
वैदिक पंचांग-विजयदशमी मुहूर्त
*~ वैदिक पंचांग ~*
वैदिक पंचांग-विजयदशमी मुहूर्त ज्योतिषी पूनम गौड़ के अनुसार कैसे शुभ होगा?
जानिए वैदिक पंचांग से (विजयदशमी) के बारे में
पंचांग दिनांक – 24 अक्टूबर 2023 (विजयदशमी)
पंचांग दिन – मंगलवार
विक्रम संवत – 2080 (गुजरात – 2079)
शक संवत – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद ॠतु
मास – आश्विन
पक्ष – शुक्ल
तिथि – दशमी 15:14 तक तत्पश्चात एकादशी
नक्षत्र – धनिष्ठा 15:28 तक त्तपश्चात शतभिषा
योग – गण्ड 15:40 तक तत्पश्चात वृद्धि
राहुकाल – 15:00 – 16:30 बजे तक
सूर्योदय – 06:27
सूर्यास्त – 17:43
रवियोग – 06:27 – 15:28 तक
18:38 – 06:28 (25 अक्टूबर) तक
दिशाशूल – उत्तर दिशा में
पंचक प्रारंभ – मंगलवार, 24 अक्टूबर 2023 पूर्वाह्न 04:23 बजे
पंचक समाप्त: शनिवार, 28 अक्टूबर 2023 पूर्वाह्न 07:31 बजे
व्रत पर्व – दशहरा/विजयदशमी, दुर्गाविसर्जन
विजय मुहूर्त – 13:58 से 14:43 पी एम
बंगाल विजयादशमी मंगलवार, अक्टूबर 24, 2023 को
अपराह्न पूजा का समय – 13:13 से 15:28 अवधि – 02 घण्टे 15 मिनट्स
दशमी तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 23, 2023 को 17:44
दशमी तिथि समाप्त – अक्टूबर 24, 2023 को 15:14
श्रवण नक्षत्र प्रारम्भ – अक्टूबर 22, 2023 को 18:44
श्रवण नक्षत्र समाप्त – अक्टूबर 23, 2023 को 17:14
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💥 पंचांग विशेष:- दशमी को स्त्री सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
👉🏻 *विजयादशमी का दिन बहुत महत्त्व का है और इस दिन सूर्यास्त के पूर्व से लेकर तारे निकलने तक का समय अर्थात् संध्या का समय बहुत उपयोगी है। रघु राजा ने इसी समय कुबेर पर चढ़ाई करने का संकेत कर दिया था कि ‘सोने की मुहरों की वृष्टि करो या तो फिर युद्ध करो।’ रामचन्द्रजी रावण के साथ युद्ध में इसी दिन विजयी हुए। ऐसे ही इस विजयादशमी के दिन अपने मन में जो रावण के विचार हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोक, चिंता – इन अंदर के शत्रुओं को जीतना है और रोग, अशांति जैसे बाहर के शत्रुओं पर भी विजय पानी है। दशहरा यह खबर देता है।
वैदिक विजयादशमी
👉🏻 अपनी सीमा के पार जाकर औरंगजेब के दाँत खट्टे करने के लिए शिवाजी ने दशहरे का दिन चुना था – बिना मुहूर्त के मुहूर्त ! (विजयादशमी का पूरा दिन स्वयंसिद्ध मुहूर्त है अर्थात इस दिन कोई भी शुभ कर्म करने के लिए पंचांग-शुद्धि या शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं रहती।) इसलिए दशहरे के दिन कोई भी वीरतापूर्ण काम करने वाला सफल होता है।
चौदह करोड़ स्वर्णमुद्राएँ
👉🏻वरतंतु ऋषि का शिष्य कौत्स विद्याध्ययन समाप्त करके जब घर जाने लगा तो उसने अपने गुरुदेव से गुरूदक्षिणा के लिए निवेदन किया। तब गुरुदेव ने कहाः वत्स ! तुम्हारी सेवा ही मेरी गुरुदक्षिणा है। तुम्हारा कल्याण हो।’ परंतु कौत्स के बार-बार गुरुदक्षिणा के लिए आग्रह करते रहने पर ऋषि ने क्रुद्ध होकर कहाः ‘तुम गुरूदक्षिणा देना ही चाहते हो तो चौदह करोड़ स्वर्णमुद्राएँ लाकर दो।”
अब गुरुजी ने आज्ञा की है। इतनी स्वर्णमुद्राएँ और तो कोई देगा नहीं, रघु राजा के पास गये। रघु राजा ने इसी दिन को चुना और कुबेर को कहाः “या तो स्वर्णमुद्राओं की बरसात करो या तो युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।” कुबेर ने शमी वृक्ष पर स्वर्णमुद्राओं की वृष्टि की। रघु राजा ने वह धन ऋषिकुमार को दिया लेकिन ऋषिकुमार ने अपने पास नहीं रखा, ऋषि को दिया।
तेन त्यक्तेन भुंजीथा….
👉🏻विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष का पूजन किया जाता है और उसके पत्ते देकर एक-दूसरे को यह याद दिलाना होता है कि सुख बाँटने की चीज है और दुःख पैरों तले कुचलने की चीज है। धन-सम्पदा अकेले भोगने के लिए नहीं है। तेन त्यक्तेन भुंजीथा….। जो अकेले भोग करता है, धन-सम्पदा उसको ले डूबती है।
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वैदिक ‘ॐ’ का जप
👉🏻 दशहरे की संध्या को भगवान को प्रीतिपूर्वक भजे और प्रार्थना करें कि ‘हे भगवान ! जो चीज सबसे श्रेष्ठ है उसी में हमारी रूचि करना।’ संकल्प करना कि’आज प्रतिज्ञा करते हैं कि हम ॐकार का जप करेंगे।’
👉🏻‘ॐ’ का जप करने से देवदर्शन, लौकिक कामनाओं की पूर्ति, आध्यात्मिक चेतना में वृद्धि, साधक की ऊर्जा एवं क्षमता में वृद्धि और जीवन में दिव्यता तथा परमात्मा की प्राप्ति होती है।
👉गुस्सा बहुत आता हो तो धरती माता को अर्घ्य देना चाहिये कि माँ मै भी सहनशील बनूँ ….बात बात में गुस्सा न करूँ।
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