha
नक्षत्र – अश्विनी 19:27 तक तत्पश्चात भरणी
योग – व्यापात 13:14 तक तत्पश्चात हर्षण
राहुकाल – 16:30 – 18:00 बजे तक
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दिन की शुरुआत
सूर्योदय – 06:14
सूर्यास्त – 18:08
दिशाशूल – पश्चिम दिशा में
सर्वार्थ सिद्धि योग- 06:14 से 19:27 तक
व्रत पर्व – Tritiya Shraddha 1 अक्टूबर रविवार
चतुर्थी श्राद्ध 2 अक्टूबर सोमवार, भरणी श्राद्ध
पञ्चमी श्राद्ध 3 अक्टूबर मंगलवार
षष्ठी श्राद्ध 4 अक्टूबर बुधवार
सप्तमी श्रद्ध 5 अक्टूबर गुरुवार
अष्टमी श्रद्ध 6 अक्टूबर शुक्रवार
नवमी श्राद्ध 7 अक्टूबर शनिवार’ सौभाग्यवती श्राद्ध
दशमी श्राद्ध 8 अक्टूबर रविवार
एकादशी श्राद्ध 9 अक्टूबर सोमवार
एकादशी व्रत 10 अक्टूबर मंगलवार
द्वादशी श्रद्धा 11 अक्टूबर बुधवार, सन्यासियों का श्राद्ध
त्रयोदशी श्राद्ध 12 अक्टूबर गुरुवार
चतुर्दशी श्राद्ध 13 अक्टूबर शुक्रवार, अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों का श्राद्ध
सर्वपितृ अमावस्या 14 अक्टूबर शनिवार, सर्व पितृ अमावस्या
श्राद्ध वाले दिन घर में करें गीता का पाठ
विशेष:- द्वितीया को बृहती (छोटा बैगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
👉 (Tritiya Shraddha) जिस दिन आप के घर में श्राद्ध हो उस दिन गीता का सातवें अध्याय का पाठ करें । पाठ करते समय जल भर के रखें । पाठ पूरा हो तो जल सूर्य भगवन को अर्घ्य दें और कहें की हमारे पितृ के लिए हम अर्पण करते हें। जिनका श्राद्ध है , उनके लिए आज का गीता पाठ अर्पण।
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👉अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने दोनों हाथ ऊपर करके बोलें: “हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दे) को आप संतुष्ट/सुखी रखें । इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ। ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगायें।
👉श्राद्ध और यज्ञ आदि कार्यों में तुलसी का एक पत्ता भी महान पुण्य देनेवाला है। पद्मपुराण
मंत्रोच्चारण से पितृों को सद्गति
👉” ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा। ” इस मंत्र का जप करके हाथ उठाकर सूर्य नारायण को पितृ की तृप्ति एवं सद्गति के लिए प्रार्थना करें । स्वधा ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं । इस मंत्र के जप से पितृ की तृप्ति अवश्य होती है और श्राद्ध में जो त्रुटी रह गई हो वे भी पूर्ण हो जाती है। (Tritiya Shraddha)
👉श्राद्ध पक्ष में १ माला रोज द्वादश मंत्र ” ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ” की करनी चाहिए और उस माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए।
👉हिन्दू धर्म के मरणोपरांत संस्कारों को पूरा करने के लिए पुत्र का प्रमुख स्थान माना गया है। शास्त्रों में लिखा है कि नरक से मुक्ति पुत्र द्वारा ही मिलती है। इसलिए पुत्र को ही श्राद्ध, पिंडदान का अधिकारी माना गया है और नरक से रक्षा करने वाले पुत्र की कामना हर मनुष्य करता है। इसलिए यहां जानते हैं कि शास्त्रों के अनुसार पुत्र न होने पर कौन-कौन श्राद्ध का अधिकारी हो सकता है।
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कौन कर सकता है श्राद्ध ?
👉 पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए।
👉 यदि पुत्र नहीं है तो, पत्नी श्राद्ध कर सकती है।
👉 पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में संपिंडों को श्राद्ध करना चाहिए।
👉 एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है।
👉 पुत्री का पति एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं।
👉 पुत्र न होने पर पौत्र या प्रपौत्र भी श्राद्ध कर सकते हैं।
👉 पुत्र एवं पौत्र या प्रपौत्र के न होने पर विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है।
👉 पत्नी का श्राद्ध तभी कर सकता है, जब कोई पुत्र न हो।
👉 पुत्र, पौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है।
👉 गोद में लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी है।
👉 कोई न होने पर राजा को उसके धन से श्राद्ध करने का विधान है।
👉 श्राद्ध पितृ ऋण से मुक्ति का माध्यम है।
👉 श्राद्ध पितरों की संतुष्टि के लिये आवश्यक है।
👉 महर्षि सुमन्तु के अनुसार श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता का कल्याण होता है।
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श्राद्ध से मोक्ष
👉 (Tritiya Shraddha) मार्कंडेय पुराण के अनुसार श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितर श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विघ्या, सभी प्रकार के सुख और मरणोपरांत स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते हैं।
👉 अत्री संहिता के अनुसार श्राद्धकर्ता परमगति को प्राप्त होता है।
👉 यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो पितरों को बड़ा ही दुःख होता है।
👉 ब्रह्मपुराण में उल्लेख है की यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो पितर श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को शाप देते हैं और उसका रक्त चूसते हैं. शाप के कारण वह वंशहीन हो जाता अर्थात वह पुत्र रहित हो जाता है, उसे जीवनभर कष्ट झेलना पड़ता है, घर में बीमारी बनी रहती है। श्राद्ध-कर्म शास्त्रोक्त विधि से ही करें पितृ कार्य कार्तिक या चैत्र मास मे भी किया जा सकता है।
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