वैदिक पंचांग-षष्ठी तिथि

*~ वैदिक पंचांग ~*

वैदिक पंचांग-षष्ठी ज्योतिषी पूनम गौड़ के अनुसार कैसे शुभ होगा? 

जानिए वैदिक पंचांग से (षष्ठी) के बारे में 

दिनांक – 3 नवम्बर 2023

दिन – शुक्रवार
विक्रम संवत – 2080 (गुजरात – 2079)
शक संवत – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद ॠतु
मास – आश्विन

पक्ष – कृष्ण

तिथि – षष्ठी 23:07 तक तत्पश्चात सप्तमी
नक्षत्र – पुनर्वसु पूर्ण रात्रि
योग – सिद्ध 12:53 तक तत्पश्चात साध्य
राहुकाल – 10:30 – 12:00 बजे तक
सूर्योदय – 06:34
सूर्यास्त – 17:35

दिशाशूल – पश्चिम दिशा में
सर्वार्थ सिद्धि योग – अहोरात्रि
रवि योग – अहोरात्रि
व्रत पर्व – अहोई अष्टमी 05 नवम्बर 2023
राधा कुंड स्नान 05 नवम्बर 2023
कालाष्टमी 05 नवम्बर 2023
धन तेरस 10 नवम्बर 2023
छोटी दीवाली 11 नवम्बर 2023
बड़ी दीवाली 12 नवम्बर 2023

सोमवती अमावस्या 13 नवम्बर 2023
अन्नकुट 14 नवम्बर 2023
भाई दूज 15 नवम्बर 2023
गोपाष्टमी 20 नवम्बर 2023
आंवला नवमी 21 नवम्बर 2023
देवउठनी एकादशी 23 नवम्बर 2023
व्रत की पूर्णिमा 26 नवम्बर 2023
स्नान दान की पूर्णिमा 27 नवम्बर 2023

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💥 विशेष:- षष्ठी को नीम का किसी भी रूप में सेवन करने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

👉लिंगपुराण के अनुसार*

कार्तिके मासि यो दद्याद्धृतदीपं शिवाग्रतः।
संपूज्यमानं वा पश्येद्विधिना परमेश्वरम्।।
अर्थार्त जो कार्तिक महिने में शिवजी के सामने घृत का दीपक समर्पित करता है अथवा विधान के साथ पूजित होते हुए परमेश्वर का दर्शन श्रद्धापूर्वक करता है, वह ब्रह्मलोक को जाता है।

यो दद्याद्धृतदीपं च सकृल्लिंगस्य चाग्रतः।
स तां गतिमवाप्नोति स्वाश्रमैर्दुर्लभां रिथराम्।।
अर्थार्थ जो शिव के समक्ष एक बार भी घृत का दीपक अर्पित करता है, वह वर्णाश्रमी लोगों के लिये दुर्लभ स्थिर गति प्राप्त करता है।

आयसं ताम्रजं वापि रौप्यं सौवर्णिकं तथा।
शिवाय दीपं यो दद्याद्विधिना वापि भक्तितः।।
सूर्यायुतसमैः श्लक्ष्णैर्यानैः शिवपुरं व्रजेत्।।
अर्थार्थ जो विधान के अनुसार भक्तिपूर्वक लोहे, ताँबे, चाँदी अथवा सोने का बना हुआ दीपक शिव को समर्पित है, वह दस हजार सूर्यों के सामान देदीप्यमान विमानों से शिवलोक को जाता है।

अग्निपुराण के अनुसार 

👉अग्निपुराण के 200 वे अध्याय के अनुसार जो मनुष्य देवमन्दिर अथवा ब्राह्मण के गृह में एक वर्ष दीपदान करता है, वह सबकुछ प्राप्त कर लेता है।

👉कार्तिक में दीपदान करने वाला स्वर्गलोक को प्राप्त होता है।

👉दीपदान से बढ़कर न कोई व्रत है, न था और न होगा ही।

👉दीपदान से आयु और नेत्रज्योति की प्राप्ति होती है।

👉दीपदान से धन और पुत्रादि की प्राप्ति होती है।

👉दीपदान करने वाला सौभाग्ययुक्त होकर स्वर्गलोक में देवताओं द्वारा पूजित होता है।

👉एकादशी को दीपदान करने वाला स्वर्गलोक में विमान पर आरूढ़ होकर प्रमुदित होता है।

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दीपदान कैसे करें:

