
आरएसएस के ‘सरसेनापति’ की अनसुनी कहानी: जब खाकी कमीज थी गणवेश का हिस्सा
संघ में सरसेनापति की शुरुआत और भूमिका
14 साल तक चला पद, फिर क्यों हुआ समाप्त?
गणवेश में बदलाव ने लिखा नया इतिहास
विजय श्रीवास्तव,
जयपुर,dusrikhabar.com। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की यात्रा लगभग 100 साल की हो चुकी है। इस दौरान संगठन में कई बदलाव आए। बहुत कम लोग जानते हैं कि संघ में कभी ‘सरसेनापति’ का पद भी हुआ करता था। यह पद करीब 14 साल तक रहा और इसके पहले व अंतिम सरसेनापति थे मार्तंड राव जोग। तब संघ में खाकी कमीज और खाकी नैकर का चलन था।
संघ में सरसेनापति का इतिहास
संघ की स्थापना के चार साल बाद नवंबर 1929 में नागपुर में प्रशासनिक व्यवस्था बनी। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार पहले सरसंघचालक बने और उसी समय सरकार्यवाह (महासचिव) और सरसेनापति जैसे पद भी बनाए गए। जोग को प्रशिक्षण अधिकारी के रूप में चुना गया, जिनका दायित्व स्वयंसेवकों को लाठी चलाने, व्यायाम और अनुशासन का प्रशिक्षण देना था।
संघ में सेनापति की जरूरत क्यों?
गौरतलब है कि संघ कोई सैनिक या क्रांतिकारी प्रकृति का संगठन नहीं था, ऐसे में संघ में सरसेनापति का पद क्यों? आपको बता दें कि कभी छत्रपति शिवाजी ने अपनी मराठा सेना के सर्वोच्च अधिकारी के लिए सृजित किया था, उसे संघ ने क्यों अपनाया? दरअसल संघ में ये प्रशिक्षण अधिकारी का पद था, जिसका दायित्व स्वयंसेवकों को शारीरिक शिक्षा में मजबूत करना यानी व्यायाम से लेकर दंड (लाठी) आदि चलाने का प्रशिक्षण देने के शिविर लगाना था।
आज भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में जो अनुशासित पथसंचलन आप देखते हैं, उनकी शुरूआत मार्तंड राव जोग ने ही की थी। जोग 1920 में सेना से सेवानिवृत्त होकर 1926 में डॉ हेडगेवार द्वारा उन्हें स्वयंसेवकों की साप्ताहिक परेड करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। कांग्रेस सेवा दल से जुड़े होने के कारण उन्होंने गुरु गोलवलकर को पत्र में लिखा था, “मैं अब पूरी तरह संघ के साथ हूं, संघ ने मेरा व्यक्तित्व विकसित कर दिया है। ये डॉ. हेडगेवार का अगाध स्नेह था कि संघ में मुझे जगह दी”।

स्वयं सेवक संघ का यह फोटो AI द्वारा बनाया गया है।
क्यों खत्म हुआ सरसेनापति का पद?
संघ में करीब 14 साल ये व्यवस्था चलती रही और पद भी बना रहा, लेकिन दूसरा विश्वयुद्ध शुरू होते ही हालात बदल गए. 5 अगस्त 1940 को अंग्रेजी सरकार ने एक अध्यादेश निकाला कि भारत सुरक्षा कानून के तहत किसी भी संगठन को ना तो सैनिक की यूनीफॉर्म पहनने की अनुमति होगी और ना किसी भी तरह की सैनिक ट्रेनिंग की। फिर भी अगले 3 साल तक विचार मंथन चलता रहा। नए नियम के तहत अब किसी भी संगठनों को सैन्य प्रशिक्षण और यूनिफॉर्म पर प्रतिबंध लगाया। दिल्ली, पंजाब और मद्रास में संघ अधिकारियों पर कार्रवाई भी हुई। 28 अप्रैल 1943 को गुरु गोलवलकर ने पत्र जारी कर सरसेनापति सहित सभी सैन्य स्वरूप वाले विभाग समाप्त कर दिए।

स्वयं सेवक संघ का यह फोटो AI द्वारा बनाया गया है।
हालांकि अब आगे संघ में क्या होना है इस पर निर्णय लेना इतना आसान नहीं था उल्लेखनीय है कि गोलवलकर ने पत्र भी लियाा था कि इस प्रशिक्षण के पीछे हमारा ध्येय लोगों को अनुशासन में रहकर संस्कार देना है और हम कानून के दायरे में रहकर ही काम करेंगे। ऐसे में संघ को ये सारे पद समाप्ति की घोषणा करनी पड़ी। मार्तंड राव जोग ने भी 14 वर्ष बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
सरसेनापति के पद के साथ ही हुआ गणवेश में बड़ा बदलाव
इस निर्णय के बाद संघ का गणवेश भी बदला। पहले खाकी नेकर और खाकी कमीज होती थी, लेकिन सरसेनापति का पद हटने के साथ कमीज का रंग सफेद कर दिया गया। हालांकि खाकी निकर आज भी संघ के लोग पहनते हैं लेकिन समय के साथ एक और बदलाव आया और वर्तमान में निकर के साथ खाकी पेंट को भी गणवेश में शामिल कर लिया गया। इस तरह आज सफेज कमीज, खाकी नेकर और पेंट के साथ काली टोपी संघ के लोगों की शान से पहनी जाने वाली गणवेश है।
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