वैदिक पंचांग और आपका आज…
एकादशी व्रत-वैदिक पंचांग
पंचांग ज्योतिषी पूनम गौड़ के अनुसार कैसे शुभ होगा?
जानिए वैदिक पंचांग से तरीके और उपाय। (ekadashi fast)

सेलीब्रिटी ज्योतिष पूनम गौड़
दिनांक – 26 सितम्बर 2023
(ekadashi fast) दिन – मंगलवार
विक्रम संवत – 2080 (गुजरात – 2079)
शक संवत – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद ॠतु
मास – भाद्रपद
पक्ष – शुक्ल
तिथि – द्वादशी 01:45 (27 सितम्बर) तक तत्पश्चात त्रयोदशी
नक्षत्र – श्रावण 09:42 तक तत्पश्चात धनिष्ठा
योग – सुकर्म 11:46 तक तत्पश्चात घृति
राहुकाल – 15:00 से 16:30 बजे तक
सूर्योदय – 06:17
सूर्यास्त – 18:17
दिशाशूल – उत्तर दिशा में
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पंचक – 26 सितंबर 2023, 20:28 से 30 सितंबर 2023 को 21:08 तक
द्विपुष्कर योग – 0942 से 01:45 (27 सितम्बर)
व्रत पर्व – परिवर्तनी एकादशी (वैष्णव)
वामन जयंती
भवनेश्वरी जयंती
प्रदोष व्रत (27 सितम्बर)
अनन्त चौदस व पूर्णिमा व्रत (28 सितम्बर)
पूर्णिमा व प्रतिपदा का श्राद्ध (29 सितम्बर)
पारण समय – 13:25 से 15:49 26 सितम्बर को
हरि वासर समाप्त – 10:11
एकादशी तिथि प्रारम्भ – सितम्बर 25, 2023 को 07:55 ए एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त – सितम्बर 26, 2023 को 05:00 ए एम बजे
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💥 विशेष:- द्वादशी को पूतिका (पोई) खाने से पुत्र का नाश होता है। व्रत के दिन स्त्री सहवास तथा तिल किसी भी रूप में खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खण्ड 27.29-34) (ekadashi fast)
👉मंगलवार को पूर्व व दक्षिण दोनों ही दिशाओं में कई गयी यात्रा उत्तम रहती है। इस दिन गुड़ खाकर यात्रा करनी चाहिए। इससे दिशा शूल का दोष कम होता है।
पारण भी है जरूरी
👉एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
👉एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है।
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व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए। (ekadashi fast)
वामन जयंती कब
👉वामन जयन्ती भगवान विष्णु के वामन रूप में अवतरण दिवस के उपलक्ष्य में मनायी जाती है। वामन जयन्ती भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनायी जाती है। वामन जयन्ती को वामन द्वादशी भी कहा जाता है। भागवत पुराण के अनुसार, वामन भगवान विष्णु के दशावतार में से पाँचवे अवतार थे व त्रेता युग में पहले अवतार थे।
भगवान विष्णु के पहले चार अवतार पशु रूप में थे जो की क्रमशः मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार और नरसिंघ अवतार थे। इसके पश्चात् वामन मनुष्य रूप में पहले अवतार थे। वामन देव ने भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी को अभिजित मुहूर्त में जब श्रवण नक्षत्र प्रचलित था माता अदिति व कश्यप ऋषि के पुत्र के रूप में जन्म लिया था।
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👉वामन अवतार कथा
(ekadashi fast) भगवान विष्णु ने स्वर्ग लोक पर इन्द्र देव के अधिकार को पुनःस्थापित करवाने के लिये वामन अवतार लिया था। भगवान विष्णु के परमभक्त व अत्यन्त बलशाली दैत्य राजा बलि ने इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। भगवान विष्णु के परम भक्त और दानवीर राजा होने के बावजूद, बलि एक क्रूर और अभिमानी राक्षस था।
बलि अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर देवताओं और ब्राह्मणों को डराया व धमकाया करता था। अत्यन्त पराक्रमी और अजेय बलि अपने बल से स्वर्ग लोक, भू लोक तथा पाताल लोक का स्वामी बन बैठा था।
स्वर्ग से अपना अधिकार छिन जाने पर इन्द्र देव अन्य देवताओं के साथ भगवान विष्णु के समक्ष पहुँचे और अपनी पीड़ा बताते हुये सहायता की विनती की। भगवान विष्णु ने इन्द्र देव को आश्वासन दिया कि वे तीनों लोकों को बलि के अत्याचारों से मुक्ति दिलवाने हेतु माता अदिति के गर्भ से वामन अवतार के रूप में जन्म लेंगे।
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इंद्र को दिया वचन निभाया विष्णुजी ने
भगवान विष्णु इन्द्र से किये अपने वचन को पूरा करने के लिये वामन रूप धारण कर उस सभा में पहुँचे जहाँ राजा बलि अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। वामन देव ने भिक्षा के रूप में बलि से तीन पग धरती की याचना की। बलि जो की एक दानवीर राजा थे, सहर्ष रूप से वामन देव की इच्छा पूर्ति करने के लिये सहमत हो गये।
तत्पश्चात, वामन देव ने अत्यन्त विशाल रूप धारण कर अपने पहले पग से ही समस्त भू लोक को नाप लिया। दूसरे पग से उन्होंने स्वर्ग लोक नाप लिया। अन्ततः, जब वामन देव अपना तीसरा पग उठाने को हुये तब राजा बलि को यह ज्ञात हुआ की यह भिक्षुक कोई साधारण ब्राह्मण नहीं अपितु स्वयं भगवान विष्णु हैं।
दो पग में नापी धरती, तीसरा पग बलि के सर पर
अतः बलि ने तीसरे पग के लिये अपना शीर्ष वामन देव के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। तब भगवान विष्णु ने बलि की उदारता का सम्मान करते हुये, उसका वध करने के बजाय उसे पाताल लोक में धकेल दिया। भगवान विष्णु ने साथ ही बलि को यह वरदान भी दिया कि वह वर्ष में एक बार अपनी प्रजा के समक्ष धरती पर उपस्थित हो सकता है।
राजा बलि की धरती पर वार्षिक यात्रा को केरल में ओणम तथा अन्य भारतीय राज्यों में बलि-प्रतिपदा के रूप में मनाया जाता है।
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वामन जयन्ती पूजा विधि
(ekadashi fast) वामन जयन्ती के दिन भगवान विष्णु को उनके वामन रूप में पूजा जाता है। इस दिन, प्रातःकाल वामन देव की स्वर्ण या मिट्टी की प्रतिमा की पञ्चोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा की जाती है। वामन जयन्ती के दिन व्रत भी रखा जाता है। सन्ध्याकाल की पूजा के पश्चात् वामन जयन्ती की व्रत कथा पढ़ी या सुनी जाती है।
इसके पश्चात् प्रसाद ग्रहण कर व्रत तोड़ा जाता है। इस दिन चावल, दही और मिश्री का दान भी दिया जाता है। यदि वामन जयन्ती श्रवण नक्षत्र के दिन आती है तो इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
👉इस दिन विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। विष्णु भगवान के स्तोत्रों का भी पाठ किया जा सकता है।
👉दश महाविद्या में से एक माता भुवनेश्वरी हैं। इनकी पूजा मन्त्रों व यंत्रों से कर कर इनको प्रसन्न किया जा सकता है।
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