👉दीपदान करने के लिए मिट्टी, ताँबा, चाँदी, पीतल अथवा सोने के दीपक लें। उनको अच्छे से साफ़ कर लें। मिटटी के दीपक को कुछ घंटों के लिए पानी में भिगो कर सुखा लें। उसके पश्च्यात प्रदोषकाल में अथवा सूर्यास्त के बाद उचित समय मिलने पर दीपक, तेल, गाय घी, बत्ती, चावल अथवा गेहूँ लेकर मंदिर जाएँ। घी में रुई की बत्ती तथा तेल के दीपक में लाल धागे या कलावा की बत्ती इस्तेमाल कर सकते हैं।

दीपक रखने से पहले उसको चावल अथवा गेहूं अथवा सप्तधान्य का आसन दें। दीपक को भूल कर भी सीधा पृथ्वी पर न रखें क्योंकि कालिका पुराण का कथन है ।

कालिका पुराण का कथन

दातव्यो न तु भूमौ कदाचन। सर्वसहा वसुमती सहते न त्विदं द्वयम्।।
अकार्यपादघातं च दीपतापं तथैव च। तस्माद् यथा तु पृथ्वी तापं नाप्नोति वै तथा।।
अर्थात सब कुछ सहने वाली पृथ्वी को अकारण किया गया पदाघात और दीपक का ताप सहन नही होता ।

👉उसके बाद एक तेल का दीपक शिवलिंग के समक्ष रखें और दूसरा गाय के घी का दीपक श्रीहरि नारायण के समक्ष रखें। उसके बाद दीपक मंत्र पढ़ते हुए दोनों दीप प्रज्वलित करें। दीपक को प्रणाम करें। दारिद्रदहन शिवस्तोत्र तथा गजेन्द्रमोक्ष का पाठ करें।

👉पाँच दिन जरूर जरूर करें दीपदान

👉अगर किसी विशेष कारण से कार्तिक में प्रत्येक दिन आप दीपदान करने में असमर्थ हैं तो पांच विशेष दिन जरूर करें।

👉पद्मपुराण, उत्तरखंड में स्वयं महादेव कार्तिकेय को दीपावली, कार्तिक कृष्णपक्ष के पाँच दिन में दीपदान का विशेष महत्व बताते हैं:

कृष्णपक्षे विशेषेण पुत्र पंचदिनानि च
पुण्यानि तेषु यो दत्ते दीपं सोऽक्षयमाप्नुयात्
अर्थार्थ, बेटा! विशेषतः कृष्णपक्ष में 5 दिन (रमा एकादशी से दीपावली तक) बड़े पवित्र हैं। उनमें जो भी दान किया जाता है, वह सब अक्षय और सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है।

तस्माद्दीपाः प्रदातव्या रात्रावस्तमते रवौ
गृहेषु सर्वगोष्ठेषु सर्वेष्वायतनेषु च
देवालयेषु देवानां श्मशानेषु सरस्सु च
घृतादिना शुभार्थाय यावत्पंचदिनानि च
पापिनः पितरो ये च लुप्तपिंडोदकक्रियाः
तेपि यांति परां मुक्तिं दीपदानस्य पुण्यतः
रात्रि में सूर्यास्त हो जाने पर घर में, गौशाला में, देववृक्ष के नीचे तथा मन्दिरों में दीपक जलाकर रखना चाहिए। देवताओं के मंदिरों में, शमशान में और नदियों के तट पर भी अपने कल्याण के लिए घृत आदि से पाँच दिनों तक दीप जलाने चाहिए। ऐसा करने से जिनके श्राद्ध और तर्पण नहीं हुए हैं, वे पापी पितर भी दीपदान के पुण्य से परम मोक्ष को प्राप्त होते हैं।

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👉🏻शालिग्राम का दान*

स्कन्दपुराण के अनुसार
सप्तसागरपर्यंतं भूदानाद्यत्फलं भवेत् ।।
शालिग्रामशिलादानात्तत्फलं समवाप्नुयात् ।।
शालिग्रामशिलादानात्कार्तिके ब्राह्मणी यथा ।।
अर्थार्थ सात समुद्रों तक की पृथ्वी का दान करने से जो फल प्राप्त होता है, शालिग्राम शिला के दान से मनुष्य उसी फल को पा लेता है । अतः कार्तिक मास में स्नान तथा श्रध्दा पूर्वक शालिग्राम शिला का दान अवश्य करना चाहिए।

👉ज्योतिषीय परामर्श के लिए पूनम गौड को 8826026945 पर व्हाट्सएप्प करें।

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