विजय श्रीवास्तव
जयपुर। जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा राजनेताओं के ऐश-ओ -आराम पर खर्च हो रहा है और जनता सुविधाओं के लिए सरकार का मुंह ताकती नजर आ रही है। दरअसल राजस्थान में इन दिनों महंगाई आसमान छू रही है। चाहे किसी भी वस्तु के दाम हों वो इतने बढ़ गए हैं कि जनता बहुत परेशान हो चुकी है और जनता परेशानियों और असुविधाओं से त्रस्त होकर सरकार को कोस रही है। इन दिनों प्रदेश में महंगाई बढ़ने के दो बड़े कारण जो लगभग पूरी तरह जनता को प्रभावित कर रहे हैं वह कोरोना और दूसरा पेट्रोलियम पदार्थों के बढ़े हुए दाम हैं। एक तो कोरोना महामारी ने प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर की अर्थव्यवस्था को जमीन पर औंधे मुंह गिरा दिया है, वहीं पेट्रोल- गैस और डीजल के बढ़े दाम इस महंगाई और परेशानी में कोढ़ में खाज वाला काम कर रहे हैं।
कोरोना और महंगाई ने किया भीख मांगने पर मजबूर
कोरोना के कारण वैसे ही लोगों के कामकाज ठप हो गए हैं, लोगों की नौकरियां छूट गई हैं और जिनके पास हैं वह बस घर में दो जून की रोटी जितना ही तनख्वाह के नाम पर ला पा रहे हैं। ऐसे में ना सिर्फ गरीब तबका बल्कि प्रदेश में रह रहा हर नागरिक खुद की बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था से परेशान नजर आ रहा है। हालात तो यहां तक बिगड़ गए हैं कि मध्यमवर्गीय और निम्न वर्ग के लोगों को कभी तो एक टाइम का खाना भी नसीब नहीं हो रहा है, कहीं गरीबों की स्थिति इससे भी बदतर नजर आती है। एक बार फिर से प्रदेश की सड़कों पर और लगभग सभी चौराहों पर भीख मांगने वाले बड़ी तादाद में नजर आने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि वह मजबूर हैं या अपाइज हैं। बल्कि पूछने पर बताते हैं कि साहब कामकाज छूट गया है, अब कभी कहीं से कोई खाना दे जाता है तो ठीक, नहीं तो मास्क लगाकर भीख मांगकर परिवार का पेट तो भरना मजबूरी है।
गुजरात -दिल्ली -हरियाणा से ज्यादा राजस्थान में पेट्रोल -डीजल महंगा
प्रदेश में आए दिन पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों ने भी न सिर्फ महंगाई बढ़ा दी है बल्कि गरीब आदमी की तो कमर ही तोड़ डाली है। जानकारी के अनुसार 6 अप्रैल 2020 यानी लॉकडाउन के करीब करीब 15दिन बाद जयपुर में पेट्रोल की कीमत ₹75 थी तो डीजल लगभग ₹69 प्रति लीटर था जो आज पेट्रोल ₹89 वहीं डीजल करीब 82.54 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है। जबकि राजस्थान की अन्य राज्यों से जैसे गुजरात, दिल्ली,हरियाणा आदि से तुलना की जाए तो इनके मुकाबले में राजस्थान में पेट्रोलियम पदार्थों की रेटों में काफी ज्यादा अंतर मिलेगा। वर्तमान में राजस्थान और गुजरात में पेट्रोल की कीमतों में करीब ₹12 प्रति लीटर का अंतर है। यानी गुजरात में करीब ₹12 पेट्रोल की कीमतें कम हैं। इधर दिल्ली और हरियाणा की बात करें तो दिल्ली में पेट्रोल करीब 81 और डीजल करीब ₹74 प्रति लीटर है। वहीं हरियाणा में पेट्रोल करीब 79 और डीजल करीब ₹74 प्रति लीटर है यानी इनकी कीमतों से अगर राजस्थान की तुलना करें तो पेट्रोल में लगभग 8 से ₹10 और डीजल में लगभग 8.50रुपए ज्यादा राजस्थान की सरकार जनता से वसूल रही है।
