पंजाब में किस के सर‘ताज’ ?

पंजाब में किस के सर‘ताज’ ?

पंजाब में किस के सर‘ताज’ ?

117 विधानसभा सीटों पर 2.14 करोड़ मतदाता करेंगे 1304उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला

किसान और दलित वोटरों में बड़ा कन्फ्यूजन

राजनीतिक पंडित भी नहीं समझ पा रहे पंजाब के लोगों के मूड को

 

विजय श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार,

लुधियाना। पंजाब में 20फरवरी रविवार को 117विधानसभा सीटों पर मतदान होने जा रहे हैं। चुनावों की घोषणा के वक्त पहले यहां 14फरवरी को मतदान होने थे लेकिन संत रविदास जयंती के चलते यहां के राजनीतिक दलों की मांग पर चुनाव आयोग ने पंजाब में मतदान की नई तारीख 20 फरवरी का ऐलान किया था। अब पंजाब में नियत तिथि 20फरवरी को विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं।

इन सभी विधानसभा सीटों पर 1304 उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर लगी है। करीब 2.14करोड़ मतदाता पंजाब में किसके सर ताज होगा इस बात का फैसला कर अपने अपने राजनीतिक दलों के भाग्य का फैसला ईवीएम में कैद करेंगे। पंजाब चुनाव कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार रविवार सुबह आठ बजे से शाम छह बजे तक मतदान डाले जा सकेंगे। पंजाब में इस बार का नजारा कुछ ऐसा होगा कि यहां कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल-बसपा गठबंधन, भाजपा-पीएलसी- शिअद संयुक्त और किसान संगठनों की राजनीतिक इकाई संयुक्त समाज मोर्चा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होगा।

राजनीतिक पंडित भी नहीं समझ पा रहे वोटों का गणित

आम जनता की तो अलग बात है लेकिन राजनीतिक पंडित भी इस बार पंजाब चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा? इसका अनुमान लगाने में नाकामयाब सा महसूस कर रहे हैं। इसका कारण साफ है कि जिन चेहरों पर पंजाब में चुनाव लड़े जाते थे वो अब कई दलों में बंट गए हैं। कांग्रेस का परम्परागत चेहरा रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह के कांग्रेस से अलग होने से कांग्रेस को वोटों में काफी फर्क पड़ने वाला है।

आमजन में पूरी तरह कन्फ्यूजन

इस बार पंजाब में कई बातें ऐसी हुई हैं जो पहली बार और यहां की जनता को कन्फ्यूज कर देने वाली हैं। पंजाब में इस बार परम्परागत वोट बंटता नजर आ रहा है। कैप्टन के जाने से कांग्रेस के वोट कटेंगे, अकाली दल के अलग होने से भाजपा को कहीं न कहीं इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा। आप पार्टी के पंजाब के स्थानीय सांसद भगवंत मान को सीएम का चेहरा बनाने से भी जनरल वोटबैंक बंटेगा तो किसानों की खुद की पार्टी बनने से किसानों के वोट जो कहीं न कहीं सीधे तौर पर कांग्रेस, अकाली दल या भाजपा को जाते थे वो भी कहीं न कहीं बंटे हुए नजर आ रहे हैं।

