मध्यप्रदेश में कौन किस पर हावी, राजनेता-नौकरशाही ?, राजनेताओं की अभद्र भाषा से नौकरशाही परेशान

मध्यप्रदेश में कौन किस पर हावी, राजनेता-नौकरशाही ?, राजनेताओं की अभद्र भाषा से नौकरशाही परेशान

मध्यप्रदेश में कौन किस पर हावी, राजनेता-नौकरशाही ?

राजनेताओं की अभद्र भाषा से नौकरशाही परेशान

क्या नौकरशाहों का असहयोगत्मक रवैया ले डूबेगा सरकार को ?

नहीं सुधरे हालात तो शिवराज सरकार को साख बचाने के लिए बेलने पड़ेंगे पापड़

 

विजय श्रीवास्तव

भोपाल । मध्यप्रदेश में सरकारी नुमाइंदे राजनेताओं की नहीं सुनते और राजनेता नौकरशाहों के लिए सरेराह अपशब्दों का प्रयोग करते इन दिनों नजर और सुनाई दे जाएंगे। इसे राजनीति का फेल्योर माना जाए या नौकरशाही की निरंकुशता ? क्योंकि ये किसी भी राज्य में लोकतंत्र को चलाने के दो पायदान हैं अगर दोनों में एक भी अपनी दिशा बदल लेता है तो लोकतंत्र की बर्बादी तय है। इन दिनों मध्यप्रदेश ऐसे ही किसी दौर से गुजर रहा है जहां लगता है नौकरशाह निरंकुश होकर काम कर रहे हैं और राजनेताओं पर भी किसी की लगाम नहीं रही।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो मध्यप्रदेश में इस तरह के माहौल के पीछे तीन साल में दो बार राजनीतिक उथल पुथल रही है। सरकार बदलते ही राजनेता अपने हिसाब से नौकरशाहों को बदल देते हैं। हालांकि सभी राज्यों में ऐसा होता आया है कि सरकार बदलते ही नौकरशाही में तबादले हो जाते हैं और मन मुताबिक अफसर राजनेताओं के साथ लगा दिए जाते हैं। तो क्या मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं हुआ, जब तीन साल में कांग्रेस की सरकार बदलकर भाजपा सत्तारूढ़ हुई थी? बिल्कुल ऐसा ही हुआ था फिर भी राजनेता और नौकरशाहों में तालमेल की कमी ये बताती है कि कहीं न कहीं दोनों के मन किसी बात को लेकर मलाल है जो दोनों के बीच तालमेल नहीं बनने दे रहा। राजनीति और प्रशासनिक अफसरों के बीच इस विवाद में जनता की क्या गलती है जिसे दोनों की नाराजगी का खामियाजा प्रदेश के रूके हुए विकास और रोज रोज पैदा होती परेशानियों से चुकाना पड़ रहा है।
दरअसल सरकार एमपी में वर्तमान भाजपा सरकार जोड़-तोड़ करके बदल तो दी गई लेकिन सूत्रों के अनुसार कांग्रेस के पिछले पंद्रह महीनों के कार्यकाल पर सत्तारूढ़ दल आरोप लगाता नजर आ रहा है। वहीं राजनेता अपने ही कार्यों से संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं और स्वयं पर फैल्योर के आरोप को राजनेता नौकरशाहों के माथे मड़ रहे हैं।

हाल ही में भाजपा की मुखर नेत्री उमा भारती ने जिस तरह से नौकरशाहों के लिए अपशब्दों में अपने विचार आम जनता के सामने रखे ऐसे में किसी भी नौकरशाह का आउट ऑफ कंट्रोल हो जाना स्वाभाविक है। अब जब विधानसभा चुनावों का समय जैसे जैसे पास आ रहा है वैसे वैसे सत्तारूढ़ दल की घबराहट बढ़ती जा रही है और वो अपनी कमियों का ठीकरा अफसरों पर फोड़ना चाह रहा है। लेकिन शायद इन सब का नौकरशाही पर कोई असर नहीं हो रहा है क्योंकि ये लोग इस तरह के नेताओं से निपटने में पारंगत होते हैं। यही कारण है कि उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान के तल्ख टिप्पणियों के बावजूद किसी अफसर ने इन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। अब काम तो इन अफसरों से ही करवाना है तो क्या कोई और तरीका भी है जो अब राजनेता अपनाएंगे।

जानकार सूत्रों के हवाले से खबर है कि नौकरशाही में भी उतनी ही नाराजगी राजनेताओं के खिलाफ है जितनी राजनेतओं में अफसरों के खिलाफ। अब सरकार तो इन्हीं के कंधे पर चलनी है तो फिर राजनेता अपने रवैये को बदलकर सहयोग और रचनात्मक रवैया क्यों नहीं अपनाते? इस तरह की अफसरों को अपमानित करने वाली सार्वजनिक टिप्पणियां कर राजनेता क्या सरकारी काम सफलतापूर्वक करवा पाएंगे ?

बहरहाल एमपी में अब विधानसभा चुनावों में लगभग 21 महीने शेष रह गए हैं और काम और विकास के नाम पर किसी भी सरकार के पास जनता को दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है। ऐसे में अगले चुनावों में लोगों के सामने जाने के लिए कोई तो पोर्ट फोलियो राजनेतिक दलों को चाहिए होगा तभी तो राजनेता अपने रिपोर्ट के आधार पर लोगों से वोट मांग पाएंगे। हालांकि अभी भी समय हाथ से छूटा नहीं है तो नौकरशाही से तालमेल कर राजनेताओं को अपने अच्छे दिनों के लिए प्रदेश की जनता के हित में विकास कार्यों का खाका बनाकर उन पर कार्य करना चाहिए ताकि आने वाले समय में वो फिर से सत्ता का सुख हासिल करने में कामयाब हो सकें।

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