वहीं गरीब जनता को सिलेंडर पर सब्सिडी के नाम पर भी ठेंगा मिल रहा है। मार्च 2020 में जहां जनता को घरेलू रसोई गैस पर करीब 191.13 रुपए सब्सिडी मिल रही थी वह भी सरकार ने बंद कर दी। अब जनता को जोड़-भाग में फंसाकर सिलेंडरों के दाम लगभग फिक्स कर दिए हैं जो ₹600 के करीब हैं लेकिन इसके साथ-साथ सिलेंडरों पर मिल रही सब्सिडी भी सरकार ने खत्म कर दी है यानी जनता से सरकार ने सब्सिडी छीन ली है।
पिछली सरकार के गड्ढे भर कर अपना खजाना भर रही राजस्थान सरकार
अर्थव्यवस्था के जानकार लोगों के अनुसार प्रदेश में इन दिनों कोई नई तरह की की गणित नजर आ रही है। पानी-बिजली-टेलीफोन आदि बिलों में दुनिया भर के चार्ज जोड़कर सरकार वसूली कर रही है, बावजूद इसके सरकार का पेट नहीं भर रहा है।आए दिन प्रदेश में पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतें इसका ज्वलंत उदाहरण है, और जनता की कमर पूरी तरह से तोड़ने में सरकारी तंत्र भी मानो जुटा है। क्यों ना अन्य राज्यों की तरह राजस्थान में भी वैट और टैक्सेस कम करके यहां बढ़ते पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को कंट्रोल किया जाए? शायद महंगाई पर कुछ हद तक लगाम लगाई जा सके? लेकिन उसके लिए मंशा भी चाहिए। हाल ही में एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र में सरकार की बिजली के बिल से जनता पर बोझ डालने की खबर भी प्रकाशित हुई थी जो सरकार की मंशा को साफ जाहिर करती है। इन सब बातों और सरकार द्वारा जनता से विभिन्न करों द्वारा डाले जा रहे बोझ को देखें तो साफ लगता है कि सरकार सिर्फ पिछली सरकार द्वारा खोदे गए गड्ढों को भर कर अपना खजाना भरने में लगी है उसे जनता की परवाह नहीं है। तभी तो बाजार में व्यापारी, नौकरीपेशा लोग त्राहिमाम करने लगे हैं, वहीं जनता की गाड़ी मेहनत की कमाई को सरकार के प्रतिनिधि होटलों में उड़ा रहे हैं, सरकार के खर्च पर जनप्रतिनिधियों के तीन तीन विदेशी दौरे को लेकर नए नए प्रस्ताव विधानसभा में पास हो रहे हैं।
गरीबी का रोना और विधायकों पर मेहरबानी!
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार क्या यह गिरती सरकार बचाने का मुख्यमंत्री ने विधायकों को तोहफा नहीं दिया है?, नहीं तो एक तरफ गरीबी – महामारी और आर्थिक संकट से जूझ रही राजस्थान सरकार गरीबी का रोना रोकर केंद्र सरकार और भामाशाहों से मदद की गुहार क्यों लगा रही है?, क्यों अपने विधायकों को परिवार संग 3-3 विदेश दौरों का प्रस्ताव पास कर रही है? आखिर सरकार के पास जब महामारी से लड़ने का पैसा नहीं तो अपने विधायकों पर मुख्यमंत्री की यह मेहरबानी किस लिए?
जाग जाओ सरकार, वरना बहुत देर हो जाएगी
हे सरकार अब तो जागो!, क्या सभी की आंखों का पानी मर गया है?, अगर नहीं तो फिर क्यों सरकार प्रदेश में खर्चों पर लगाम लगाने की बजाय होटलों, विदेशी यात्राओं के तोहफे, चार्टर विमानों और अन्य संसाधनों का दुरुपयोग करने में लगी है?, क्या जनता को कुछ नजर नहीं आ रहा?, जनता सब जानती है, सब देख रही है, और ऐसा ही चला तो सरकार को और राजनेताओं को जनता इसका जवाब जरूर देगी। सरकार की आंखें खोलने के लिए जनता भी जागरूक हो तो सरकार की आंखों से पर्दा हटाया जा सकता है बहरहाल जैसे विदेशों में जनता सीधे सड़कों पर उतरकर अपना हक सरकार से मांगने के लिए आवाज उठाती है ऐसा ही कोई कदम अब शायद राजस्थान की जनता को उठाने का वक्त आ गया है।