कांग्रेस में रहा बेअदबी और नाफरमानी का दौर

पंजाब में फिलहाल कांग्रेस सत्तारूढ़ पार्टी है और कांग्रेस ने पंजाब में दलित कार्ड खेलते हुए 111 दिन पहले चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाकर इस विधानसभा चुनाव के लिए पृष्ठ भूमि तैयार कर ली थी। हालांकि कांग्रेस में अमरिंदर सिंह को दरकिनार कर नया सीएम बनाने का जमकर विरोध हुआ और इस विरोध में नवजोत सिंह सिद्धू ने खुद को कैप्टन के बाद मुख्यमंत्री घोषित करवाने का नाकाम प्रयास किया। इस पूरे विरोध में कांग्रेस की फजीहत भी हुई और कांग्रेस में बेअदबी भी अपने चरम पर पहुंच गई। कैप्टन अमरिंदर सिंह से शुरू करें तो उन्होंने कांग्रेस आलाकमान की बात की अनसुनी कर अपनी नाराजगी जाहिर की। पंजाब के राजनीतिक पर्यवेक्षकों की मानें तो इस बेअदबी से कैप्टन ने अपनी करीब चार दशक की राजनीति पर बट्टा लगा लिया है। दरअसल कैप्टन के भाजपा के इशारे पर सरकार चलाने वाले बयान से बड़ी फजीहत हुई। कैप्टन के लिए कथित तौर पर कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों के लोग कहने लगे कि “बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले”। कांग्रेस से खुद को बेदखल करने के बाद कैप्टन ने अपनी पार्टी बनाकर भाजपा से गठबंधन तो कर लिया लेकिन अमरिंदर सिंह अभी तक खुद को संभाल नहीं पाए। इधर नवजोत सिंह सिद्धू भी कांग्रेस आलाकमान के साथ कई बार बेअदबी कर अपने करियर पर जैसे बट्टा लगा चुके हैं। सिद्धू के लिए पंजाब के राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि वो नेता तो अच्छे हैं लेकिन राजनीति करनी अभी तक सिद्ध सीख नहीं पाए हैं। शायद यही कारण है कि वक्त बे वक्त उन्होंने कई बार कांग्रेस के विरोध में बयानबाजी कर “खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मार ली”। अब सिद्धू कांग्रेस के साथ हैं तो सही लेकिन शायद वो खुद इस बात को समझ नहीं पाए हैं कि कांग्रेस में रहकर वो अपने साथ इंसाफ कर पाए हैं या नहीं।

पंजाब की राजनीति में ऐसा पहली बार

पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में दो बार कांग्रेस की सरकार बनी है लेकिन इस बार पंजाब के चुनाव बेहद रोमांचक होने वाले हैं। पंजाब की राजनीतिक में मानो जैसे एक नया उबाल सा आ गया है। यहां इस बार न सिर्फ अन्य दलों में बल्कि सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस में कई दिलचस्प पहलू उभरकर सामने आए हैं। इस बार पांच बड़े राजनीतिक दल गठबंधन करके विधानसभा चुनावों में अपना भाग्य आजमा रहे हैं। इस बार पंजाब में कई चीजें पहली बार हो रही हैं जैसे ये पहली बार है जब कांग्रेस किसी दलित चेहरे को लेकर विधानसभा चुनाव लड़ रही है। पहली बार ऐसा हो रहा है जब भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टी अकाली दल दोनों अलग-अलग होकर विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। पंजाब में ये भी पहली बार हो रहा कि जब यहां के मुख्य वोट बैंक किसान खुद अपनी पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में हैं।

किस किस की प्रतिष्ठा दाव पर

पंजाब विधानसभा चुनावों में इस बार कई बड़े चेहरों की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है। पंजाब के बड़े चेहरों में कैप्टन अमरिंदर सिंह, सुखबीर सिंह बादल, प्रकाश सिंह बादल, वर्तमान सीएम चरणजीत सिंह चन्नी, नवजोत सिंह सिद्धू, पंजाब से सांसद भगवंत मान, पूर्व सीएम रजिंदर कौल भट्टल, पंजाब भाजपा अध्यक्ष अश्विनी शर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय सांपला की उम्मीदवारों के रूप में प्रतिष्ठा दाव पर लगी है।

बहरहाल पंजाब में किसकी सरकार बनेगी ये तो अभी कहना नामुमकिन लगता है लेकिन इस बार पंजाब में सभी राजनीतिक दलों के बीच मुकाबला काफी रोमांचक होगा ये बात निश्चित है। इस बार परम्परागत वोट बैंक में किसकी सैंध काम आती है?, कौनसी पार्टी गुणा भाग में होती है पास?, किस दल को पसंद कर जनता किसे चुनेगी अपना मुख्यमंत्री?, इन सब सवालों का जवाब मतों की गिनती यानि 10मार्च को ही मिलेगा।

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